बिहार: उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना का भू-अर्जन कार्य 15 दिसंबर तक पूरा करने का निर्देश
कैलाश वैभव अमित
- 24 Nov 2025, 12:39 PM
- Updated: 12:39 PM
पटना, 24 नवंबर (भाषा) बिहार के मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना की प्रगति की सोमवार को विस्तृत समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए संबंधित अधिकारियों को भू-अर्जन प्रक्रिया हर हाल में 15 दिसंबर 2025 तक पूरा करने का निर्देश दिया।
यह अंतर-राज्यीय सिंचाई परियोजना झारखंड और बिहार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इससे मुख्य रूप से गया और औरंगाबाद जिलों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होगा, जिससे कृषि उत्पादन को गति मिलने की उम्मीद है। बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं समय-समय पर इस परियोजना की प्रगति की समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने वित्त विभाग को भू-अर्जन के भुगतान में आ रही बाधाओं को तुरंत दूर करने का निर्देश दिया, ताकि कार्य निरंतर गति से आगे बढ़ सके।
जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल ने बताया कि परियोजना का संयुक्त निरीक्षण पूरा कर लिया गया है और ‘पोल शिफ्टिंग’ का कार्य तेजी से जारी है। उन्होंने भू-अर्जन की प्रगति का उल्लेख करते हुए कहा कि औरंगाबाद जिले में 41.251 हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले 27.080 हेक्टेयर भूमि अर्जित कर ली गई है, जबकि गया जिले में 96.749 हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले 5.350 हेक्टेयर भूमि प्राप्त कर ली गई है।
उल्लेखनीय है कि चार अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने परियोजना के शेष कार्यों को 2,430.76 करोड़ रुपये (जिसमें 1,836.41 करोड़ रुपये केंद्र का हिस्सा है) की संशोधित लागत से पूरा करने की मंजूरी दी थी। इससे पहले अगस्त 2017 में शेष कार्य के लिए 1,622.27 करोड़ रुपये की लागत स्वीकृत की गई थी।
शेष कार्य पूरे होने पर यह परियोजना झारखंड और बिहार के चार सूखा-ग्रस्त जिलों में 42,301 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में वार्षिक सिंचाई उपलब्ध कराएगी। परियोजना में झारखंड स्थित लातेहार जिले के कुटकू गांव के पास उत्तरी कोयल नदी पर बांध, मोहम्मदगंज (पलामू) में बैराज, दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) और बाईं मुख्य नहर (एलएमसी) शामिल हैं।
गौरतलब है कि बिहार सरकार ने वर्ष 1972 में बांध निर्माण और अन्य सहायक गतिविधियां शुरू की थीं, परंतु 1993 में बेतला नेशनल पार्क और पलामू बाघ अभयारण्य पर संभावित खतरे को देखते हुए बांध निर्माण रोक दिया गया। इसके बावजूद परियोजना 71,720 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई प्रदान कर रही थी। बिहार के विभाजन (2000) के बाद बांध और बैराज झारखंड में आ गए, जबकि आरएमसी और एलएमसी का बड़ा हिस्सा बिहार में है।
वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने परियोजना को इसके परिकल्पित लाभ तक पहुंचाने के लिए शेष कार्यों को पूरा करने हेतु सहायता देने का निर्णय लिया। पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए जलाशय का स्तर कम करने का फैसला किया गया। बाद में दोनों राज्यों के अनुरोध पर नहरों की पूर्ण लाइनिंग, गया वितरण प्रणाली, रीमॉडलिंग और पुनर्वास पैकेज जैसे अतिरिक्त कार्यों को भी संशोधित लागत में शामिल किया गया।
संशोधित लागत 2,430.76 करोड़ रुपये में से केंद्र सरकार 1,836.41 करोड़ रुपये वहन करेगी।
भाषा कैलाश वैभव