रेटिंग में सुधार के लिए सार्वजनिक ऋण को कम करने की जरूरतः अजय सेठ
प्रेम प्रेम रमण
- 02 May 2025, 08:39 PM
- Updated: 08:39 PM
नयी दिल्ली, दो मई (भाषा) आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने शुक्रवार को कहा कि भारत के बढ़े हुए सार्वजनिक ऋण को कम करने की जरूरत है ताकि वैश्विक रेटिंग एजेंसियों से रेटिंग में सुधार मिल सके।
अधिक सार्वजनिक ऋण होने से सरकार को काफी अधिक राशि ब्याज के रूप में चुकानी पड़ती है।
सेठ ने 'आईएसएएसी सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी' सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अनिश्चितताओं के दौर में भारत एक खास तरीके पर ही टिका नहीं रह सकता है।
उन्होंने कहा, "हमें चुस्त रहना होगा और जिस तरह चीजें विकसित हो रही हैं, हम चीजों को हल्के में नहीं ले सकते।... हमें अपना रास्ता खोजना होगा और मुझे उम्मीद है कि हम इसका रास्ता निकाल लेंगे।"
सेठ ने कहा कि सार्वजनिक ऋण का मौजूदा स्तर लगातार ऊंचा बना हुआ है लेकिन इसे नियंत्रित करने की जरूरत है और यह राजकोषीय मजबूती का मार्ग है।
उन्होंने कहा, "दो कारणों से हमें प्रतिबद्ध रहना होगा और इस पर अमल करना होगा। एक कारण यह है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भारत की ओर अधिक सतर्कता से देख रही हैं। इस समय कोविड जैसे संकट का सामना करने की हमारी क्षमता सीमित है, क्योंकि कर राजस्व के अनुपात में ब्याज पर हमारा व्यय इंडोनेशिया जैसे देशों की तुलना में काफी अधिक है।"
भारत रेटिंग अपग्रेड के लिए रेटिंग एजेंसियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। रेटिंग एजेंसियां सरकार को लगभग 15 प्रतिशत का बड़ा भारांश देती हैं।
सेठ ने कहा कि कर एवं सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात का मौजूदा स्तर लगभग 18 प्रतिशत है, जो एक दशक पहले 16.5 प्रतिशत हुआ करता था। उन्होंने कहा, "लेकिन हम आय के मौजूदा स्तर के साथ सबसे अच्छी स्थिति में हैं। हम 20 प्रतिशत तक पहुंचने की आकांक्षा रखते हैं जिसमें पांच-छह साल लगेंगे।"
उन्होंने कहा कि आवश्यक राजस्व व्यय को वित्तपोषित करते हुए पूंजीगत व्यय के पक्ष में तमाम पुनर्संतुलन हो रहे हैं। उच्च आय वाले राज्यों सहित कुछ राज्य सरकारें लोगों में निवेश के बजाय वर्तमान व्यय के वित्तपोषण पर ध्यान दे रही हैं।
राज्य सरकारों की ऋण प्रतिभूतियों की रेटिंग पर उन्होंने कहा कि इसमें एकरूपता होनी चाहिए। उन्होंने कहा, "आज भारतीय बाजार में राज्य सरकार की ऋण प्रतिभूतियों को कमोबेश एक जैसा माना जाता है, चाहे राज्य का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) अनुपात 50 प्रतिशत हो या 20 प्रतिशत।"
उन्होंने कहा कि प्रतिफल में बहुत अधिक अंतर नहीं है लिहाजा ऐसा तरीका सोचना होगा जिसमें बाजार संकेत हो और उस क्षेत्र में बाजार अनुशासन लाया जा सके।
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