प्रधानमंत्री आरएसएस की दया पर निर्भर, इसलिए उसे खुश करने की कोशिश की: कांग्रेस
राजकुमार पारुल
- 15 Aug 2025, 11:33 PM
- Updated: 11:33 PM
नयी दिल्ली, 15 अगस्त (भाषा) कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तारीफ किए जाने को ‘‘सबसे अधिक परेशान करने वाला’’ करार देते हुए कहा कि यह संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का ‘‘उल्लंघन’’ है तथा उनके (मोदी के) 75वें जन्मदिन से पहले संघ को खुश करने का एक हताश प्रयास है।
कांग्रेस ने शुक्रवार को दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पद पर बने रहने के लिए आरएसएस की दया और सरसंघचालक मोहन भागवत के ‘‘आशीर्वाद’’ पर निर्भर हैं, इसलिए उन्होंने लाल किले की प्राचीर से इस संगठन को खुश करने की हताशा भरी कोशिश की।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री आज थके हुए थे और जल्द ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत और संगठनात्मक लाभ के लिए स्वतंत्रता दिवस का यह राजनीतिकरण देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बेहद हानिकारक है।
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘लाल किले की प्राचीर से आज प्रधानमंत्री का भाषण पुराना, पाखंड से भरा, नीरस और उबाऊ था। विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत और ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे वही दोहराए गए नारे साल-दर-साल सुने जा रहे हैं, लेकिन इनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज प्रधानमंत्री के भाषण का सबसे परेशान करने वाला पहलू लाल किले की प्राचीर से आरएसएस का नाम लेना था, जो एक संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का घोर उल्लंघन है।’’
रमेश ने आरोप लगाया कि यह अगले महीने उनके (मोदी के) 75वें जन्मदिन से पहले आरएसएस को खुश करने की एक हताशा भरी कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है।
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘चार जून 2024 की घटनाओं के बाद निर्णायक रूप से कमजोर हो चुके प्रधानमंत्री अब पूरी तरह से आरएसएस की दया पर निर्भर हैं। वह सितंबर के बाद अपने कार्यकाल के विस्तार के लिए मोहन भागवत के आशीर्वाद पर निर्भर हैं। व्यक्तिगत और संगठनात्मक लाभ के लिए स्वतंत्रता दिवस का यह राजनीतिकरण हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बेहद हानिकारक है।’’
रमेश ने दावा किया, ‘‘आज प्रधानमंत्री थके हुए थे। जल्द ही वह सेवानिवृत्त हो जाएंगे।’’
मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में आरएसएस की स्थापना के 100 साल पूरा होने का जिक्र किया और कहा कि इस संगठन की राष्ट्रसेवा की यात्रा पर देश गर्व करता है।
उन्होंने कहा कि आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है और यह प्रेरणा देता रहेगा।
कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण ‘‘भारत को जोड़ने वाला नहीं, बल्कि तोड़ने वाला’’ था।
उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘लाल किले की प्राचीर से संघ का नाम लेकर प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी, सरदार पटेल, बाबासाहेब आंबेडकर, भारत के संविधान और भारतीय तिरंगे का अपमान किया है।’’
रमेश ने प्रधानमंत्री के संबोधन के कुछ अन्य बिंदुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘मेड-इन-इंडिया’ सेमीकंडक्टर चिप का वादा अब अनगिनत बार किया जा चुका है।
उन्होंने कहा, ‘‘दरअसल, यह वादा एक बड़े झूठ के साथ किया गया है, जो कि मोदी जी की पहचान है, क्योंकि भारत का पहला सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स 1980 के दशक की शुरुआत में चंडीगढ़ में स्थापित किया गया था।’’
रमेश के मुताबिक, किसानों की रक्षा पर प्रधानमंत्री की बयानबाजी खोखली और अविश्वसनीय है।
कांग्रेस ने दावा किया कि रोजगार सृजन को लक्ष्य बनाकर की गई दिखावटी बातें भी एक विश्वसनीय रोडमैप के बजाय एक खोखली रस्म बनकर रह गई हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘प्रधानमंत्री ने एकता, समावेशिता और लोकतंत्र पर ऐसे समय में खूब भाषण दिए, जब उन्होंने निर्वाचन आयोग जैसी हमारी सबसे बुनियादी संवैधानिक संस्थाओं के पतन की कमान संभाली और उसे ध्वस्त किया।’’
रमेश ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने अभी तक विपक्ष के नेता (राहुल गांधी) द्वारा चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता पर उठाए गए सबसे बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दिया है और बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है, जिससे लाखों मतदाता मताधिकार से वंचित हो गए हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘राज्यों को सशक्त बनाने के उनके दावे खोखले हैं, क्योंकि केंद्र संघवाद को कमजोर करने, निर्वाचित राज्य सरकारों को हाशिये पर डालने और विपक्ष द्वारा संचालित सरकारों का गला घोंटने या उन्हें गिराने में लगा रहता है।’’
रमेश के अनुसार, स्वतंत्रता दिवस दूरदर्शिता, स्पष्टवादिता और प्रेरणा का क्षण होना चाहिए।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘इसके बजाय, आज का संबोधन आत्म-प्रशंसा और चुनिंदा बातों का एक नीरस मिश्रण था, जिसमें गहरे आर्थिक संकट, बेरोजगारी के संकट और हमारे समाज में बढ़ती और भयावह आर्थिक असमानता की किसी भी ईमानदार स्वीकृति का अभाव था।’’
भाषा राजकुमार