राष्ट्रपति संदर्भ: शीर्ष अदालत ने कहा, राज्यपाल से उचित समय के भीतर विधेयकों पर कार्रवाई की उम्मीद
सुरेश पवनेश
- 09 Sep 2025, 10:14 PM
- Updated: 10:14 PM
नयी दिल्ली, नौ सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 में भले ही "यथाशीघ्र" शब्द वर्णित न हो, लेकिन राज्यपालों से ‘‘उचित समय’’ के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।
अनुच्छेद 200 राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है, जिससे उन्हें विधेयक पर स्वीकृति देने, स्वीकृति रोकने, विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस करने या राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक को सुरक्षित रखने की अनुमति मिलती है।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रपति संदर्भ पर आठवें दिन विभिन्न पक्षों दलीलें सुनते हुए एक बार फिर कहा कि वह केवल संविधान की व्याख्या करेगी और व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों की पड़ताल नहीं करेगी।
राष्ट्रपति संदर्भ में इस बारे में शीर्ष अदालत का संवैधानिक मंतव्य मांगा गया है कि क्या न्यायालय राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है।
अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान के अनुसार, राज्यपाल, विधेयक को स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किए जाने के बाद, यथाशीघ्र उसे सदन में पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं, बशर्ते वह धन विधेयक नहीं है। राज्यपाल विधानसभा द्वारा विधेयक पर पुनर्विचार करके वापस भेजे जाने के बाद उसपर अपनी मंजूरी नहीं रोकेंगे।
संविधान में न्यायमूर्ति गवई के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर भी शामिल हैं।
पंजाब सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने संविधान पीठ से अनुरोध किया कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 200 में "यथाशीघ्र" शब्द रखा है और विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित करने में न्यायालय के लिए कोई बाधा नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि 'यथाशीघ्र' शब्द न भी हो, तो भी राज्यपाल से उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।’’
केरल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विधेयक प्राप्त होने पर उन्हें संबंधित मंत्रालयों को भेजने की प्रथा अपनाई थी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम व्यक्तिगत मामलों पर निर्णय नहीं लेंगे।’’
कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने संविधान पीठ के समक्ष कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट प्रदान करता है, क्योंकि उनके पास कार्यपालिका की जिम्मेदारी नहीं है।
उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए सुब्रमण्यम ने पीठ को बताया कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपाल की संतुष्टि, मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही है।
सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘अनुच्छेद 361 उन्हें प्रतिरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल वे व्यक्तिगत रूप से नहीं, बल्कि नियमों के माध्यम से मंत्रियों की सलाह से करते हैं।’’
उन्होंने कहा कि संविधान में ‘‘समानांतर प्रशासन’’ की परिकल्पना नहीं की गई है अथवा राज्यपालों को निर्वाचित सरकारों को दरकिनार करने की अनुमति नहीं है।
उन्होंने 44वें संविधान संशोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि यह राष्ट्रपति को मंत्रियों की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की अनुमति देता है, लेकिन अंततः उन्हें विधेयक को स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने सुब्रमण्यम से पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, जो लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी से संबंधित है, सरकार को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना पड़ता है।
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इस न्यायालय के कई निर्णय हैं, जिनमें यह माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और सीआरपीसी की धारा 197 के संबंध में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं।
मामले की सुनवाई संभवत: 10 सितंबर को समाप्त हो जाएगी।
इससे पहले तीन सितंबर को पश्चिम बंगाल सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि विधेयक के रूप में जनता की आकांक्षाओं को राज्यपालों और राष्ट्रपति की ‘‘मनमर्जी और इच्छाओं’’ के अधीन नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से रोका गया है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासित राज्य सरकार ने कहा था कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते हैं और विधानसभा द्वारा पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जो न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
न्यायालय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 14 प्रश्नों की जांच कर रहा है, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या संवैधानिक प्राधिकारी विधेयकों पर अनिश्चित काल तक स्वीकृति रोक सकते हैं और क्या न्यायालय अनिवार्य समय-सीमा लागू कर सकते हैं।
भाषा सुरेश