पंजीकरण अधिकारी मतदाताओं की नागरिकता तय नहीं कर सकते; न्यायालाय को बताया गया
रंजन नरेश
- 04 Dec 2025, 08:32 PM
- Updated: 08:32 PM
नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के मामले में सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय को बृहस्पतिवार को बताया गया कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों को मतदाताओं की नागरिकता तय करने की शक्ति नहीं है और निर्वाचन आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया में गंभीर प्रक्रियागत खामियां, पारदर्शिता की कमी और नागरिकता निर्धारण से जुड़े मामलों में अधिकारों का अतिक्रमण देखने को मिला है।
देश के अलग-अलग राज्यों में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के भारत निर्वाचन आयोग के फैसले का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं की शीर्ष अदालत में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने यह बात रखी ।
अलग-अलग फैसलों का ज़िक्र करते हुए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘यह बहुत साफ है कि नागरिकता तय करना ईआरओ (निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी) का काम नहीं है। अगर उन्हें किसी व्यक्ति की नागरिकता पर शक होता है, तो वह इसे संबंधित अधिकारियों को भेज सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि ईआरओ को संदिग्ध नागरिकों का मामला संबंधित अधिकारियों को भेजते समय संदेह का कारण दर्ज करना होगा और उन्हें अधिकारियों के फैसले का इंतजार करना होगा।
उन्होंने कहा, “चाहे वह नागरिकता कानून के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय हो, चाहे वह विदेशी अधिकरण हो, चाहे अदालत हो, इस बारे में (संबंधित) अधिकारी ही तय करेंगे।’’
उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति दिमागी तौर पर ठीक नहीं भी है, तब भी आयोग अकेले उसका नाम मतदाता सूची से नहीं हटा सकता।
उन्होंने मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाने का आरोप लगाया और कहा कि बिहार में, जब एसआईआर की घोषणा हुई थी, तब मतदाता सूची में 7.89 करोड़ (मतदाताओं के) नाम थे।
उन्होंने कहा कि मसौदा सूची का प्रकाश होने के बाद, लगभग 65 लाख नाम हटा दिए गए थे, हालांकि बाद में इसमें कुछ नाम दोबारा जोड़े गये ।
प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि बिहार में चुनाव आयोग अपने ही पारदर्शिता मैनुअल का पालन करने में विफल रहा।
पीठ 9 दिसंबर को याचिकाओं पर सुनवाई दोबारा शुरू करेगी।
मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए चुनाव आयोग द्वारा दिए गए कारण — जैसे ‘‘तेज़ी से शहरीकरण’’ और ‘‘बार-बार होने वाला पलायन’’ — स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि किसी एक क्षेत्र की मतदाता सूची संशोधित करने की आयोग की शक्ति उसे पूरे देश में ऐसा करने का अधिकार नहीं देती।
भाषा रंजन