कर्नाटक में एससी, एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले कानून के तहत नयी भर्तियों पर रोक
पारुल दिलीप
- 01 Dec 2025, 10:33 PM
- Updated: 10:33 PM
बेंगलुरु, एक दिसंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अधिनियम के तहत कोई भी नयी भर्ती अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी है। इस फैसले को राज्य सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (राज्य के तहत शैक्षणिक संस्थानों में सीटों और पदों एवं सेवाओं में नियुक्ति में आरक्षण) अधिनियम 2022 के तहत नयी भर्तियों पर प्रतिबंध अगले आदेश तक जारी रहेगा।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने सरकार को 19 नवंबर 2025 से पहले अधिसूचित भर्ती प्रक्रियाओं को जारी रखने की अनुमति दे दी, भले ही उनमें बढ़ा हुआ आरक्षण लागू होता हो।
अदालत ने स्पष्ट किया कि इन भर्तियों के माध्यम से की जाने वाली सभी नियुक्तियां कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी।
मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सीएम पूनाचा की खंडपीठ ने रायचूर के महेंद्र कुमार मित्रा और बेंगलुरु निवासी महेश की ओर से दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 27 नवंबर को अंतरिम आदेश जारी किया।
दोनों याचिकाओं में 2022 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है, खास तौर पर एससी के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी के लिए आरक्षण तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत किए जाने पर।
कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 32 प्रतिशत कोटा बरकरार रखा गया है, जिससे राज्य में कुल आरक्षण 56 प्रतिशत हो जाता है।
खंडपीठ ने निर्देश दिया कि अधिनियम के तहत जारी सभी नियुक्ति या पदोन्नति आदेशों में इस बात का स्पष्ट रूप से जिक्र होना चाहिए कि वे अनंतिम हैं और अदालत के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेंगे, ताकि बढ़े हुए कोटे को रद्द किए जाने की स्थिति में उम्मीदवारों को समानता का दावा करने से रोका जा सके।
अदालत ने स्पष्ट किया कि चल रही भर्तियों को जारी रखने की यह अंतरिम अनुमति संबंधित मामलों में अदालतों या न्यायाधिकरणों की ओर से पहले से पारित किसी भी विशिष्ट अंतरिम या अंतिम आदेश के आड़े नहीं आएगी।
कर्नाटक सरकार ने पहले दलील दी थी कि जारी भर्तियों को रोकने से जनशक्ति की कमी के कारण प्रशासनिक कामकाज बाधित होगा।
याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि बढ़ा हुआ आरक्षण इंद्रा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर से निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है।
भाषा पारुल