बात सुनेंगे और विपक्ष को और अधिक मौका देंगे: विपक्षी दलों की नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति से उम्मीद
पारुल संतोष
- 10 Sep 2025, 10:24 PM
- Updated: 10:24 PM
नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) विपक्षी दलों ने बुधवार को उम्मीद जताई कि नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन राज्यसभा के सभापति का कार्यभार संभालने के बाद उनकी बात सुनेंगे और संसद के उच्च सदन में आम लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए अधिक मौका देंगे।
विपक्षी दलों ने पूर्व सभापति जगदीप धनखड़ के कार्यकाल के दौरान उच्च सदन में पर्याप्त समय न दिए जाने पर चिंता जताई थी। उन्होंने धनखड़ को राज्यसभा के सभापति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव भी पेश किया था, जिसे खारिज कर दिया गया था।
कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के एक दिन बाद ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में उन्हें शुभकामनाएं दीं।
रमेश ने प्रथम उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ओर से 1952 में राज्यसभा के सभापति के रूप में दिए गए उस वक्तव्य को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कोई लोकतंत्र “विपक्षी समूहों को सरकार की नीतियों की निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्पष्ट आलोचना करने की अनुमति नहीं देता है, तो वह तानाशाही में बदल सकता है।”
कांग्रेस नेता ने कहा, “डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जो कहा, उसका शब्दों और भावना, दोनों रूपों में पालन किया।”
राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति के लिए कई सुझाव दिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राधाकृष्णन को विपक्षी दलों की ओर से दिए गए नोटिस को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें रोकना नहीं चाहिए।
ओ ब्रायन ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि राधाकृष्णन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा विधेयक संसदीय समितियों के विचार के लिए भेजे जाएं। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर निलंबन नहीं होने चाहिए।
तृणमूल नेता ने कहा, “2009 से 2016 के बीच आठ वर्षों में राज्यसभा में चर्चा के लिए 110 नोटिस स्वीकार किए गए। अगले आठ वर्षों में, 2017 से 2024 के बीच, यह संख्या घटकर मात्र 36 रह गई।”
उन्होंने कहा कि राज्यसभा में उपसभापति के पैनल को एक ‘अनुलाभ’ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए और इस दायित्व को निभाने के लिए केवल पर्याप्त अनुभव वाले सांसदों को ही चुना जाना चाहिए।
ओ ब्रायन ने कहा कि संसद के अंदर विपक्षी सदस्यों के विरोध-प्रदर्शन के दृश्य सरकारी संसद टीवी पर नहीं दिखाए जाते।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन को ‘सेंसर’ नहीं किया जाना चाहिए और पूछा, “कैमरे और कार्यवाही का ऑनलाइन संपादन केवल सत्ता पक्ष की बेंचों को ही दिखाते हैं। क्या यह उचित है?”
ओ ब्रायन ने कहा कि सभापति को व्यवस्था के प्रश्न से जुड़े मुद्दों को स्वीकार करना चाहिए और सांसदों द्वारा मांगे जाने पर मत विभाजन (विधेयकों पर मतदान) की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने नवनिर्वाचित सभापति से जन्मदिन की बधाई देने की प्रथा को समाप्त करने का आग्रह किया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने कहा कि नये सभापति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विपक्ष को भी साथ लेकर चला जाए और उसे उचित समय एवं मौके दिए जाएं।
ब्रिटास ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “चुनाव खत्म हो चुके हैं। अब सभापति किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं हैं; हम उम्मीद करते हैं कि सभापति यह सुनिश्चित करेंगे कि विपक्ष को भी साथ लेकर चला जाए।”
उन्होंने कहा, “संसद और संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष एक अविभाज्य घटक है। विपक्ष के बिना संसद या लोकतंत्र का कोई वजूद नहीं है।”
ब्रिटास ने कहा, “विपक्ष को वह सम्मान, ध्यान, स्थान और समय दिया जाना चाहिए, जिसका वह हकदार है। हमें उम्मीद है कि वह न्याय करेंगे।”
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के सांसद पी संदोष कुमार ने भी उम्मीद जताई कि राधाकृष्णन “विपक्ष की आवाज” को शामिल करके “जनता की आवाज” को भी शामिल करेंगे।
कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मुझे उम्मीद है कि नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद स्थिति की गंभीरता को समझ सकते हैं, जो सत्तारूढ़ दल के तथाकथित चहेते थे। उन्होंने विपक्ष की आवाज दबाने के लिए अनैतिक, असंसदीय हथकंडे अपनाकर उसे नियंत्रित करने की कोशिश की।”
भाकपा सांसद ने कहा, “उनका (धनखड़ का) इस्तीफा अचानक सामने आया और वह पूरी तरह से गायब हो गए... हमें यह पता लगाने के लिए एक जांच आयोग गठित करने की जरूरत है कि वह कहां हैं।”
उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि नये सभापति इससे कुछ सबक लेंगे और भारत की जनता की आवाज को भी जगह देंगे। इसका मतलब विपक्ष की आवाज को भी जगह देना है... कुछ भी एकतरफा नहीं होना चाहिए।”
राधाकृष्णन को मंगलवार को भारत का 15वां उपराष्ट्रपति चुना गया। उन्हें 452 वोट मिले, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट हासिल हुए।
भाषा पारुल