न्यायालय ने बिना शर्त माफी मांगने पर उत्तराखंड के वन अधिकारी के खिलाफ अवमानना का मामला बंद किया
संतोष सुरेश
- 11 Nov 2025, 09:07 PM
- Updated: 09:07 PM
नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बिना शर्त माफी मांग लेने पर भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी।
अधिकारी ने जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में कथित अवैध निर्माण के लिए सीबीआई की ओर से दर्ज मामले में अपने अभियोजन पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए बिना शर्त माफी मांग ली थी।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कथित अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के मामले में भारतीय वन सेवा के अधिकारी एवं कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के पूर्व निदेशक राहुल पर मुकदमा चलाने के राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी, वह भी तब जब यह मामला शीर्ष अदालत के संज्ञान में था।
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने 15 अक्टूबर को इस घटनाक्रम पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय शीर्ष अदालत की टिप्पणियों और आदेशों के खिलाफ अपील पर कैसे विचार कर रहा है।
उत्तराखंड सरकार ने शीर्ष अदालत के विभिन्न आदेशों के बाद अधिकारी पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। उच्चतम न्यायालय राज्य के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में अवैध निर्माण और पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई की निगरानी कर रहा है।
शीर्ष अदालत ने न केवल अधिकारी को अवमानना नोटिस जारी किया था, बल्कि न्यायिक रिकॉर्ड को अपने पास स्थानांतरित करने के अलावा उच्च न्यायालय के आदेश पर भी रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को बिना शर्त माफी मांगे जाने का संज्ञान लिया और अधिकारी की 21 साल की ‘बेदाग सेवाओं’ और भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए माफ कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कानून की गरिमा दोषियों को सजा देने में नहीं, बल्कि माफ करने में है।’’ उन्होंने आगे कहा कि अधिकारी उचित न्यायिक मंच के समक्ष मामले में बरी करने जैसी राहत पाने के लिए उपाय अपना सकते हैं।
हालांकि, पीठ ने आगाह किया कि वह राज्य सरकार द्वारा शीर्ष अदालत के कहने पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दिए जाने को चुनौती नहीं दे सकते।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय से कमतर नहीं हैं, लेकिन उन्हें ऐसे मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जिसकी निगरानी सर्वोच्च न्यायालय कर रहा हो।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मामला सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में है, तो उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’’
भाषा संतोष