आईआईटी-गुवाहाटी ने दूषित पानी से सीसा हटाने के लिए पर्यावरण-अनुकूल समाधान ईजाद किया
पारुल नरेश
- 21 Nov 2025, 04:18 PM
- Updated: 04:18 PM
नयी दिल्ली, 21 नवंबर (भाषा) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने ‘साइनोबैक्टीरिया’ की मदद से दूषित जल से सीसा हटाने की एक पर्यावरण-अनुकूल विधि ईजाद की है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने बताया कि ‘साइनोबैक्टीरिया’ एक सूक्ष्म जीवाणु है, जो प्रकाश संश्लेषण के जरिये ऊर्जा उत्पादन में सक्षम है। उन्होंने बताया कि नयी विधि दुनिया के सबसे स्थायी पर्यावरणीय खतरों में से एक के लिए टिकाऊ और किफायती समाधान उपलब्ध कराती है।
इस शोध के नतीजे ‘जर्नल ऑफ हैजार्डस मैटेरियल्स’ में प्रकाशित किए गए हैं।
आईआईटी गुवाहाटी में जीवविज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर देबाशीष दास के मुताबिक, सीसा वैश्विक स्तर पर सबसे जहरीले प्रदूषकों में से एक है, जो 80 करोड़ से अधिक बच्चों को प्रभावित करता है, जिनमें से लगभग 27.5 करोड़ अकेले भारत में हैं।
उन्होंने कहा, “यह (सीसा) आमतौर पर औद्योगिक कचरे, कृषि अपशिष्ट और पुरानी जल पाइपलाइनों के माध्यम से जल स्रोत में प्रवेश करता है। एक बार जब कोई जल स्रोत सीसे से दूषित हो जाता है, तो यह (सीसा) दशकों तक वहां बना रहता है, जीवित जीवों में जमा होता रहता है और तंत्रिका तंत्र, हृदय, गुर्दे और विकास संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा करता है।”
दास के अनुसार, “पानी से सीसा हटाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक उपाय, मसलन रासायनिक उपचार और सिंथेटिक अधिशोषक आम तौर पर महंगे होते हैं तथा अक्सर द्वितीयक प्रदूषक पैदा करते हैं।”
उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए “हमने ‘बायोरेमेडिएशन’ का सहारा लिया, जो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें सूक्ष्मजीव दूषित वातावरण को साफ करते हैं।”
दास ने बताया, “ये सूक्ष्मजीव प्राकृतिक रूप से मिट्टी और पानी में मौजूद रहते हैं तथा पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने में मदद करते हैं। टीम ने ‘साइनोबैक्टीरियम’ के विभिन्न भागों पर शोध किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन-से घटक सीसा संदूषकों को अवशोषित करने और हटाने में सबसे अधिक कुशल हैं।”
उन्होंने बताया कि शोध के दौरान ‘साइनोबैक्टीरियम’ के ‘एक्सोपॉलीसेकेराइड’ या ईपीएस भाग ने दूषित जल से सीसा हटाने की उच्चतम दक्षता (92.5 फीसदी) प्रदर्शित की।
दास ने कहा, “पानी में से सीसा हटाने वाले इन ‘साइनोबैक्टीरियल बायोसॉर्बेंट’ को न्यूनतम ऊर्जा की जरूरत होती है। यही नहीं, इनकी संख्या परिष्कृत बुनियादी ढांचे के बिना भी बढ़ाई जा सकती है, जिसके चलते ये व्यापक अनुप्रयोग के लिए अधिक किफायती हो जाते हैं।”
उन्होंने बताया, “शुरुआती अनुमानों से पता चलता है कि हमारी पद्धति के इस्तेमाल से पानी से सीसा हटाने पर आने वाला कुल खर्च पारंपरिक तकनीकों के मुकाबले लगभग 40-60 प्रतिशत कम है।”
भाषा पारुल