पीलिया फैलने की बात छिपाने की कोशिश की वजह से वीआईटी में हिंसा हुई: मध्यप्रदेश सरकार
दिमो राजकुमार
- 02 Dec 2025, 05:01 PM
- Updated: 05:01 PM
भोपाल, दो दिसंबर (भाषा) मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में ‘वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी)’ के परिसर में 25 नवंबर को हुई हिंसा, प्रबंधन की पीलिया फैलने की बात छिपाने की कोशिश, खाने की खराब गुणवत्ता की शिकायतों को नज़रअंदाज़ करने और विधार्थियों के साथ बदसलूकी का नतीजा थी। अधिकारियों ने यह दावा किया है।
तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट पर मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने संस्थान के कुलगुरु को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और सात दिनों के अंदर जवाब मांगा है।
एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि नोटिस का जवाब न देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी।
वीआईटी के भोपाल परिसर के रजिस्ट्रार ने कहा कि नोटिस मिल गया है और सरकार को जवाब दिया जाएगा।
कोठरी में वीआईटी परिसर में करीब 4,000 विधार्थियों ने खाने-पीने की कथित "खराब" गुणवत्ता और दूसरे मुद्दों को लेकर हिंसक प्रदर्शन किया था। उन्होंने इमारत और गाड़ियों में तोड़फोड़ और आगजनी की थी।
मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापन एवं संचाल) अधिनियम, 2007 की धारा 41(1) के तहत जारी नोटिस में कहा गया है कि अगर प्रबंधन सात दिनों के अंदर जवाब नहीं देता है, तो इस कानून की धारा 41(2) के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई
की जायेगी, जिसका मतलब है कि सरकार संस्थान का प्रबंधन अपने हाथ में ले लेगी।
वीआईटी परिसर में करीब 15,000 विधार्थी पढ़ रहे हैं, लेकिन भोजनालय की सुविधा "बहुत खराब" है।
नोटिस में कहा गया है, "हालांकि प्रबंधन ने इन सुविधाओं को ठेके पर कर दिया है, लेकिन इन पर उसका कोई असरदार नियंत्रण नहीं है। विधार्थियों ने खाने और पानी की गुणवत्ता के बारे में नकारात्मक राय दी है।"
इसमें यह भी बताया गया कि 14 से 24 नवंबर तक, 35 विधार्थी - 23 लड़के और 12 लड़कियां - पीलिया से पीड़ित थे। प्रबंधन ने भी समिति के सामने इस बात को मान लिया है।
नोटिस में कहा गया है, "परिसर को एक किले की तरह रखा गया है जहां प्रबंधन के अपने कानून हैं और किसी को भी उनके बारे में बात करने की इजाज़त नहीं है। परिसर में तानाशाही रवैया हावी है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि सीहोर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएच एमओ) को भी संस्थान के गेट पर दो से चार घंटे तक रोका गया।"
विद्यार्थियों ने जांच समिति को बताया कि उन्हें शिकायत करने पर "अनुशासन के नाम पर उनके पहचान पत्र ज़ब्त करने, प्रायोगिक परीक्षा में कम नंबर देने और परीक्षा में न बैठने देने जैसी ज़ुल्म सहने" की धमकी दी गई।
नोटिस के मुताबिक, जब उन्होंने खाने की खराब गुणवत्ता की शिकायत की, तो उनसे जो भी बना हो, उसे खाने के लिए कहा गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि परिसर में भरोसे के बजाय डर का माहौल है। प्रबंधन किसी भी स्थिति को संभालने में "खुद पर भरोसा और विश्वास" का दावा करता है लेकिन इसी रवैये की वजह से विधार्थियों में अशांति फैल गई, जो हिंसा में बदल गई।
जब प्रबंधन स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम रहा, तो उसने (26 नवंबर को) रात करीब दो बजे पुलिस/प्रशासन को सूचित किया, जिसके बाद पुलिस वाले मौके पर पहुंचे।
जांच समिति ने यह भी पाया कि प्रबंधन ने पीने के पानी और पानी के दूसरे स्त्रोत का ‘माइक्रो बायोलॉजिकल ऑडिट’ नहीं किया था। जब विद्यार्थियों ने देखा कि उनके साथी बीमार पड़ रहे हैं, तो वे क्रोधित हो गए और प्रबंधन ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करने के बजाय घर जाने को कहा।
भाषा दिमो