युद्ध का मैदान भी हमारे लिए ‘धर्मक्षेत्र’, जहां धर्म व कर्तव्य होगा वहीं जय होनी है: योगी आदित्यनाथ
आनन्द नोमान खारी
- 23 Nov 2025, 06:46 PM
- Updated: 06:46 PM
लखनऊ, 23 नवंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को कहा कि युद्ध का मैदान भी हमारे लिए ‘‘धर्मक्षेत्र’’ है और जहां धर्म व कर्तव्य होगा, वहीं जय होनी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत की उपस्थिति में रविवार को यहां जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित ‘दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव’ को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘पूरे भारत को हमने धर्मक्षेत्र माना, इसलिए युद्ध का मैदान भी हमारे लिए धर्मक्षेत्र ही है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस के लिए कोई देश या संगठन आर्थिक मदद नहीं करता है, यह केवल सामाजिक सहयोग से चलता है।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘कर्तव्यों से जुड़ा क्षेत्र है और धर्मक्षेत्र में जो युद्ध लड़ा जा रहा है, वह कर्तव्यों के लिए लड़ा जा रहा है। यही भाव सामने आता है तो अंत में परिणाम यह होता है कि जहां धर्म और कर्तव्य होगा, वहीं विजय होगी, इससे इतर कुछ नहीं हो सकता।’’
योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘किसी को गुरुर नहीं पालना चाहिए कि अधर्म के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त हो जाएगी। यह भारत के सनातन धर्म की परंपरा है कि प्रकृति का अटूट नियम है, सदैव से यही होता आया है। इसलिए हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया के अंदर कोई जगह नहीं होगी, जहां युद्ध का मैदान धर्मक्षेत्र के रूप में जाना जाता हो, लेकिन हमारे यहां हर कर्तव्य को पवित्र भाव से माना गया है।''
मुख्यमंत्री ने नसीहत देते हुए कहा, ‘‘अच्छा करेंगे तो पुण्य के भागीदार बनेंगे और बुरा करेंगे तो पाप के भागीदार बनेंगे। ऐसा जब हर धर्मावलंबी सोचता है तो वह अच्छा करने का प्रयास करता है।’’
योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘भारत ने विश्व मानवता को प्राचीन काल से संदेश दिया है। हमने कभी यह नहीं कहा कि हम जो कह रहे वही सही है, हमारी ही उपासना विधि सर्वोत्तम है। हमने सब कुछ होते हुए भी कभी अपनी श्रेष्ठता का डंका नहीं पीटा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जो आया उसे शरण दिया, जिसके ऊपर विपत्ति आई, उसके साथ खड़े हो गए। 'जियो और जीने दो' की प्रेरणा किसी ने दी है तो वह भारत की भूमि ने दी है। 'वसुधैव कुटुंबकम' की प्रेरणा भी भारत की धरती ने ही दी है।’’
योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘श्रीमद्भगवदगीता नयी प्रेरणा देती है, यह धर्म से शुरू होती है और अंत में भी उसी मर्म के साथ विराम लेती है। श्रीमद्भगवदगीता धर्म की वास्तविक प्रेरणा है। भारत की मनीषा ने धर्म को कर्तव्य के साथ जोड़कर देखा है।”
उन्होंने कहा, “हमने धर्म को केवल उपासना की विधि नहीं माना है। उपासना विधि उसका छोटा सा हिस्सा है। हर व्यक्ति अपने पंथ, संप्रदाय और उपासना विधि के अनुसार आस्था तय करता है, लेकिन मुख्य रूप से धर्म हमारे यहां जीवन जीने की कला है। हमने इसे ‘वे ऑफ लाइफ’ के रूप में कहा है।”
