प्रधान न्यायाधीश गवई ने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल न करने का समर्थन किया
शफीक प्रशांत
- 16 Nov 2025, 06:33 PM
- Updated: 06:33 PM
अमरावती, 16 नवंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने रविवार को दोहराया कि वह अनुसूचित जातियों के आरक्षण में मलाईदार तबके (क्रीमी लेयर) को शामिल न करने के पक्ष में हैं।
गवई ने ‘75 वर्षों में भारत और जीवंत भारतीय संविधान’ नामक एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आरक्षण के मामले में एक आईएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना एक गरीब खेतिहर मजदूर के बच्चों से नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘मैंने आगे बढ़कर यह विचार रखा कि मलाईदार तबके की अवधारणा, जैसा कि इंद्रा साहनी (बनाम भारत संघ एवं अन्य) के फैसले में पाया गया है, लागू होनी चाहिए। जो अन्य पिछड़ा वर्ग पर लागू होता है, वही अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए, हालांकि इस मुद्दे पर मेरे फैसले की व्यापक रूप से आलोचना हुई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, मेरा अब भी मानना है कि न्यायाधीशों से सामान्यतः अपने फैसलों को सही ठहराने की अपेक्षा नहीं की जाती है, और मेरी सेवानिवृत्ति में अभी लगभग एक सप्ताह बाकी है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में समानता या महिला सशक्तीकरण बढ़ा है।
न्यायमूर्ति गवई ने 2024 में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के बीच भी क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए।
यह कहते हुए कि भारतीय संविधान ‘‘जड़’’ नहीं है, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर का हमेशा से मानना था कि इसे संशोधन की गुंजाइश वाला और एक अत्याधुनिक जीवंत दस्तावेज होना चाहिए क्योंकि अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन का प्रावधान करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक ओर डॉ. आंबेडकर की आलोचना इस बात के लिए की गई कि संविधान में संशोधन करने की शक्तियां बहुत उदार हैं, और दूसरी ओर, यह भी आलोचना की गई कि कुछ संशोधनों के लिए आधे राज्यों और संसद के दो-तिहाई बहुमत के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, और इस तरह से संशोधन करना मुश्किल है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान सभा में संविधान के मसौदे की प्रस्तुति के दौरान डॉ. आंबेडकर के भाषण सबसे महत्वपूर्ण भाषण हैं जिन्हें कानून के प्रत्येक छात्र को पढ़ना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संविधान के कारण ही भारत में अनुसूचित जाति से दो राष्ट्रपति हुए हैं और वर्तमान राष्ट्रपति भी अनुसूचित जनजाति की एक महिला हैं।
भाषा शफीक