अदालत ने शाहबानो की बेटी की याचिका पर फिल्म ‘हक’ की रिलीज को लेकर फैसला सुरक्षित रखा
हर्ष नरेश
- 04 Nov 2025, 08:29 PM
- Updated: 08:29 PM
इंदौर, चार नवंबर (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने हिन्दी फिल्म ‘हक’ की सात नवंबर (शुक्रवार) को प्रस्तावित रिलीज रुकवाने की गुहार के साथ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
यह याचिका अपने शौहर की ओर से तलाक दिए जाने के बाद उससे गुजारा भत्ता हासिल करने के वास्ते शीर्ष अदालत तक साहसिक कानूनी लड़ाई के लिए मशहूर शाह बानो बेगम की बेटी सिद्दिका बेगम खान ने दायर की है।
फिल्म ‘हक’ में यामी गौतम धर और इमरान हाशमी मुख्य भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म को उस शाहबानो प्रकरण से प्रेरित बताया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1985 में उच्चतम न्यायालय ने तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं के लिए भरण-पोषण के संबंध में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
शाहबानो की बेटी की याचिका में दावा किया गया है कि यह फिल्म उनके परिवार की सहमति के बिना बनाई गई है और इसमें उनकी दिवंगत मां के निजी जीवन से जुड़े प्रसंगों का गलत तरह से चित्रण किया गया है।
याचिका के प्रतिवादियों की फेहरिस्त में केंद्र सरकार, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) और फिल्म 'हक'
के निर्देशक सुपर्ण एस. वर्मा के साथ इस फिल्म से जुड़ी तीन निजी कंपनियां शामिल हैं।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा ने सभी संबद्ध पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
अदालत में लम्बी बहस के दौरान सिद्दिका बेगम खान के वकील तौसीफ वारसी ने फिल्म 'हक' के टीजर और ट्रेलर का हवाला देते हुए कहा कि फिल्म में शाह बानो बेगम की गलत छवि चित्रित की गई है।
फिल्म से जुड़ी कंपनियों के वकीलों की ओर से इस दलील को खारिज किया गया और एकल पीठ से याचिका निरस्त किए जाने की गुहार की।
शाहबानो बेगम इंदौर की रहने वाली थीं। उन्होंने 1978 में अपने वकील पति मोहम्मद अहमद खान द्वारा तलाक दिए जाने के बाद उनसे गुजारा-भत्ता पाने के लिए स्थानीय अदालत में मुकदमा दायर किया था।
शाहबानो की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने 1985 में इस महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था। मुस्लिम संगठनों के विरोध प्रदर्शनों के बाद राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम बनाया था। इस कानून ने शाहबानो प्रकरण में शीर्ष न्यायालय के फैसले को अप्रभावी बना दिया था।
वर्ष 1992 में शाह बानो का इंतकाल हो गया था।
भाषा हर्ष