एल्गार परिषद मामला : मुंबई उच्च न्यायालय ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दी
तान्या नरेश
- 04 Dec 2025, 05:27 PM
- Updated: 05:27 PM
मुंबई, चार दिसंबर (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में बिना मुकदमे के गिरफ्तारी के पांच साल से अधिक समय बाद बृहस्पतिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति आर आर भोंसले की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए बृहस्पतिवार को बाबू को एक लाख रुपये का निजी मुचलका और इतनी ही रकम की जमानत राशि जमा करने का निर्देश दिया।
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने जमानत आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सके जबकि उच्च न्यायालय ने अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि बाबू पांच साल से अधिक समय से जेल में है।
एनआईए ने एसोसिएट प्रोफेसर को जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया था। हनी बाबू का पूरा नाम हनी बाबू मुसलियारवेटिल थरयिल है और वह उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर के निवासी हैं।
बाबू (59 वर्षीय) विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में कार्यरत थे और तलोजा जेल में बंद हैं।
बाबू के वकील युग मोहित चौधरी ने दलील दी थी कि आरोप अभी तय नहीं हुए हैं और उनकी रिहाई की अर्जी अब भी निचली अदालत में लंबित है।
चौधरी ने कहा था कि आठ सह-आरोपियों को उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा किया गया था और इसलिए बाबू भी बिना मुकदमे के लंबे समय तक कारावास में रहने के आधार पर जमानत मांगने के हकदार हैं।
बाबू की गिरफ्तारी का जिक्र अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्ट में किया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि जेल में रहने के दौरान उन्हें उचित चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई।
एनआईए ने हनी बाबू पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) संगठन के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार में सह-षड्यंत्रकारी होने का आरोप लगाया है।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया था कि इन भाषणों के कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के समीप हिंसा भड़क उठी थी।
शुरुआत में, पुणे पुलिस ने 2018 में एक मामला दर्ज किया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी भड़काऊ भाषणों में शामिल थे, जिससे अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क उठी। बाद में यह मामला एनआईए ने अपने हाथ में ले लिया।
एल्गार परिषद मामले में पुलिस ने 16 लोगों की गिरफ्तारी की थी।गिरफ्तार किए गए लोगों में प्रमुख वकील, कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल थे, जिन पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य होने और माओवादियों के हितों को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया गया था। आरोपियों में झारखंड निवासी 84 वर्षीय पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में हिरासत में निधन हो गया।
वरवर राव, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा, शोमा सेन, गौतम नवलखा, सुधीर धवले और रोना विल्सन सहित दस आरोपियों को जमानत दे दी गई और उन्हें रिहा कर दिया गया।
पिछले महीने उच्चतम न्यायालय ने ज्योति जगताप को अंतरिम जमानत दे दी थी।
आरोपी महेश राउत को भी उच्चतम न्यायालय ने चिकित्सा आधार पर छह सप्ताह की जमानत पर रिहा कर दिया था, जिसे बाद में बढ़ा दिया गया।
वकील सुरेन्द्र गाडलिंग और कलाकार एवं कार्यकर्ता सागर गोरखे तथा रमेश गाइचोर को अभी तक नियमित जमानत नहीं मिली है।
भाषा तान्या