फडणवीस सरकार का एक साल : अवसंरचना, निवेश के साथ गठबंधन में तालमेल बनाए रखने पर रहा जोर
धीरज पवनेश
- 01 Dec 2025, 06:49 PM
- Updated: 06:49 PM
मुंबई, एक दिसंबर (भाषा)महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत ‘महायुति’ सरकार पांच दिसंबर को एक साल का कार्यकाल पूरा करेगी। यह अवधि सरकार के बुनियादी ढांचे के विस्तार व निवेशकों के विश्वास को पुख्ता करने के प्रयासों के साथ-साथ तीन-दलीय गठबंधन के भीतर नाजुक संतुलन को बनाए रखने को लेकर उल्लेखनीय रही है।
‘महायुति’ में भाजपा के अलावा अजित पवार नीत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना शामिल है। पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में गठबंधन को 288 सदस्यीय विधानसभा में 235 सीट पर जीत मिली थी और ‘महायुति’ के नेताओं ने इसे ‘‘विकास की राजनीति के लिए स्पष्ट और मजबूत जनादेश’’ करार दिया था।
चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार बनाने में हुई देरी को लेकर कई तरह की अटकलों के बीच देवेंद्र फडणवीस ने पांच दिसंबर 2024 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
इस देरी के पीछे को लेकर अटकलें थीं कि क्या एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनने का दूसरा मौका मिलेगा, क्योंकि यदि उन्हें शीर्ष पद नहीं मिलता है तो शिवसेना नेता सरकार का हिस्सा बनने के इच्छुक नहीं हैं। मंत्रियों का शपथ ग्रहण फडणवीस के शपथ लेने के 10 दिन बाद और नागपुर में नयी विधानसभा के पहले (शीतकालीन)सत्र की पूर्व संध्या पर 15 दिसंबर को हुआ।
फडणवीस सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती 9 दिसंबर को बीड के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या के बाद सामने आई, जब मुख्य आरोपी वाल्मीक कराड के राकांपा मंत्री धनंजय मुंडे का करीबी सहयोगी होने की बात सामने आई। कराड की गिरफ्तारी के बाद सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई। देशमुख को प्रताड़ित करते हुए दिखाए गए वीडियो पर राष्ट्रीय आक्रोश और भारी दबाव की वजह से मुंडे ने इस साल मार्च में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने लगातार दावा किया है कि फडणवीस सरकार ने ‘तेजी, पारदर्शिता और समन्वय’ के साथ काम किया है और ‘‘बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति दी है।’’ वे अपने दावे के समर्थन में मुंबई, पुणे और ठाणे में मेट्रो रेल परियोजनाओं, तटीय सड़क, ट्रांस हार्बर लिंक और मेगा वधावन बंदरगाह का हवाला देते हैं।
सत्तारूढ़ गठबंधन के एक नेता ने कहा कि महायुति ने ऐसे समय में महाराष्ट्र को भारत के प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने के लिए काम किया है, जब पूंजी के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा तीव्र है।
‘महायुति’ ने बार-बार अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री और उनके उप-मुख्यमंत्री (एकनाथ शिंदे और अजित पवार)ने कहा है कि सरकार ने ‘‘अटकलों के बावजूद पूर्ण समन्वय के साथ काम किया है।’’ हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अलग-अलग हित और नेतृत्व की वजह से साथ तीन-दलीय गठबंधन का प्रबंधन करना एक चुनौती बनी हुई है।
शिवसेना के कुछ मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोप लगे, जबकि पुणे भूमि सौदे में शामिल कंपनी में उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ के साझेदार होने के दावे ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दिया। विवाद बढ़ने पर विक्रय विलेख को रद्द कर दिया गया और प्राथमिकी दर्ज की गई। हालांकि विपक्षी दलों ने इसमें पार्थ का नाम न होने की आलोचना की।
पुणे में जैन ट्रस्ट की एक संपत्ति एक डेवलपर को बेचे जाने के मामले ने केंद्रीय मंत्री मुरलीधर मोहोल को विपक्ष के निशाने पर ला दिया, हालांकि उन्होंने इस मामले से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार किया। समुदाय के विरोध के बीच डेवलपर द्वारा अपने कदम पीछे खींचने के बाद यह सौदा भी रद्द कर दिया गया।
विपक्ष ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वादा करने के बावजूद कृषि ऋण माफी की घोषणा नहीं करने और ‘लाडकी बहिन योजना’ के लाभार्थियों के लिए मासिक वित्तीय सहायता में वृद्धि नहीं करने के लिए भी फडणवीस सरकार की आलोचना की।
अगस्त के अंतिम सप्ताह में दक्षिण मुंबई में कार्यकर्ता मनोज जारंगे की भूख हड़ताल के परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने की उनकी कई मांगों को स्वीकार कर लिया, जिससे मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
हालांकि, अन्य पिछड़ा वर्ग की ओर से इसका कड़ा विरोध हुआ, जिसके कारण सरकार को मराठा आरक्षण की तरह ही मंत्रिमंडल की एक उप समिति गठित करके संतुलन बनाने का नाजुक प्रयास करना पड़ा।
अंदरूनी कलह की अटकलों के बीच, तीनों सत्तारूढ़ दलों ने घोषणा की कि काम एकजुटता और बिना किसी तनाव के आगे बढ़ रहा है। हालांकि, पिछले महीने शिवसेना के मंत्रियों ने राज्य भाजपा अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण द्वारा कल्याण-डोंबिवली और उप-मुख्यमंत्री के अन्य प्रभाव वाले जिलों में उनके पदाधिकारियों को पार्टी में शामिल कराने की पृष्ठभूमि में मंत्रिमंडल की एक बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
सरकार के दूसरे वर्ष में प्रवेश करते ही नेताओं ने कहा कि उनका ध्यान बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे को पूरा करने, ग्रामीण संपर्क को मजबूत करने और व्यापार सुगमता को बढ़ाने पर रहेगा।
भाषा धीरज