तृणमूल ने बाबरी मस्जिद निर्माण की घोषणा करने वाले विधायक हुमायूं कबीर को निलंबित किया
राजकुमार सुरेश
- 04 Dec 2025, 09:00 PM
- Updated: 09:00 PM
बहरामपुर, चार दिसंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद जिले में बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा करके विवाद खड़ा करने वाले विधायक हुमायूं कबीर को बृहस्पतिवार को पार्टी से निलंबित कर दिया।
तृणमूल ने कबीर के इस कदम को ‘सांप्रदायिक राजनीति’ करार दिया है।
निलंबन के कुछ ही देर बाद कबीर ने घोषणा की कि वह विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे, इस महीने के अंत में अपनी पार्टी बनाएंगे और प्रस्तावित कार्यक्रम को बढ़ाएंगे, भले ही इसके लिए उन्हें ‘गिरफ्तार’ किया जाए या मार ही क्यों न दिया जाए।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कबीर का नाम लिये बिना उनपर तीखा हमला बोला और उन्हें ‘मीरजाफर (गद्दार)’ करार देते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए भाजपा से पैसा लिया है।
तृणमूल के वरिष्ठ नेता फिरहाद हाकिम ने कोलकाता में निलंबन की घोषणा करते हुए कहा कि इस फैसले पर मुख्यमंत्री ने मुहर लगायी है।
हाकिम ने कहा, ‘‘कबीर सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त हैं और तृणमूल इसके सख्त खिलाफ है। तृणमूल कांग्रेस सांप्रदायिक राजनीति में विश्वास नहीं रखती। अब उनका पार्टी के साथ कोई संबंध नहीं है।’’
हाकिम ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी ‘सांप्रदायिक उकसावे में विश्वास नहीं करती’, और यह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में शांति बनाए रखने के लिए काम कर रही है।
खुद कोलकाता की एक मस्जिद के मुतवल्ली (ट्रस्टी) हाकिम ने कबीर की बयानबाजी से पार्टी की असहजता को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, “कोई भी मस्जिद बना सकता है, लेकिन कोई सांप्रदायिक उकसावा नहीं होना चाहिए। जिस तरह से धार्मिक भावनाएं भड़कायी जा रही हैं, वह एक जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी के लिए स्वीकार्य नहीं है।”
निलंबन की खबर तब सामने आई जब कबीर बहरामपुर में मुख्यमंत्री की एसआईआर विरोधी रैली के आयोजन स्थल पर बैठे थे, जहां तृणमूल ने उन्हें पहले आमंत्रित किया था।
कबीर ने इसे "जानबूझकर किया गया अपमान" बताया और कहा कि उनके खिलाफ "साजिश" रची गई है।
उन्होंने कहा, “मुझे कोई पत्र नहीं मिला है। लेकिन मैं शुक्रवार या सोमवार को विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगा।”
कबीर ने कहा कि उनका नया संगठन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कुल 294 में से 135 सीट पर उम्मीदवार उतारेगा।
सत्तारूढ़ पार्टी में लौटने से पहले कभी कांग्रेस, कभी तृणमूल और कभी भाजपा में रहे कबीर ने कहा कि बेलडांगा में छह दिसंबर का शिलान्यास कार्यक्रम रद्द नहीं किया जाएगा।
उन्होंने चेतावनी के लहजे में कहा, ‘‘(शिलान्यास कार्यक्रम में) लाखों लोग शामिल होंगे। अगर प्रशासन हमें रोकने की कोशिश करेगा, तो एनएच-12 जाम किया जा सकता है।’’
उन्होंने कहा कि उन्हें चुप कराने के लिए उनकी हत्या भी की जा सकती है।
कबीर ने कहा कि अगर उन्हें रोका गया, तो वह धरने पर बैठेंगे और ‘गिरफ्तारी देंगे’। उन्होंने कहा कि उन्हें ‘न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है।’
अधिकारियों ने कहा कि कार्यक्रम के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है।
मुस्लिम बहुल इस ज़िले में राजनीतिक तापमान तेज़ी से बढ़ गया है, जहां इस साल की शुरुआत में वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर विरोध प्रदर्शनों के दौरान अशांति देखी गई थी।
राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका जताते हुए बुधवार को राज्य सरकार को पत्र लिखकर कबीर को ऐहतियाती हिरासत में लेने के लिए कहा था।
इसके कुछ घंटों बाद बहरामपुर रैली में बनर्जी ने निलंबित विधायक का नाम लिये बिना एक स्पष्ट संदेश दिया, जिसमें उन्होंने मुर्शिदाबाद की बहुलवादी विरासत का हवाला देते हुए सांप्रदायिक उकसावे के प्रयासों के खिलाफ चेतावनी दी।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हम मुर्शिदाबाद के इतिहास को नहीं भूल सकते। यहां हर घर में सिराजुद्दौला का सम्मान किया जाता है। यह जिला नवाबों की धरती है। यहां सभी धर्मों के पवित्र स्थल हैं। लोग सिराज को याद करते हैं। मुर्शिदाबाद के लोग दंगों की राजनीति को स्वीकार नहीं करेंगे।’’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हर धर्म में गद्दार होते हैं। कुछ गद्दार पैसे लेकर चुनाव से पहले भाजपा की सेवा करते हैं। याद रखें, वे आपके दुश्मन हैं।’’
तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कबीर के खिलाफ कार्रवाई अपरिहार्य हो गई थी, क्योंकि उन्होंने लंबे समय तक एक स्वतंत्र एजेंट की तरह काम किया था, चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया और बार-बार उकसावे से पार्टी को शर्मिंदा किया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनकी मस्जिद योजना निर्णायक मोड़ बन गई, जिसने नेतृत्व की बेचैनी को चिंता में बदल दिया, जबकि अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने शुरू से ही इस कदम का विरोध किया था।
कबीर ने नियमित रूप से जिला नेताओं पर ‘आरएसएस एजेंट’ के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया है तथा अक्सर एक नया संगठन बनाने का संकेत दिया है।
तृणमूल के लिए संकट खड़ा करते रहे कबीर ने 70:30 के मुस्लिम-हिंदू अनुपात वाले इस जिले में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी यह दावा करके आक्रोश पैदा कर दिया था कि वह ‘भाजपा समर्थकों को दो घंटे के भीतर भागीरथी में फेंक सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने इस बयान की कड़ी निंदा की थी।
तृणमूल कांग्रेस के साथ कबीर का यह पहला विवाद नहीं है। उन्होंने 2015 में मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि वह अपने भतीजे, अभिषेक बनर्जी को “राजा” बनाने की कोशिश कर रही हैं। इसके बाद पार्टी ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था।
उन्होंने 2016 का चुनाव निर्दलीय लड़ा और हार गए। वह फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। वह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए फिर से हार गए। बाद में वह तृणमूल में लौट आए।
भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कबीर के निलंबन को नाटकबाजी करार दिया।
उन्होंने कहा, “हुमायूं कबीर काफी समय से विवादित बयान दे रहे हैं। फिर भी तृणमूल ने ठोस कार्रवाई नहीं की। वह बंगाल में बाबर का शासन स्थापित करना चाहते हैं।”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह कदम चुनावों से पहले तृणमूल को एकजुट होने में मदद करता रहा है।
लेकिन फिलहाल, कबीर आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि टकराव पर आमादा दिख रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, “मैं धर्मनिरपेक्ष राजनीति को लेकर मुख्यमंत्री और तृणमूल के दोहरे रवैये को उजागर कर दूंगा। तृणमूल अल्पसंख्यकों को मूर्ख बना रही है और आरएसएस-भाजपा के साथ उसकी मिलीभगत है।”
भाषा राजकुमार