रास में दिन के एजेंडे में शामिल विषयों पर ही नियम 267 के तहत चर्चा संभव : सभापति राधाकृष्णन
मनीषा अविनाश
- 04 Dec 2025, 02:56 PM
- Updated: 02:56 PM
नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) राज्यसभा के सभापति सी पी राधाकृष्णन ने बृहस्पतिवार को नियम 267 के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस प्रावधान के तहत केवल उन विषयों पर ही चर्चा हो सकती है, जो दिन के एजेंडे में पहले से शामिल हों लेकिन इससे इतर किसी असंबद्ध विषय पर चर्चा की अनुमति नहीं है।
सत्र दर सत्र विपक्षी दलों के सदस्य नियम 267 के अंतर्गत नोटिस देते रहे हैं, जिनमें वे दिन की कार्यसूची के अनुसार निर्धारित कामकाज को स्थगित कर अपने अनुसार महत्वपूर्ण समझे जाने वाले मुद्दों पर चर्चा की मांग करते हैं। हालांकि, बीते दो दशकों में इनमें से किसी भी नोटिस को स्वीकार नहीं किया गया है।
पिछले कुछ साल में ऐसे नोटिस की संख्या बढ़ी है क्योंकि विपक्ष के सांसदों का आरोप है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार उनकी ओर से उठाए जाने वाले विषयों पर बहस की अनुमति नहीं देती, भले ही वह अल्पकालिक चर्चा क्यों न हो।
संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में भी नियम 267 के तहत अनेक नोटिस दिए गए, लेकिन राधाकृष्णन ने सभी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे नियम के अनुरूप नहीं हैं। बुधवार को उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस प्रावधान का दुरुपयोग कर दैनिक कार्यसूची को निलंबित कराने के लिए नियमित रूप से नोटिस दिए जा रहे हैं।
सभापति ने कहा कि अब लगभग प्रतिदिन ऐसे नोटिस दिए जा रहे हैं, जबकि नियम की मंशा व्यक्तिगत सदस्यों की इच्छा पर गैर-सूचीबद्ध विषय उठाने की नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्यसभा में नियम 267 की तुलना लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव से नहीं की जा सकती, जिसे संविधान के अनुच्छेद 75(3) के तहत अनुमति है। उन्होंने कहा, ‘‘राज्यसभा सदस्यों के लिए नियम 267 के तहत किसी भी प्रकार का स्थगन प्रस्ताव देने का कोई संवैधानिक या प्रक्रियात्मक प्रावधान नहीं है।’’
सभापति ने कहा कि इस नियम के तहत केवल दिन की सूचीबद्ध कार्यवाही से जुड़े विषयों पर ही कामकाज का निलंबन संभव है और नोटिस में निलंबित किए जाने वाले नियम का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सूचीबद्ध कार्यसूची से बाहर के विषयों पर चर्चा की मांग करने वाले नोटिस ‘‘अवैध’’ हैं।
नियम 267 के तहत, सूचीबद्ध कामकाज को उस दिन के लिए पहले से सूचीबद्ध कामकाज से संबंधित कोई मुद्दा उठाने के लिए ही निलंबित किया जा सकता है।
राधाकृष्णन ने बताया कि नियम 267 में वर्ष 2000 में संशोधन किया गया था। यह संशोधन उच्च सदन के तत्कालीन सभापति कृष्णकांत की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर हुआ था, जिसमें मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और फली नरीमन जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे।
समिति ने नियम का गैर-सूचीबद्ध मुद्दों के लिए दुरुपयोग को देखते हुए इसे सिर्फ सूचीबद्ध कार्य तक सीमित रखने की सिफारिश की थी। सदन ने 15 मई 2000 को इन बदलावों को स्वीकृति दी।
उन्होंने कहा कि 1988 से 2000 के बीच नियम 267 का केवल तीन बार उपयोग हुआ और इनमें से केवल दो बार नियमों के अनुरूप उपयोग किया। संशोधन के बाद भी इस नियम के तहत चर्चा तभी हुई जब सदन में सर्वसम्मति बनी—ऐसी केवल आठ घटनाएं हुईं।
सभापति ने कहा ‘‘सदस्य देख सकते हैं कि लगभग चार दशकों में यह नियम अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में ही लागू हुआ है।’’
उन्होंने कहा कि वैध नोटिस वही माना जाएगा जो दिन के एजेंडे में शामिल किसी मामले से संबंधित हो, निलंबित किए जाने वाले नियम का स्पष्ट उल्लेख हो, नियम 267 लागू करने के ठोस आधार प्रस्तुत करे और जहां किसी अन्य नियम में पहले ही व्यवस्था हो, वहां निलंबन की मांग न करे। उन्होंने कहा कि ऐसे ही नोटिस, जिन्हें अध्यक्ष की पूर्व अनुमति प्राप्त हो, विचार के लिए लिए जाएंगे।
सभापति ने कहा कि इन टिप्पणियों एवं स्पष्टीकरणों के मद्देनज़र नियम 267 के वे नोटिस स्वीकार नहीं किए जाएंगे, जो आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि जन महत्व के जरूरी मुद्दे उठाने के लिए संसद में अन्य संसदीय उपाय उपलब्ध हैं, अतः नियम 267 के अंतर्गत मिले नोटिस स्वीकार्य नहीं हैं।
उन्होंने दो नोटिसों को नियमों के अनुरूप नहीं पाए जाने पर उन्हें अमान्य घोषित कर दिया।
इस पर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सांसद नियम 267 के नोटिस इसलिए देते हैं क्योंकि उन्हें अल्पकालिक चर्चा या अल्प सूचना प्रश्न उठाने का अवसर नहीं मिलता। उन्होंने कहा, ‘‘हम महत्वपूर्ण मुद्दों पर तत्काल चर्चा करना चाहते हैं, लेकिन सरकार इससे बचती है।’’
उन्होंने सभापति से ‘‘बुलडोज़र’’ जैसी सख्त व्यवस्था नहीं देने का आग्रह किया और कहा कि सभापति सर्वोच्च अधिकार रखते हैं और किसी नियम को नज़रअंदाज़ कर चर्चा की अनुमति दे सकते हैं।
नेता सदन और केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा ने कहा कि सरकार किसी भी चर्चा से नहीं भागती। उन्होंने बताया कि पिछले सत्र में भी सरकार ने विपक्ष द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे पर चर्चा के लिए सहमति दी थी और इस बार अगले सप्ताह चुनाव सुधारों पर चर्चा होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि सरकार चर्चा से बचती है। हम हर विषय पर चर्चा को तैयार हैं।’’
भाषा मनीषा