एसआईआर पर चर्चा के लिए तैयार, लेकिन समयसीमा तय न करें : सरकार
मनीषा माधव
- 02 Dec 2025, 01:37 PM
- Updated: 01:37 PM
नयी दिल्ली, दो दिसम्बर (भाषा) सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि वह मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और चुनाव सुधारों पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष इसे कराने के लिए समयसीमा तय करने पर जोर न दे।
संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रीजीजू ने यह बात उस समय कही जब उच्च सदन में विपक्षी दलों के सदस्य लगातार दूसरे दिन एसआईआर पर तत्काल चर्चा की मांग कर रहे थे।
रीजीजू ने कहा कि वह विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत कर चर्चा के लिए उपयुक्त समय पर सहमति बनाने की कोशिश करेंगे।
इससे पहले विपक्षी सदस्य नारेबाजी करते हुए अपने स्थानों से आगे आ गए और एसआईआर पर चर्चा की मांग करने लगे।
विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दावा किया कि एसआईआर के काम के दबाव के कारण 28 बीएलओ (ब्लॉक स्तर अधिकारी) की मृत्यु हो चुकी है। उन्होंने कहा, “यह तात्कालिक मुद्दा है। लोकतंत्र, नागरिकों और देश के हित में चर्चा अभी होनी चाहिए। हम सहयोग करेंगे। हम चाहते हैं कि इस मुद्दे पर अभी चर्चा हो।”
इससे पहले, उच्च सदन की बैठक शुरू होने पर सभापति सी पी राधाकृष्णन ने आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए। यह प्रक्रिया पूरी होते ही विपक्षी सदस्यों ने एसआईआर के मुद्दे पर तत्काल चर्चा की मांग उठाई और नारे लगाते हुए आसन के समीप आ गए। सभापति ने इसे अनुशासनहीनता बताते हुए उन्हें अपने स्थानों पर लौटने को कहा।
सभापति ने बताया कि उन्हें नियत कामकाज स्थगित कर नियम 267 के तहत पांच विषयों पर चर्चा करने के लिए 20 नोटिस मिले लेकिन ये नोटिस प्रक्रियागत आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थे इसलिए उन्होंने इन्हें स्वीकार नहीं किया।
यह सुनते ही विपक्षी सदस्यों का हंगामा तेज हो गया। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सभापति से एसआईआर के मुद्दे पर चर्चा की अनुमति देने का आग्रह किया।
सभापति ने न तो नोटिस देने वाले सांसदों के नाम बताए और न ही उन नोटिसों के विषय की जानकारी दी। इसे विपक्षी सदस्यों ने इसे सदन की परंपरा के खिलाफ बताया।
खरगे ने कहा कि राज्यसभा की परंपरा रही है कि 267 नोटिस देने वाले सदस्य और उसके विषय दोनों का उल्लेख किया जाए। उन्होंने कहा ‘‘लेकिन अब अचानक देखा जा रहा है कि न तो नोटिस देने वाले सांसदों के नाम बताए गए और न ही उनके नोटिस के विषयों के बारे में बताया गया।’’
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि सदन की कार्यवाही के संचालन के दौरान पूर्व सभापति केवल सदन के नेता जे पी नड्डा की ओर देखते थे जबकि राधाकृष्णन कार्यवाही के संचालन के दौरान केवल अपनी मेज की ओर देखते हैं। उन्होंने कहा ‘‘हम चाहते हैं कि आप हर तरफ देखें।’’
सभापति ने जवाब दिया कि सदन में व्यवस्था होने पर वह सबकी बात सुनेंगे। तब खरगे ने कहा ‘‘सदन में व्यवस्था बनाना आपकी, सरकार की जिम्मेदारी है, यह हमारा काम नहीं है।’’
राधाकृष्णन ने कहा कि सोमवार को संसदीय मामलों के मंत्री ने चर्चा की मांग पर सकारात्मक जवाब देते हुए कहा था कि कुछ समय चाहिए।
सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा तथा संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने आश्वस्त किया कि सरकार चर्चा के लिए उपयुक्त समय तय करने को लेकर विपक्ष से विचार-विमर्श करेगी।
नड्डा ने कहा कि रीजीजू ने कहा था कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए जल्द ही विपक्षी नेताओं की एक बैठक बुलाई जाएगी।
रीजीजू ने कहा कि विपक्ष समय का दबाव न डाले। उन्होंने कहा ‘‘मैंने कल कहा था कि कृपया समय को लेकर शर्त न रखें। ’’
