रास में भाजपा सदस्य ने की ब्रिटिश शासकों की 'लॉर्ड' उपाधि हटाने की मांग
मनीषा माधव
- 05 Dec 2025, 03:12 PM
- Updated: 03:12 PM
नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सुजीत कुमार ने शुक्रवार को राज्यसभा में मांग की कि स्कूल की किताबों, एनसीईआरटी प्रकाशनों, सरकारी दस्तावेज़ों और आधिकारिक वेबसाइटों से ब्रिटिश वायसराय और गवर्नर जनरल को ‘लॉर्ड’ उपाधि से संबोधित करने का चलन खत्म किया जाए क्योंकि यह प्रथा स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ को बनाए रखती है।
शून्यकाल के दौरान कुमार ने शिक्षा और आधिकारिक सामग्री में उपाधि के व्यापक उपयोग का जिक्र करते हुए कहा, “मैंने इन वेबसाइटों, दस्तावेजों और स्कूल की किताबों की यादृच्छिक रूप से जांच की और यही (चलन) पाया।”
उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी की आठवीं और बारहवीं कक्षा की इतिहास की किताबों में लॉर्ड कर्ज़न, लॉर्ड माउंटबेटन, लॉर्ड डालहौजी सहित कई ब्रिटिश अधिकारियों का इसी तरह उल्लेख है।
उन्होंने कहा कि इसी तरह, संस्कृति मंत्रालय, पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी), भारतीय पुरातत्व सर्वे (एएसआई) और बिहार के राज भवन (अब 'लोक भवन') की आधिकारिक वेबसाइटें भी ब्रिटिश शासकों के लिए इस उपाधि का उपयोग करती हैं।
कुमार ने कहा, “ब्रिटिश शासन के दौरान, अपनी साम्राज्यवादी योजनाओं और नस्ली श्रेष्ठता के झूठे दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए औपनिवेशिक शासकों ने उपाधियों का उपयोग किया। यह एक ऐसी उपाधि थी जो अंग्रेजों ने अंग्रेजों के लिए दी।”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीयों के खिलाफ भयानक और बर्बर अपराध किए, तो भारत क्यों उन्हें ‘लॉर्ड’ कहकर समान सम्मान दे रहा है, जबकि देश के स्वतंत्रता सेनानियों को ऐसा सम्मान नहीं मिलता।
कुमार ने कहा, “हमार जीवंत लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र है, तथा हमें इस चलन को जारी नहीं रखना चाहिए। यह औपनिवेशिक मानसिकता बताता है, सामाजिक समानता के सिद्धांतों के खिलाफ है और हमारे संविधान की भावना के विपरीत है।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राजपथ का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' रखने के निर्णय का उदाहरण देते हुए इसे केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि जिम्मेदारी पर आधारित बदलाव बताया। उन्होंने कहा, “यह बदलाव औपनिवेशिक प्रतीकों से हटकर नागरिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय गर्व की ओर एक कदम है।”
उन्होंने प्रधानमंत्री के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए भाषण का भी उल्लेख किया, जिसमें मोदी ने अमृत काल के पंच प्रण की रूपरेखा पेश की थी। कुमार ने बताया कि दूसरा प्रण देश को किसी भी 'गुलामी की मानसिकता' से मुक्त करने पर जोर देता है।
कुमार ने निष्कर्ष निकाला, “हमारे अस्तित्व के किसी भी हिस्से में, हमारे मन और आदतों में कहीं भी दासता का कोई अंश नहीं होना चाहिए। हमें इस मानसिकता से मुक्ति पाना होगी।”
भाषा मनीषा