उत्तराखंड: वर्ष 2000 से अब तक मानव-वन्यजीव संघर्ष में 900 से अधिक की जान गई
अमित नरेश
- 05 Dec 2025, 05:45 PM
- Updated: 05:45 PM
देहरादून, पांच दिसंबर (भाषा) उत्तराखंड में पिछले 25 वर्षों में बाघों, तेंदुओं, भालुओं और अन्य जानवरों के हमलों में 900 से अधिक लोगों की जान गई है और यह स्थिति पर्वतीय राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष के खतरनाक स्तर को उजागर करती है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ों से मिली है।
इस तरह की नवीनतम घटना बृहस्पतिवार को हुई जब पौड़ी जिले के गजाल्ड गांव में तेंदुए के हमले में 45 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई। यह वह जिला है जहां जानवरों के हमले के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं और जिसके बाद प्रशासन को कई कदम उठाने पड़े।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण 900 से अधिक लोगों की जान गई है, जिसमें तेंदुए के हमले में 548, हाथी के हमले में 230, बाघ के हमले में 106 और भालू के हमले में 70 लोग मारे गए हैं।
आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि के दौरान राज्य में सर्पदंश से 260 लोगों की जान गई।
इस बीच, तेंदुओं के हमलों में 2,127, भालू के हमलों में 2,013, हाथियों के हमलों में 234 और सांप के काटने से 1,056 लोग घायल हुए।
विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य के लगभग हर हिस्से में तेंदुए के हमले पूरे वर्ष देखे जाते हैं, जबकि भालू के हमले अक्टूबर और दिसंबर के बीच चरम पर होते हैं।
उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की है कि राज्य सरकार घायलों के इलाज का पूरा खर्च वहन करेगी तथा हमलों में मारे गए लोगों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देगी।
अधिकारियों ने बताया कि बृहस्पतिवार को पौड़ी जिले के गजाल्ड गांव में तेंदुए के हमले में राजेंद्र नौटियाल (45) की मौत हो गई, जिसके बाद प्रशासन ने जानवर को गोली मारने का आदेश दिया और क्षेत्र के विद्यालयों को दो दिन के लिए बंद कर दिया।
इस घटना से इलाके में दहशत फैल गई और लोग आक्रोशित होकर सड़कों पर उतर आए। ग्रामीणों ने स्थानीय विधायक और वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन किया।
ग्रामीणों में बढ़ते विरोध को देखते हुए, जिला मजिस्ट्रेट ने तुरंत गांव में पिंजरा लगाने का आदेश दिया। एहतियात के तौर पर स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र अस्थायी रूप से बंद कर दिए गए हैं।
जिला मजिस्ट्रेट के अनुसार, घटनास्थल पर दो शूटर तैनात किए गए हैं और उन्हें तेंदुए को मारने की अनुमति दे दी गई है।
ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग औपचारिक कार्रवाई करके मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है, जबकि इलाके में तेंदुए का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। उनका कहना था कि राहत मिलने के बजाय, ग्रामीणों में चिंता बढ़ती जा रही है।
राज्य सरकार पर मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए ठोस और स्थायी नीति नहीं बनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि समाधान के अभाव के कारण पहाड़ी गांवों में हताहतों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
स्कूली बच्चों ने भी अपनी पीड़ा व्यक्त की और कहा कि स्कूल गांव से दूर होने के कारण, वे तेंदुओं के डर से घर पर ही रहने को मजबूर हैं।
उत्तराखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल प्रमुख) रंजन कुमार मिश्रा ने स्वीकार किया कि पौड़ी, उत्तराखंड में सबसे अधिक मानव-वन्यजीव संघर्ष वाला जिला है - खासकर भालू और तेंदुए के हमलों के मामले में।
उन्होंने लोगों से अपील की कि वे गांवों में हरा कचरा, सड़े हुए फल या खाद्य अपशिष्ट खुले में न फेंके। मिश्रा ने कहा कि हाल ही में जोशीमठ में कूड़े के ढेर पर कई भालू देखे गए थे और ऐसी स्थितियां जानवरों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं और उन्हें आक्रामक बनाती हैं।
वन विभाग ने कई जगहों पर सौर ऊर्जा और फॉक्स लाइट लगाने का काम शुरू कर दिया है।
इस बीच, कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार पर वन्यजीव हमलों को लेकर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल का आरोप था, "सरकार के पास ना तो इच्छाशक्ति है और ना ही कोई ठोस योजना। हमने कई सुझाव दिए, लेकिन उनमें से किसी पर भी अमल नहीं किया गया।’’
मामलों में वृद्धि के बीच, ग्रामीणों और सामाजिक कल्याण संगठनों ने सरकार से प्रभावी नीतियों को जल्द लागू करने और स्थायी समाधान लागू करने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि यह संकट तब तक खत्म नहीं होगा जब तक वन्यजीवों के व्यवहार, उनके आवास और मानव बस्तियों के बीच संतुलन नहीं बनाया जाता।
भाषा अमित