उन्होंने कहा “मैं सभी दलों से औपचारिक और अनौपचारिक बातचीत करूंगा। परामर्श की प्रक्रिया शुरू होगी तो बात आगे बढ़ेगी। हर चीज़ मशीन की तरह नहीं चल सकती।”
उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष चुनाव नहीं जीत पाने की निराशा सदन में उतार रहा है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में बातचीत और चर्चा अहम होती है। उन्होंने कहा ‘‘देश में कई मुद्दे हैं। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए कि एक मुद्दे को कमतर करें और दूसरा उठाएं। सभी मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।’’
रीजीजू ने कहा ‘‘आप चुनाव नहीं जीत सकते। लोग आपके ऊपर भरोसा नहीं करते। और आप अपना गुस्सा सदन में निकालते हैं। यह सही नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव जनता का मंच होता है। ‘‘मैंने कल भी कहा था कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन हमें पहले औपचारिक रूप से बैठक करनी होगी। समय पर जोर देना ठीक नहीं है।’’
सभापति ने हंगामे के बीच ही शून्यकाल चलाने का प्रयास किया। लेकिन उन्होंने शून्यकाल के तहत मुद्दे उठाने के लिए जिन विपक्षी सदस्यों के नाम पुकारे, उनमें से ज्यादातर ने एसआईआर के मुद्दे पर तत्काल चर्चा की मांग उठाई। सभापति ने इन सदस्यों को अनुमति नहीं दी और दूसरे सदस्यों के नाम पुकारे।
उन्होंने हंगामा कर रहे सदस्यों से कहा ‘‘आप सदन को हल्के में नहीं ले सकते। मैं अनुशासनहीनता की अनुमति नहीं दे रहा हूं।’’
शोर-शराबे के बीच ही द्रमुक सदस्य डॉ. तिरुची शिवा ने व्यवस्था का प्रश्न उठाना चाहा लेकिन सभापति ने कहा कि जब तक सदन में व्यवस्था नहीं होगी, वह इसे स्वीकार नहीं कर सकते।
उन्होंने शिवा से कहा ‘‘क्या व्यवस्था का प्रश्न ? आप विषय पर बोलना चाहते हैं या नहीं ? जब इतना शोर हो रहा है तो मैं व्यवस्था के प्रश्न की अनुमति कैसे दे दूं ? सदन में व्यवस्था नहीं है तो व्यवस्था का प्रश्न कैसा ? सदन को कोई भी हल्के में नहीं ले सकता।’’
सभापति ने हंगामा कर रहे सदस्यों से अपने स्थानों पर लौटने को कहा। उनके अपने स्थानों पर जाने के बाद शिवा ने व्यवस्था का प्रश्न उठाया और नियम 267 के तहत दिए गए नोटिसों को अस्वीकार करने का कारण न बताने पर आपत्ति जताई।
सभापति ने कहा कि उन्होंने अपनी व्यवस्था में नोटिस अस्वीकार करने के कारण का संकेत कर दिया था।
हंगामे के बीच ही राधाकृष्णन ने शून्यकाल चलाने का प्रयास किया। शून्यकाल के तहत निर्दलीय सदस्य अजित कुमार भुइयां (निर्दलीय) ने असम के एक विश्वविद्यालय में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया।
भाजपा सदस्य के. लक्ष्मण ने नशा के बढ़ते चलन पर चिंता जताई और निरोधक उपायों का कड़ाई से पालन करने की मांग की। इसी पार्टी के बाबूराम निषाद ने केन-बेतवा नदी-लिंक परियोजना का मुद्दा उठाया।
भाजपा की रेखा शर्मा ने आंगनवाड़ियों की अवसंरचना के आधुनिकीकरण की मांग की। इसी पार्टी के कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह ने मांग की कि उत्तर प्रदेश में भोजपुरी को समर्पित साहित्य अकादमी स्थापित की जाए।
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अयोध्या रामी रेड्डी अला ने दिल्ली में प्रदूषण का मुद्दा उठाया और कहा कि हर सातवें व्यक्ति की समय पूर्व जान जा रही है।
भाजपा की ममता मोहंता और निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा ने भी आसन की अनुमति से अपने अपने मुद्दे उठाए। इस दौरान एसआईआर के मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्ष का हंगामा जारी था।
राधाकृष्णन ने बार बार सदस्यों से शांत रहने, अपने स्थानों पर लौट जाने और कार्यवाही चलने देने की अपील की लेकिन हंगामा थमते न देख उन्होंने 11 बज कर 56 मिनट पर सदन की बैठक दोपहर दो बजे तक स्थगित कर दी।
भाषा मनीषा