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत को निष्काम कर्म का प्रेरणा स्रोत बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “आरएसएस शताब्दी महोत्सव के कार्यक्रम से जुड़ रहा है। दुनिया के राजदूत और उच्चायुक्त हमसे पूछते हैं कि आप लोगों का आरएसएस से जुड़ाव है, तो हम कहते हैं हां! हमने स्वयंसेवक के रूप में कार्य किया है।”
योगी ने कहा, “वे इसके वित्तपोषण का पैटर्न पूछते हैं, तब हम बताते हैं कि यहां ओपेक देशों या अंतरराष्ट्रीय चर्च से पैसा नहीं आता। यह संगठन समाज के सहयोग से खड़ा है और समाज के लिए हर क्षेत्र में समर्पित भाव से कार्य करता है। किसी भी पीड़ित की जाति, धर्म, क्षेत्र या भाषा की परवाह किए बिना हर स्वयंसेवक उसकी सेवा को अपना कर्तव्य मानता है।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “राष्ट्र प्रथम के भाव के साथ हर पीड़ित संग खड़ा होना (जो भारत को परम वैभव तक ले जाने में सहायक हो सकता है) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 100 वर्षों में आरएसएस ने सेवा के साथ कोई सौदेबाजी नहीं की, जबकि कुछ लोग दुनिया और भारत में सेवा को सौदे के माध्यम के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वे लोभ, लालच और दबाव से भारत की जनसांख्यिकी बदलने के लिए छल और छद्म का सहारा लेकर देश की आत्मा पर प्रहार करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे समय में भगवान की वाणी, श्रीमद्भगवदगीता, नई प्रेरणा बन सकती है।”
आयोजन के मुख्य वक्ता स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि लोगों के मन में सवाल हो सकता है कि आयोजन का प्रयोजन क्या है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह किसी प्रकार का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि प्रेरणा है और जियो गीता संस्था एक आह्वान है।
स्वामी ज्ञानानंद ने कहा, ‘‘जियो गीता, गीता के साथ जीने की आदत बनाने की प्रेरणा है। समय की आवश्यकता है और भौतिकवाद ने कई संसाधन दिए हैं, लेकिन इसके साथ समस्याएं भी तेजी से बढ़ी हैं। पूरे विश्व में अलग-अलग प्रकार से महाभारत फिर से दिखाई दे रहा है। समाधान क्या है? उस महाभारत में गीता का उपदेश दिया गया था।’’
कार्यक्रम के मुख्य आयोजक, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी मणि प्रसाद मिश्र ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर गीता और गोविंद के माध्यम से कल्याण और लोक भावना से प्रेरित संत परंपरा के अद्भुत रत्न स्वामी ज्ञानानंद जी का संकल्प है कि इस देश में ही नहीं, अपितु समस्त धरा मंडल पर गीता न केवल पढ़ी और समझी जाए, बल्कि गीता को गुनगुनाते हुए यह लोक दोबारा भवसागर में न पड़े। यह पूरा प्रदेश गीतामय और गोविंदमय हो जाए।’’
मिश्र ने कहा, ‘‘गीता सब कुछ है। गुरुवर के संकल्प से एक दिसंबर को गीता जयंती पर सभी लोग 11 बजे एक साथ गीता पाठ करेंगे। अगले वर्ष 20 दिसंबर, 2026 को गीता जयंती है और उस दिन पूरे प्रदेश में एक मिनट एक साथ 11 बजे गीता पाठ होगा। शासन और समाज नदी की सफाई में सहयोग करेंगे।’’
इसके पहले मोहन भागवत के समारोह में पहुंचने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और स्वामी ज्ञानानंद समेत कई संतों ने उनका स्वागत किया।
अखिल भारतीय आचार्य महासभा के महासचिव स्वामी परमात्मा नंद जी, श्रीधराचार्य जी महाराज, संतोषाचार्य जी महाराज ‘सतुआ बाबा’, स्वामी धर्मेंद्र दास जी महाराज, रामचंद्र दास जी महाराज, स्वामी शशिकांत दास जी महाराज, रामलाल, राज्यसभा सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा, कार्यक्रम संयोजक मणि प्रसाद मिश्र आदि मौजूद रहे।
भाषा आनन्द नोमान