दलाई लामा की सेहत 'बहुत अच्छी' है, इससे चीन है 'बेचैन' : तिब्बती नेता
मनीष सलीम नोमान
- 23 Nov 2025, 09:38 PM
- Updated: 09:38 PM
लखनऊ, 23 नवंबर (भाषा) सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन (सीटीए) के नेता पेनपा त्सेरिंग ने रविवार को कहा कि इसी साल जुलाई में 90 साल के हुए दलाई लामा की सेहत अब भी 'बहुत अच्छी' है अैर उनकी लंबी उम्र चीन को 'बेचैन' कर रही है।
दो दिन के दौरे पर लखनऊ पहुंचे त्सेरिंग ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''वे (चीन) दलाई लामा की मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन दलाई लामा कहते रहते हैं कि वह अभी 20 साल और जियेंगे, शायद 130 साल तक। उनकी सेहत बहुत अच्छी है। इसलिए मैं कहता रहता हूं कि देखते हैं कि कम्युनिज़्म इस दलाई लामा से ज्यादा समय तक जिंदा रहता है या दलाई लामा कम्युनिज़्म से अधिक वक्त तक जीवित रहते हैं।''
जुलाई में धर्मशाला में अपने 90वें जन्मदिन के मौके पर तिब्बती आध्यात्मिक नेता और 14वें दलाई लामा ने यह ऐलान करके सभी अटकलों पर विराम लगा दिया था कि उनका एक उत्तराधिकारी होगा। हालांकि उन्होंने यह साफ नहीं किया कि यह पुनर्जन्म से होगा या बाहर से।
तिब्बती लोगों की आम मान्यता के अनुसार दलाई लामा मृत्यु के बाद 'पुनर्जन्म' लेते हैं।
त्सेरिंग ने कहा कि 'बाहर से आने' की परिकल्पना यानी 'अपने जीवनकाल में ही उत्तराधिकारी का नाम बताना' भी तिब्बती लोगों का विश्वास है! हालांकि नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त दलाई लामा ने यह साफ न करके चीनी लोगों को उलझन में रखा है कि उनका उत्तराधिकारी कैसे आएगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या यह सब चीनियों को उलझन में रखने की एक चाल है, त्सेरिंग ने कहा, ''हममें से कुछ लोग जो भारत में चीन को करीब से देखते हैं, वे यह मानते हैं कि चीन अप्रत्याशिता को संभाल नहीं सकता।''
त्सेरिंग ने कहा कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ जैसे उनके दौरे तिब्बती मुद्दे के बारे में जागरूकता फैलाने और चीन द्वारा तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने को चुनौती देने के एक बड़े अभियान का हिस्सा थे। उन्होंने चीन पर 'सांस्कृतिक जनसंहार' करने का आरोप भी लगाया।
उन्होंने कहा, ''मुझे कभी-कभी लगता है कि हम धीरे-धीरे मर रहे हैं क्योंकि चीन हमारी पहचान के मूल पर हमला कर रहा है।''
त्सेरिंग ने बताया, ''तिब्बती विचारधारा करुणा और अहिंसा समेत प्राचीन भारतीय ज्ञान पर आधारित है और इसीलिए हमने तिब्बती मुद्दे के समाधान के लिए अहिंसक तरीका चुना। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद चीन की सरकार ने वैसी प्रतिक्रिया नहीं दी जैसी कि हम चाहते थे।''
उन्होंने कहा, ''चीनियों ने तिब्बत पर सिर्फ कब्जा ही नहीं किया बल्कि उन्होंने हमें शारीरिक और मानसिक रूप से गुलाम बना लिया। इसीलिए आज तिब्बत में जो हो रहा है, वह सांस्कृतिक जनसंहार है। इसीलिए कभी-कभी मुझे लगता है कि हम धीरे-धीरे मर रहे हैं जैसे कोई अजगर अपने शिकार को धीरे-धीरे निगलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीनी सरकार अब हमारी पहचान की जड़ पर हमला कर रही है।''
त्सेरिंग अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान शिक्षण संस्थाओं में जाएंगे और शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि यह सब तिब्बती मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिश का हिस्सा है।
उन्होंने कहा, ''कल ही मैं जिन भारतीय डॉक्टरों से मिला उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि क्या तिब्बती भाषा चीनी भाषा से जुड़ी है? दरअसल, भारत में भी लोगों को ये बुनियादी बातें नहीं पता हैं।''
सीटीए नेता ने कहा कि तिब्बती लिपि सातवीं सदी में गुप्त काल के दौरान भारतीय देवनागरी लिपि से आई थी। तिब्बती बौद्ध धर्म भारत से आया था।
उन्होंने बताया कि कैसे सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक रूप से तिब्बती लोग चीनियों की तुलना में भारतीयों से ज्यादा करीब और जुड़े हुए थे।
त्सेरिंग ने कहा, ''चीनियों ने औपनिवेशिक अंदाज के बोर्डिंग स्कूल शुरू किये हैं, जहां चार साल की उम्र से बच्चों को ज़्यादातर मैंडरिन, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी सिखाने के लिए भेजना पड़ता है। तिब्बती भाषा की हर सप्ताह बस कुछ कक्षाएं ही पढ़ाई जाती हैं।''
उन्होंने कहा, ''आप पुस्तकालय में तिब्बती साहित्य भी नहीं रख सकते। हमारा धर्म भाषा पर आधारित है इसलिए अगर भाषा खत्म हो जाती है तो धर्म पर भी असर पड़ता है। अब चीन दावा कर रहा है कि बौद्ध धर्म चीन से तिब्बत और फिर दूसरी जगहों पर आया। चीन इतिहास को पूरी तरह तोड़-मरोड़ रहा है।''
भाषा मनीष सलीम