किसी समाज के सच को केवल कुछ रचनाओं से नहीं समझा जा सकता: मृदुला गर्ग
नरेश नरेश पवनेश
- 04 Dec 2025, 07:39 PM
- Updated: 07:39 PM
नई दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग ने समाज की अपेक्षाओं से परे जाकर साहित्य में अपनी एक नई पहचान गढ़ने के लिए महिला रचनाकारों के जज्बे को सराहा और कहा कि किसी समाज के सच को केवल कुछ रचनाओं के माध्यम से नहीं समझा जा सकता।
मृदुला गर्ग ने यहां नौ प्रमुख महिला रचनाकारों के उपन्यासों के लोकार्पण के लिए आयोजित ‘स्त्री वर्ष’ कार्यक्रम में बुधवार को यह बात कही।
वरिष्ठ कथाकार ने कहा, ''किसी समाज के सच को केवल कुछ रचनाओं से नहीं समझा जा सकता, उसके लिए सैकड़ों उपन्यास पढ़ने पड़ते हैं।’’
उन्होंने कहा,‘‘ मेरे लिए स्त्री होना कोई निर्मित पहचान नहीं है। हम सब जन्म से स्त्री या पुरुष होते हैं; समाज केवल हमारे ऊपर अपनी अपेक्षाएं थोपता है। इन नौ लेखिकाओं ने जन्म से स्त्री होते हुए भी अपने को लेखक के रूप में गढ़ा है और उसी रूप में वे सबसे अधिक सम्मान की पात्र हैं।’’
समकालीन हिन्दी उपन्यासों में स्त्री-स्वर, स्त्री-अनुभव और रचनात्मक विस्तार को रेखांकित करने के उद्देश्य से बुधवार शाम राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘हिन्दी उपन्यास का स्त्री वर्ष : भेंट, पाठ, चर्चा’ का आयोजन किया गया।
राजकमल प्रकाशन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार अध्यक्षीय वक्तव्य में मृदुला गर्ग ने समकालीन स्त्री-लेखन की रचनात्मकता और उसके सामाजिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह पहल हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण क्षण को दर्ज करती है।
प्रकाशन द्वारा स्त्री वर्ष में प्रकाशित उपन्यासों में ‘सह-सा’ – गीतांजलि श्री, ‘कलकत्ता कॉस्मोपॉलिटन : दिल और दरारें’ – अलका सरावगी, ‘दूर देश के परिन्दे’ – अनामिका, ‘शीशाघर’ – प्रत्यक्षा, ‘सरकफंदा’ – वन्दना राग, ‘इस शहर में इक शहर था’ – जया जादवानी, ‘दरयागंज वाया बाज़ार फ़त्ते ख़ां’ – सुजाता, ‘जहाज़ पांच पाल वाला’ – सविता भार्गव और ‘शुकमाया हांङमा’ – शोभा लिम्बू शामिल थे।
राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा कि हिन्दी में इस समय जितनी स्त्री रचनाकार सक्रिय हैं उतनी पहले कभी नहीं थीं।
उन्होंने कहा कि वे समय के सीने पर जो कुछ दर्ज कर रही हैं वह ‘स्व’ तक सीमित नहीं है, वह सर्वस्व को समेट रहा है। इसी क्रम में, हमने 2025-2026 को हिन्दी उपन्यास के ‘स्त्री वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय किया।
भाषा नरेश नरेश