आईआईएम-लखनऊ के शोध में पक्षी अवलोकन के जरिए सतत पर्यटन को बढ़ावा देने की संभावनाओं का अध्ययन
राखी मनीषा
- 16 May 2025, 11:28 AM
- Updated: 11:28 AM
नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), लखनऊ के शोधकर्ताओं ने पक्षी अवलोकन (बर्डवॉचिंग) का पर्यटकों पर प्रभाव और इसके जरिए पर्यावरणीय जिम्मेदारी से जुड़े व्यवहार को बढ़ावा देने की संभावनाओं का अध्ययन किया है।
आईआईएम-लखनऊ के एसोसिएट प्रोफेसर अनिर्बान चक्रवर्ती और क्रेआ यूनिवर्सिटी के आईएफएमआर ग्रेजुएट बिजनेस स्कूल में असिस्टेंट प्रोफेसर देबंकर साहा द्वारा सह-लेखित यह शोध 'टूरिज्म रिक्रिएशन रिसर्च' नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ।
अधिकारियों के अनुसार, यह अध्ययन नीति निर्माताओं और पर्यटन से जुड़े हितधारकों के लिए सतत विकास और पर्यावरणीय संरक्षण को बढ़ावा देने वाली नीतियां तैयार करने में सहायक हो सकता है।
शोध टीम ने ‘स्टिमुलस-ऑर्गेनिज़्म-रिस्पॉन्स (एसओआर)’ फ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए एक वैचारिक मॉडल तैयार किया और 300 से अधिक पक्षी देखने वाले पर्यटकों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया।
शोध में पाया गया कि पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का अवसर पर्यटकों पर गहरा और स्थायी प्रभाव डालता है। यह अनुभव पर्यावरण-सम्मत व्यवहार अपनाने की प्रेरणा देता है।
शोध में यह भी सामने आया कि पक्षियों को देखने के अनुभव की गुणवत्ता जैसे मार्गदर्शन, जानकारी की समृद्धता और सेवा अनुभव, सीधे तौर पर पर्यावरणीय जिम्मेदार व्यवहार (ईआरबी) की प्रेरणा से जुड़ी होती है। इसलिए ऐसे प्रशिक्षित गाइड आवश्यक हैं जो स्थानीय परिवेशी तंत्र के जटिल परस्पर संबंधों को समझाने में सक्षम हों।
अनिर्बान चक्रवर्ती ने कहा, “भारत में 1,300 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं, जो विश्व की कुल पक्षी विविधता का 12 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में देश में 'एवी-टूरिज़्म' यानी पक्षी पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। पर्यटन के प्रति बढ़ती रुचि को इस दिशा में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल दोहन इन उपेक्षित आवासों के संरक्षण के लिए आवश्यक धन उपलब्ध करा सकता है।”
उन्होंने कहा, “सुनियोजित पक्षी पर्यटन का अनुभव पर्यटकों के लिए रूपांतरणकारी हो सकता है। इससे वे परिवेशी तंत्र की जटिलताओं की सराहना करने लगते हैं और स्थानीय समुदायों के प्रति सहानुभूति विकसित होती है। यदि इन पर्यटकों का एक छोटा हिस्सा भी पर्यावरण रक्षक बनता है, तो इससे समाज के व्यापक हित को बल मिलेगा।”
शोध में प्रस्तुत मॉडल पर्यटन संचालकों को, पर्यटक अनुभवों को बेहतर बनाने की दिशा में मार्गदर्शन देता है, जिससे पर्यावरण के प्रति जागरूक पर्यटक तैयार हो सकते हैं।
चक्रवर्ती ने कहा, “इन निष्कर्षों का उपयोग नीति-निर्माताओं द्वारा भी किया जा सकता है ताकि ऐसी पर्यटन नीतियां और गतिविधियां तैयार की जा सकें जो पर्यावरणीय निरंतरता को बढ़ावा दें और समाज के समग्र कल्याण में योगदान करें।”
भाषा राखी