कांग्रेस, राकांपा (शरद चंद्र पवार) का 'कठोर' जन सुरक्षा विधेयक के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन
अमित माधव
- 10 Sep 2025, 09:35 PM
- Updated: 09:35 PM
मुंबई, 10 सितंबर (भाषा) महाराष्ट्र में कांग्रेस, राकांपा (शरद चंद्र पवार) और अन्य विपक्षी दलों ने बुधवार को जन सुरक्षा विधेयक के खिलाफ राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन किया और इसे ‘‘जनविरोधी, तानाशाहीपूर्ण और कठोर’’ बताया।
विधेयक का उद्देश्य वाम नक्सली संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाना और इसके तहत अपराधों को संज्ञेय तथा गैर-जमानती बनाना है।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि विधेयक के प्रावधान अस्पष्ट हैं और उनका दुरुपयोग हो सकता है, जिससे असहमति का दमन हो सकता है और निर्दोष लोगों के खिलाफ अन्यायपूर्ण कार्रवाई हो सकती है। विपक्षी दलों ने कहा है कि सरकार इस विधेयक का इस्तेमाल असहमति जताने वालों के खिलाफ जरिये के रूप में करेगी।
कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) के अलावा, शिवसेना (उबाठा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) और अन्य समान विचारधारा वाले संगठनों ने इस साल जुलाई में राज्य विधानमंडल द्वारा पारित महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक, 2024 के खिलाफ जिला और तालुका स्तर पर प्रदर्शन का संयुक्त आह्वान किया था।
इस विधेयक में ‘‘गैरकानूनी’’ घोषित गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का प्रावधान किया गया है। वाम नक्सली संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा पारित विशेष विधेयक की प्रमुख विशेषताओं में सात साल तक की कैद, 5 लाख रुपये तक का जुर्माना और इसके तहत दर्ज अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत करना शामिल है।
राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में विधेयक के पारित होने से राज्यपाल की स्वीकृति के बाद इसके कानून बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
मुंबई में शिवाजी पार्क में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के पास विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें महा विकास अघाडी (एमवीए) और वाम दल के नेता शामिल हुए। कांग्रेस विधायक डॉ. ज्योति गायकवाड, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता प्रकाश रेड्डी, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष राजन भोसले और अन्य ने इसमें भाग लिया।
पुणे शहर में, राकांपा (शरद चंद्र पवार) की कार्यकारी अध्यक्ष एवं सांसद सुप्रिया सुले के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी पुणे रेलवे स्टेशन के पास डॉ. बी. आर. आंबेडकर स्मारक के पास एकत्र हुए और संविधान के समर्थन में नारे लगाए। उन्होंने सरकार की "तानाशाही प्रवृत्तियों" की निंदा की।
सुले ने आरोप लगाया कि जन सुरक्षा की आड़ में लाया गया यह कानून सरकार को आलोचकों को सीधे जेल भेजने का अधिकार देगा। उन्होंने आरोप लगाया, "यह राज्य प्रायोजित तानाशाही के जरिये जनता की आवाज दबाने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है।’’
राकांपा (शरद चंद्र पवार) के कई पदाधिकारी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में शामिल हुए।
कांग्रेस नेता सतेज पाटिल ने कोल्हापुर में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जबकि पार्टी नेताओं ने नांदेड़ में भी धरना और विरोध प्रदर्शन किया। राकांपा (शरद चंद्र पवार) नेता युगेंद्र पवार ने पुणे जिले में अपने गृहनगर बारामती में एक विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सोलापुर के हिंगोली में प्रदर्शन किया।
इसी तरह के प्रदर्शन बुलढाणा, जालना, अमरावती, नांदेड़, चंद्रपुर, पालघर, रत्नागिरि, धाराशिव, सोलापुर, लातूर, ठाणे, जलगांव, अकोला, वाशिम, नासिक, धुले और राज्य भर के अन्य जिला और तालुका मुख्यालयों में आयोजित किए गए।
माकपा ने जन सुरक्षा विधेयक को "जनविरोधी और असंवैधानिक" बताते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल से इसे मंजूरी न देने का आग्रह किया।
पार्टी के प्रदेश सचिव डॉ. अजीत नवले ने कहा कि विधेयक में प्रयुक्त "गैरकानूनी गतिविधियां" और "गैरकानूनी संगठन" शब्द अस्पष्ट हैं और इनका दुरुपयोग हो सकता है, जिससे निर्दोष नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन संगठनों के सदस्यों के खिलाफ अन्यायपूर्ण कार्रवाई हो सकती है।
उन्होंने कहा कि सरकार की संयुक्त पड़ताल समिति को विधेयक पर लोगों से 12,700 प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें से 9,500 ने इसे वापस लेने की मांग की।
नवले ने कहा, ‘‘हालांकि, बिना किसी जन सुनवाई के और केवल तीन उपबंधों में मामूली बदलाव करके, सरकार ने अपने बहुमत का इस्तेमाल करते हुए विधेयक को विधानसभा और विधान परिषद से जल्दबाज़ी में पारित करा लिया।’’
उन्होंने चेतावनी दी कि इस कानून का इस्तेमाल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों, सविनय अवज्ञा, मार्च और सड़क जाम को दबाने के लिए किया जाएगा, जो लोकतांत्रिक असहमति का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, "यह एक जनविरोधी और संविधान-विरोधी कानून है जिसका दुरुपयोग सरकार निश्चित रूप से करेगी।’’
माकपा ने आग्रह किया कि राज्यपाल से इस पर अपनी सहमति रोककर विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानमंडल को वापस भेजें।
कांग्रेस ने कहा कि सभी समान विचारधारा वाले दल तालुका और जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए।
कांग्रेस ने विधेयक को "कठोर" और "तानाशाही" करार देते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल सरकार के खिलाफ असहमति को दबाने के जरिये के रूप में किया जाएगा।
कांग्रेस ने एक बयान में कहा, ‘‘ ‘अर्बन नक्सलवाद’ से निपटने के लिए पहले से ही कड़े कानून मौजूद हैं। नया कानून अनावश्यक है और इसका उद्देश्य कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को रोकना है, जिनमें कुछ औद्योगिक घरानों का पक्ष लेने वाली नीतियां भी शामिल हैं।’’
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह विधेयक गिरफ्तारी, कैद और यहां तक कि संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान करता है। कांग्रेस ने साथ ही, चेतावनी दी कि यह लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा है।
विपक्षी दलों ने अपने आंदोलन को तेज करने के लिए 2 अक्टूबर को भी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।
नागपुर में, गांधी प्रतिमा के पास वैरायटी चौक पर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। इसका नेतृत्व कांग्रेस शहर इकाई के अध्यक्ष एवं विधायक विकास ठाकरे ने किया। छत्रपति संभाजीनगर में, सांसद कल्याण काले और अन्य नेता ‘इंडिया’ गठबंधन के कार्यकर्ताओं के साथ आंदोलन में शामिल हुए।
भाषा अमित