सार्वजनिक लेन-देन में सरलता सुशासन: उच्चतम न्यायालय, किया सहकारी समितियों के लिए नियम रद्द
अमित राजकुमार
- 05 Dec 2025, 10:02 PM
- Updated: 10:02 PM
नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सार्वजनिक लेन-देन में सरलता ही 'सुशासन' है।
इसी के साथ न्यायालय ने झारखंड सरकार के 2009 के उस निर्देश को खारिज कर दिया, जिसमें स्टाम्प शुल्क में छूट मांगने वाली सहकारी समितियों के लिए अतिरिक्त बाधाएं लगा दी गयी गई थीं।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि ऐसे कार्यकारी आदेश जो ‘‘अनावश्यक और अत्यधिक शर्तें’’ थोपते हैं, अवैध हैं और उन्हें रद्द किया जाना चाहिए।
फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा, ‘‘सार्वजनिक लेन-देन में सरलता ही सुशासन है। संवैधानिक अदालतें कानून के शासन को सुदृढ़ करने और न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए इस गुण को बनाये रखती हैं। प्रशासनिक कानून में, सरलता का अर्थ है कि कानून, नियम और प्रक्रियाएं स्पष्ट, सरल और समझने में आसान होनी चाहिए, जिससे उनका सहज अनुपालन हो सके।’’
उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासनिक प्रक्रियाओं को जटिलता, अनावश्यक जरूरतों और अनावश्यक बोझ से बचना चाहिए क्योंकि ये समय बर्बाद करते हैं, खर्च बढ़ाते हैं और मानसिक शांति को भंग करते हैं।’’
झारखंड सरकार ने निर्देश जारी करके सहकारी समितियों द्वारा संपत्ति हस्तांतरण दस्तावेजों के पंजीकरण को सहकारी समितियों के सहायक रजिस्ट्रार से अतिरिक्त सत्यापन पर निर्भर बना दिया था।
फैसले में कहा गया कि चूंकि ऊपरी अदालतें अवैधता के आधार पर कार्यकारी निर्णयों को रद्द कर देती हैं, यदि वे प्रासंगिक विचारों पर आधारित नहीं होते, तो इस सिद्धांत को मान्यता देना जरूरी है कि कार्यकारी कार्रवाई जो कुछ अनावश्यक, अत्यधिक आवश्यकताओं को अनिवार्य बनाती है, उसे भी अवैध मानकर रद्द किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘‘इस सिद्धांत के आधार पर, हमने निबंधन विभाग के प्रधान सचिव द्वारा जारी ज्ञापन को अवैध माना है, जिसमें भारतीय स्टाम्प (बिहार संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 9ए के तहत किसी दस्तावेज के पंजीकरण के लिए पूर्व शर्त के रूप में सहकारी समिति के अस्तित्व के बारे में सहायक रजिस्ट्रार, सहकारी समिति की अतिरिक्त अनुशंसा को एक पूर्व शर्त बनाया गया है।’’
झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने आदर्श सहकारी गृह निर्माण स्वावलंबी सोसाइटी लिमिटेड की अपील को स्वीकार कर लिया।
सहकारी समिति ने उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें स्टांप कानून के तहत स्टांप-ड्यूटी छूट देने से पहले राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त मंजूरी लेने पर जोर देने में हस्तक्षेप करने से इनकार किया गया था।
भाषा अमित