जलवायु, प्रौद्योगिकी की चुनौतियों से निटपने को वैश्विक न्याय व्यवस्था में सुधार जरूरी: जितेंद्र सिंह
किशोर आनन्द खारी
- 22 Nov 2025, 07:49 PM
- Updated: 07:49 PM
लखनऊ, 22 नवंबर (भाषा) केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को कहा कि समुद्री खनन, अंतरिक्ष मलबे, कृत्रिम मेधा (एआई) जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए ‘‘न्यायिक नेतृत्व’’ और ‘‘वैश्विक न्याय व्यवस्था’’ तत्काल बड़े बदलाव की आवश्यकता है।
मंत्री ने कहा कि चार जरूरी बदलाव किए जाने चाहिए जिनमें अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानूनों को मजबूत करना, नयी प्रौद्योगिकियों के लिए युक्तिसंगत नियम बनाना, पुराने कानूनों को समय के हिसाब से बदलना और न्यायिक दृष्टिकोण में आने वाली पीढ़ियों के हितों को शामिल करना शामिल हैं।
केंद्रीय मंत्री शनिवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ‘सिटी मांटेसरी स्कूल’ (सीएमएस) में दुनिया के मुख्य न्यायाधीशों के 26वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस समारोह में अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला भी शामिल हुए।
सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून अब अलग-थलग काम नहीं कर सकता, क्योंकि आज देश जलवायु परिवर्तन से लेकर समुद्र के बिगड़ते हालात जैसी ‘‘आपस में जुड़ी हुई समस्याओं’’ का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कृत्रिम मेधा, क्वांटम कंप्यूटिंग और ऑटोमेशन जैसी नयी प्रौद्योगिकियों को नियंत्रित करने के लिए नियमों की जरूरत पर जोर दिया। सिंह ने कहा कि समाज को अपने ऊपर नियंत्रण रखना होगा और यह समझना होगा कि सीमाएं कहां तक हैं।
अंतरिक्ष मलबे और साइबर खतरों जैसे मुद्दों का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि आज अदालतों के सामने आने वाले कई मामले ऐसे हैं जिनकी दो दशक पहले कल्पना भी नहीं की गई थी, लेकिन अब न्यायाधीशों को बिना स्पष्ट कानूनों के ही इन पर निर्णय लेना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि इसलिए कानूनी ढांचे को मौजूदा हालात के अनुसार तुरंत बदलने की जरूरत है।
मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय व्यवस्था में पीढ़ियों के बीच समानता को शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि आज के मुद्दों पर लिए गए न्यायिक फैसलों का असर आने वाली पीढ़ियों तक पड़ता है।
उन्होंने कहा, “किसी फैसले का असर अगली पीढ़ी को महसूस होगा। जलवायु परिवर्तन और अंतरिक्ष से जुड़े मुद्दे हमसे भी ज्यादा समय तक रहेंगे।”
सिंह ने कहा कि आज के न्यायविद कानूनी व्याख्या, वैज्ञानिक समझ और नैतिक जिम्मेदारी इन तीनों के संगम पर काम कर रहे हैं, यानी उन्हें फैसले लेते समय इन तीनों पहलुओं को संतुलित करना पड़ता है।
उन्होंने कहा, “आप सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं हो सकता।''
सिंह ने यह भी कहा कि ‘एआई टूल्स’ का सही इस्तेमाल भी निजता बनाम निगरानी और आजादी बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विरोधाभासों के बीच बहुत ज्यादा ईमानदारी की मांग करता है।
नई प्रौद्योगिकियों से पैदा हुई चुनौतियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कृत्रिम मेधा और ‘मशीन लर्निंग’ इंसानी सोच को इस हद तक प्रभावित कर रही हैं कि बच्चों को भी शायद यह पता नहीं चलता कि उनकी सोच किस तरह बदली जा रही है।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की भूमिका और भी ज्यादा मुश्किल हो जाती है।
वैश्विक संकटों के बारे में सिंह ने कहा कि भारत को जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर, साइबर सुरक्षा खामियां और समुद्र के विनाश का खतरा है। भारत के पास लगभग 12,000 किलोमीटर लंबी तटीय सीमा है, जो दुनिया में सबसे लंबी में से एक है। ऐसे में भारत ने सागरों को अपनी विकासात्मक प्राथमिकताओं के केंद्र में रखा है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी महत्ता को 2022 और 2023 के स्वतंत्रता दिवस भाषणों में भी रेखांकित किया था।
सिंह ने कहा कि देश ने लंबे समय तक समुद्रों में छिपे खजाने धातुएं और खनिज, जैव विविधता और मत्स्य संसाधनों को कम आंका, लेकिन वर्तमान सरकार ने ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत गहरे समुद्र की खोज को प्राथमिकता दी है।
अंतरिक्ष और तकनीकी क्षेत्र में भारत की तरक्की पर मंत्री ने कहा कि देश ने ‘अंतरिक्षत मलबे’ का पता लगाने के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगाए गए हैं और हाल के सुधारों के बाद अंतरिक्ष को निजी निवेश के लिए खोल दिया गया है।
सिंह ने हो रहे बदलावों की व्यापक चर्चा करते हुए यह भी बताया कि कैसे पहले समाज का नजरिया बच्चों की बीमारी को “भगवान की कृपा” या कर्म का नतीजा मानता था, जबकि आज भारत वैज्ञानिक स्वास्थ्य समाधान में सबसे आगे है।
भाषा किशोर आनन्द