गांधी ने कहा था कि अंग्रेजों ने भारत के बारे में झूठी कहानी गढ़ी कि यहां पहले एकता नहीं थी : भागवत
धीरज दिलीप नरेश
- 02 Dec 2025, 05:49 PM
- Updated: 05:49 PM
(संपादक कृपया ध्यान दें : 29 नवंबर को जारी खबर के उद्धरण और संदर्भ में सुधार किया गया है, जो फाइल संख्या प्रादेशिक 113 में ‘महाराष्ट्र संपूर्ण लीड भागवत’ स्लग से प्रकाशित की गई थी)
नागपुर, दो दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने महात्मा गांधी की उस टिप्पणी को याद किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों ने झूठी कहानी गढ़ी थी कि उनके शासन से पहले भारत में एकता की कमी थी।
भागवत ने शनिवार को नागपुर में राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘गांधीजी ने (अपनी पुस्तक) हिंद स्वराज में लिखा था कि यह झूठी कहानी अंग्रेजों द्वारा हमें सिखाई गयी थी कि उनके आने से पहले हम एकजुट नहीं थे।’’
गांधीजी द्वारा 1908 में गुजराती में लिखी गई और 1909 में उनके द्वारा अंग्रेजी में अनूदित ‘हिंद स्वराज’ में 20 अध्याय हैं और यह पाठक और एक सम्पादक के बीच संवाद की शैली में लिखा गया है।
गांधी जी ने किताब में लिखा था, ‘‘अंग्रेजों ने हमें सिखाया है कि हम पहले एक राष्ट्र नहीं थे और एक राष्ट्र बनने में सदियां लगेंगी। यह निराधार है। उनके भारत आने से पहले भी हम एक राष्ट्र थे।’’
उन्होंने लिखा था, ‘‘एक विचार ने हमें प्रेरित किया। हमारी जीवन-शैली एक जैसी थी। हम एक राष्ट्र थे, इसलिए वे एक राज्य स्थापित करने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने हमें विभाजित कर दिया।’’
भागवत ने कहा कि भारत की ‘राष्ट्र’ की अवधारणा प्राचीन, नैसर्गिक और राष्ट्र की पश्चिमी अवधारणा से मौलिक रूप से भिन्न है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा किसी से कोई विवाद नहीं है। हम विवादों से दूर रहते हैं। विवाद करना हमारे देश की प्रकृति में नहीं है। साथ रहना और भाईचारा बढ़ाना हमारी परंपरा है।’’
भागवत ने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्से संघर्ष से भरी परिस्थितियों में विकसित हुए हैं।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘एक बार कोई राय बन जाने के बाद, उस विचार के अलावा कुछ भी अस्वीकार्य हो जाता है। वे अन्य विचारों के लिए दरवाजे बंद कर देते हैं और उसे ‘...वाद’ कहना शुरू कर देते हैं।’’
भागवत ने कहा, ‘‘हम राष्ट्रीयता शब्द का इस्तेमाल करते हैं, राष्ट्रवाद का नहीं। राष्ट्र के प्रति अत्यधिक गर्व के कारण दो विश्व युद्ध हुए, यही वजह है कि कुछ लोग राष्ट्रवाद शब्द से डरते हैं।’’
उन्होंने कहा कि यदि राष्ट्र की उस परिभाषा को माना जाए, जैसा कि पश्चिमी संदर्भ में समझा जाता है, तो इसमें सामान्यतः एक राष्ट्र-राज्य शामिल होता है, जहां एक केंद्रीय सरकार पूरे क्षेत्र का प्रबंधन करती है। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हालांकि, भारत हमेशा से एक ‘राष्ट्र’ रहा है, चाहे अलग-अलग शासन-व्यवस्थाएं रही हों या विदेशी शासन का दौर रहा हो।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता अहंकार या अभिमान से नहीं, बल्कि लोगों के बीच गहरे अंतर्संबंध और प्रकृति के साथ उनके सह-अस्तित्व से उपजी है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम सब भाई हैं, क्योंकि हम भारत माता की संतान हैं। हमारे बीच मानव-निर्मित कोई अन्य आधार नहीं है जैसे धर्म, भाषा, भोजन की आदतें, परंपराएँ या राज्य। विविधता के बावजूद हम एकजुट रहते हैं, क्योंकि हमारी मातृभूमि की यही संस्कृति है।’’
भागवत ने उस ज्ञान के महत्व पर भी जोर दिया, जो बुद्धिमत्ता की ओर ले जाता है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि व्यावहारिक समझ और सार्थक जीवन जीना केवल जानकारी रखने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि सच्ची संतुष्टि दूसरों की मदद करने से मिलती है - यह ऐसी अनुभूति है, जो क्षणिक सफलता के विपरीत जीवनभर बनी रहती है।
भागवत ने कार्यक्रम में युवा लेखकों से संवाद करते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी प्रौद्योगिकी का आगमन रोका नहीं जा सकता, लेकिन ‘‘हमें इसका इस्तेमाल करते हुए निपुण होना चाहिए और अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि एआई का उपयोग मानवता के हित में और मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए।
आरएसएस प्रमुख ने भाषा और संस्कृति के लिए वैश्वीकरण की चुनौती से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘यह फिलहाल एक भ्रम है। वैश्वीकरण का वास्तविक युग अभी आना बाकी है और उसे भारत लेकर आयेगा।’’
उन्होंने कहा कि भारत में शुरू से ही वैश्वीकरण का विचार रहा है, जिसे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कहा जाता है।
भागवत ने कहा, ‘‘हम वैश्विक बाजार नहीं बनाते, लेकिन हम एक परिवार बनाएंगे और यही वास्तविक वैश्वीकरण का सार होगा। वह युग आना अभी बाकी है, इसलिए वैश्वीकरण को लेकर मन में कोई भय या भ्रम न रखें।’’
भाषा धीरज दिलीप