सीआईआई ने सरकार से वृद्धि के वित्तपोषण के लिए विशेष कोष बनाने को कहा
पाण्डेय अजय
- 09 Nov 2025, 02:02 PM
- Updated: 02:02 PM
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) उद्योग निकाय सीआईआई ने रविवार को सरकार से देश की दीर्घकालिक वृद्धि, जुझारू क्षमता और विदेशों में महत्वपूर्ण आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एक विशेष कोष बनाने का आग्रह किया।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा कि पेशेवर रूप से प्रबंधित एक मजबूत ‘भारत विकास एवं रणनीतिक कोष’ (आईडीएसएफ) की स्थापना की जानी चाहिए। भारत की वृद्धि को गति देने और देश के रणनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इसकी जरूरत है।
इसमें आगे कहा गया है कि एक राष्ट्रीय कोष के रूप में आईडीएसएफ घरेलू स्तर पर भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और विदेशों में महत्वपूर्ण आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक पूंजी जुटाएगा।
सीआईआई का मानना है कि अनुशासित योजना और वित्तपोषण के साथ, आईडीएसएफ अगले दो दशक में 2047 तक 1,300 से 2,600 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच एक प्रबंधित कोष का निर्माण कर सकता है।
इसमें सुझाव दिया गया कि समय के साथ चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार की इक्विटी का एक हिस्सा इस कोष में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे ये उद्यम केवल विनिवेश के साधन न रहकर भारत के वैश्विक विस्तार के साधन बन सकते हैं।
इसके अलावा यह कोष बहुपक्षीय और द्विपक्षीय साझेदारों के साथ मिलकर निवेश करते हुए दीर्घकालिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बचत जुटाने के लिए बुनियादी ढांचा, हरित और प्रवासी बॉन्ड जारी कर सकता है।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत वृद्धि के लिए अपना स्थायी वित्तीय इंजन बनाए।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत अवसरों के एक निर्णायक दौर में प्रवेश कर रहा है। हम पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं, लेकिन 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने के लिए, हमें दीर्घकालिक पूंजी के संरचनात्मक, स्थाई स्रोतों की जरूरत है जो वार्षिक बजट चक्र से परे हों।’’
उन्होंने कहा कि आईडीएसएफ एक संप्रभु और पेशेवर रूप से प्रबंधित साधन होगा, जो राष्ट्रीय क्षमता तथा रणनीतिक सुरक्षा में निवेश करेगा।
सीआईआई का प्रस्ताव इस मान्यता पर आधारित है कि बुनियादी ढांचे, ऊर्जा रूपांतरण, विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और मानव विकास में भारत की महत्वाकांक्षाओं के लिए ऐसे पैमाने पर धन की आवश्यकता होगी, जिसे सिर्फ वार्षिक बजटीय आवंटन से पूरा नहीं किया जा सकता।
भाषा पाण्डेय