केंद्र ने राज्यपाल के खिलाफ याचिकाओं को वापस लेने के केरल के रुख का न्यायालय में किया विरोध
वैभव नरेश
- 06 May 2025, 02:11 PM
- Updated: 02:11 PM
नयी दिल्ली, छह मई (भाषा) केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में केरल सरकार के उस रुख का विरोध किया जिसमें उसने राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ अपनी याचिका वापस लेने का फैसला किया।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल की दलील का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध किया।
मेहता ने कहा, ‘‘ये संवैधानिक मुद्दे हैं। इसे हल्के-फुल्के तरीके से दायर नहीं किया जा सकता और हल्के में वापस नहीं लिया जा सकता...हम इसमें शामिल मुद्दों पर काम कर रहे हैं।’’
वेणुगोपाल ने इसे ‘अजीब’ बताते हुए पूछा कि उनकी याचिका का विरोध कैसे किया जा सकता है।
मेहता ने कहा, ‘‘जब आपके जैसे कद का व्यक्ति याचिका वापस लेता है तो इसे भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए।’’
वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यपाल की ओर से विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के खिलाफ दायर याचिका बेकार हो गई थी क्योंकि बाद में विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज दिए गए थे।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की बाद की एक याचिका में इस पहलू को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने माना कि राज्य को याचिका वापस लेने का अधिकार है। उन्होंने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 मई की तारीख तय की।
गत 22 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय करने के संबंध में तमिलनाडु की याचिका पर हाल ही में दिए गए फैसले में केरल सरकार द्वारा अपनी याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को शामिल किया गया है या नहीं।
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और राज्यपाल कार्यालय की ओर से पक्ष रख रहे मेहता ने जब कहा कि न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ के हाल के फैसले में केरल सरकार द्वारा उठाए गए मुद्दों को शामिल नहीं किया गया है, तो पीठ ने कहा, ‘‘हम उस फैसले पर गौर करेंगे और देखेंगे कि यहां उठाए गए मुद्दे शामिल किए गए हैं या नहीं।’’
तमिलनाडु सरकार की याचिका पर कार्रवाई करते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को दूसरे दौर में राष्ट्रपति के विचार के लिए 10 विधेयकों को सुरक्षित रखने के फैसले को अवैध और कानून की दृष्टि से गलत करार दिया था।
पीठ ने पहली बार राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर फैसले के लिए समय सीमा भी निर्धारित की। उसने ऐसे संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की।
केरल ने अपनी याचिका में इसी तरह के निर्देश की मांग की।
वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य की याचिकाएं हाल के फैसले के दायरे में आती हैं। उन्होंने पीठ से तमिलनाडु के फैसले के संदर्भ में केरल सरकार की याचिकाओं को स्वीकार करने का आग्रह किया, लेकिन मेहता ने दलीलें पेश करने पर जोर दिया और कहा कि केरल का मामला तमिलनाडु के फैसले के दायरे में नहीं आता।
इसके बाद पीठ ने वेणुगोपाल से राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी न दिए जाने को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की तीसरी और बाद में दायर की गई याचिका का उल्लेख प्रधान न्यायाधीश के समक्ष करने को कहा, ताकि इसे भी उसके पास भेजा जा सके।
वेणुगोपाल ने कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश ने याचिका को 13 मई को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा कि दूसरी याचिका को वर्तमान याचिका के साथ जोड़ने के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उल्लेख किया जाना चाहिए।
भाषा
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