राज्यपालों पर फैसले को लेकर राष्ट्रपति के माध्यम से राय मांगना उचित नहीं: वाम दल
हक हक पवनेश
- 15 May 2025, 07:49 PM
- Updated: 07:49 PM
नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) वाम दलों ने बृहस्पतिवार को कहा कि विधेयकों पर मंजूरी को लेकर राज्यपालों के लिए समयसीमा तय करने संबंधी फैसले पर उच्चतम न्यायालय की राय लेने की खातिर राष्ट्रपति के माध्यम का इस्तेमाल करना उचित नहीं है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव एम ए बेबी ने इस मुद्दे पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की एक पोस्ट का हवाला दिया और कहा कि उनकी पार्टी इस कदम का विरोध करती है।
बेबी ने कहा, ‘‘माकपा, विधानमंडल द्वारा पारित 10 विधेयकों को रोकने में राज्यपालों की भूमिका पर तमिलनाडु सरकार की याचिका पर हाल ही में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर राष्ट्रपति के संदर्भ का विकल्प चुनने के केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध करती है।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘राज्यपाल सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं और विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के कामकाज में बाधा डाल रहे हैं। वे हमारे संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं। सभी गैर-भाजपा राज्य सरकारों को इस कदम की निंदा करनी चाहिए और राज्यों के अधिकारों की कीमत पर शक्तियों के केंद्रीकरण के खिलाफ लड़ाई में एक साथ शामिल होना चाहिए।’’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) महासचिव डी राजा ने भी केंद्र सरकार के इस कदम की निंदा की।
उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘भाकपा, राष्ट्रपति संदर्भ के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के आठ अप्रैल के फैसले पर सवाल उठाने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कदम की कड़ी निंदा करती है।’’
राजा ने कहा, ‘‘यह फैसला तमिलनाडु और केरल जैसे विपक्षी(दलों द्वारा) शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा बार-बार की जा रही अलोकतांत्रिक देरी के जवाब में आया है। लोगों की इच्छा को अवरुद्ध करने के लिए राज्यपाल के कार्यालय के ब्रिटिश राज के अवशेषों को हथियार बनाया जा रहा है।’’
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दुर्लभ स्थितियों में इस्तेमाल किए जाने वाले अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए उच्चतम न्यायालय से यह जानना चाहा है कि क्या राज्य विधानसभाओं की ओर से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति के विचार के लिए न्यायिक आदेश के जरिये समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है।
संविधान का अनुच्छेद 143(1) उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने से जुड़ी राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित है। इस शक्ति का इस्तेमाल राष्ट्रपति तब करता है जब उसे यह प्रतीत होता है कि किसी कानून या किसी तथ्य को लेकर कोई सवाल खड़ा हुआ है या इसकी आशंका है।
उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने की राज्यपाल की शक्तियों के मामले में आठ अप्रैल को एक फैसला सुनाया था, जिसके आलोक में राष्ट्रपति ने न्यायालय से 14 सवाल पूछे हैं।
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