फिजियोथेरेपिस्ट को ‘डॉक्टर’ उपाधि का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं: डीजीएचएस
पारुल संतोष
- 10 Sep 2025, 06:42 PM
- Updated: 06:42 PM
नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) ने एक दिशा-निर्देश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि फिजियोथेरेपिस्ट को अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ शब्द लिखने का अधिकार नहीं है और केवल पंजीकृत चिकित्सक ही इस उपाधि का इस्तेमाल कर सकते हैं।
भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. दिलीप भानुशाली को लिखे पत्र में डीजीएचएस डॉ. सुनीता शर्मा ने कहा कि निदेशालय को फिजियोथेरेपिस्ट के अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ और पीछे ‘पीटी’ लगाए जाने के सिलसिले में भारतीय भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास संघ (आईएपीएमआर) सहित विभिन्न संगठनों से कई ज्ञापन और आपत्तियां हासिल हुई हैं।
पत्र के मुताबिक, आईएपीएमआर ने सूचित किया है कि यह मुद्दा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय संबद्ध एवं स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय आयोग (एनसीएएचपी) की ओर से 23 मार्च को प्रकाशित फिजियोथेरेपी के लिए अनुमोदित योग्यता आधारित पाठ्यक्रम (पृष्ठ 34, बिंदु संख्या 3.2.3) से उपजा है।
पत्र में कहा गया है, “इस तरह अनुशंसित शीर्षक ‘फिजियोथेरेपिस्ट के नाम’ के आगे ‘डॉ.’ और पीछे ‘पीटी’ का इस्तेमाल है।
डॉ. शर्मा ने नौ सितंबर को लिखे पत्र में चिंता के बिंदुओं को रेखांकित करते हुए कहा कि फिजियोथेरेपिस्ट को मेडिकल डॉक्टर के रूप में प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, इसलिए उन्हें अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ उपाधि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे मरीज और आम जनता गुमराह हो सकती है, जिससे संभावित रूप से नीम-हकीमों को बढ़ावा मिल सकता है।
उन्होंने कहा कि फिजियोथेरेपिस्ट को प्राथमिक चिकित्सा अभ्यास की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और उन्हें केवल रेफर किए गए मरीजों का ही इलाज करना चाहिए, क्योंकि उन्हें चिकित्सीय स्थितियों का निदान करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, जिनमें से कुछ स्थितियां अनुचित फिजियोथेरेपी हस्तक्षेप से और भी बिगड़ सकती हैं।
डॉ. शर्मा ने कहा, “इसे देखते हुए यह कहा जाता है कि उपरोक्त सिफारिश देश में विभिन्न अदालतों और चिकित्सा परिषदों की ओर से जारी कानूनी आदेशों तथा परामर्शों के विपरीत है।”
उन्होंने कुछ अहम फैसलों का भी हवाला दिया, जिनमें पटना उच्च न्यायालय का 2003 का आदेश भी शामिल है, जिसमें कहा गया था कि जब तक फिजियोथेरेपिस्ट राज्य चिकित्सा रजिस्टर में दर्ज नहीं हो जाते, वे आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास नहीं कर सकते या अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ शब्द नहीं लगा सकते।
पत्र में कहा गया है कि तमिलनाडु मेडिकल काउंसिल की ओर से 2016 में जारी परामर्श में भी फिजियोथेरेपिस्ट को अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ शब्द का इस्तेमाल करने के खिलाफ चेतावनी दी गई है और उन्हें ‘पैरामेडिक’ या ‘टेक्नीशियन’ बताया गया है।
इसमें बेंगलुरु की एक अदालत के साल 2020 के एक फैसले का जिक्र किया गया है, जिसके तहत फिजियोथेरेपिस्ट या ‘ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट’ के ‘डॉ.’ उपाधि का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी गई थी और इस बात पर जोर दिया था कि उन्हें चिकित्सक की देखरेख में काम करना होगा।
पत्र में कहा गया है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने 2022 में फिजियोथेरेपिस्ट के अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ शब्द का इस्तेमाल करने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा था और दोहराया था कि आईएमसी अधिनियम के तहत उन्हें ‘डॉक्टर’ के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
इसमें कहा गया है कि यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि पैरामेडिकल और फिजियोथेरेपी केंद्रीय परिषद विधेयक, 2007 की परिषद की आचार समिति ने पहले फैसला किया था कि केवल आधुनिक चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी के पंजीकृत चिकित्सकों ही ‘डॉ.’ उपाधि का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पत्र में कहा गया है कि परिषद ने निर्णय लिया था कि नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ सहित चिकित्सा पेशेवरों की किसी अन्य श्रेणी को इस उपाधि का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है।
इसमें कहा गया है कि परिषद ने एक कानूनी राय भी ली थी, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई भी फिजियोथेरेपिस्ट, बिना किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता के, ‘डॉ.’ की उपाधि का इस्तेमाल करता है, तो वह भारतीय चिकित्सा डिग्री अधिनियम, 1916 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा।
पत्र के अनुसार, इस तरह के उल्लंघन पर अधिनियम की धारा 6 और 6ए के खिलाफ कृत्य के लिए धारा 7 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
भाषा पारुल