एम्स में दिव्यांग अभ्यर्थी को दाखिला देने का न्यायालय का निर्देश; कहा: मानसिकता बदलनी होगी
नेत्रपाल सुरेश
- 05 May 2025, 08:06 PM
- Updated: 08:06 PM
नयी दिल्ली, पांच मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को निर्देश दिया कि मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए और 2024 में एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले एक दिव्यांग अभ्यर्थी को सीट आवंटित की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कबीर पहाड़िया की याचिका पर अपने आदेश में कहा कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में निहित उचित व्यवस्थापन दान का मामला नहीं है, बल्कि मौलिक अधिकार है।
पहाड़िया की पांच उंगलियां अर्ध विकसित हैं और उन्हें उनकी गतिशीलता संबंधी दिव्यांगता के कारण एमबीबीएस में प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने दो अप्रैल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड से उनके स्वास्थ्य की नए सिरे से जांच कराए जाने का निर्देश दिया था।
बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि पहाड़िया ने विभिन्न कार्यों के दौरान अपनी मौजूदा उंगलियों का उपयोग करके कार्यात्मक अनुकूलन का प्रदर्शन किया।
पहाड़िया ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एमबीबीएस स्नातक पाठ्यक्रम में अपीलकर्ता को प्रवेश देने से इनकार करना पूरी तरह अवैध, मनमाना और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 के तहत प्रदत्त उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इसने कहा, ‘‘ऐसी कार्रवाई न केवल संस्थागत पूर्वाग्रह और प्रणालीगत भेदभाव को दर्शाती है, बल्कि हमारे संवैधानिक ढांचे में निहित समान अवसर और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को भी कमजोर करती है।’’
मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर गौर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि मानसिकता बदलनी चाहिए और यह मामूली विचलन, किसी भी तरह से, अपीलकर्ता को एमबीबीएस स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश देने से इनकार करने का आधार नहीं बन सकता, जब वह भिन्न प्रकार से योग्य हो और नीट-स्नातक में बहुत उच्च रैंक प्राप्त करे।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि 2024-2025 का शैक्षणिक सत्र काफी आगे बढ़ चुका है और इस प्रकार उक्त सत्र में अपीलकर्ता को प्रवेश देना उचित नहीं होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘हम तदनुसार निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नयी दिल्ली में अनुसूचित जाति पीडब्ल्यूबीडी (मानक दिव्यांगता वाले व्यक्ति) कोटे के तहत एमबीबीएस-स्नातक पाठ्यक्रम 2025 में सीट आवंटित की जानी चाहिए।’’
वर्ष 2016 के संबंधित अधिनियम के तहत मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत या उससे अधिक है, जैसा कि किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित करने की प्रक्रिया दो महीने के भीतर पूरी करने का भी निर्देश दिया, ताकि दिव्यांग श्रेणी का कोई भी योग्य उम्मीदवार अपनी पात्रता के बावजूद एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित न रहे।
पहाड़िया ने बिना किसी लेखक की मदद के दसवीं कक्षा 91.5 प्रतिशत अंकों के साथ तथा बारहवीं कक्षा 90 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी तथा राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में 720 में से 542 अंक प्राप्त किए थे।
भाषा नेत्रपाल