कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 32,000 प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति समाप्त करने का आदेश रद्द किया
रवि कांत प्रशांत
- 03 Dec 2025, 10:22 PM
- Updated: 10:22 PM
कोलकाता, तीन दिसंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल में प्राथमिक स्कूल के 32,000 शिक्षकों को राहत देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने बुधवार को एकल पीठ के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उनकी नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया था।
अदालत ने कहा कि “असफल उम्मीदवारों के एक समूह को पूरी प्रणाली को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”
न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति रीताब्रत कुमार मित्रा की पीठ ने कहा कि वह एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि सभी भर्तियों में अनियमितताएं साबित नहीं हुई हैं।
अदालत ने कहा कि नौ साल के बाद नौकरी समाप्त करने से प्राथमिक शिक्षकों और उनके परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और फैसला सुनाया कि “निर्दोष शिक्षकों को भी बहुत अपमान और कलंक का सामना करना पड़ेगा”।
पीठ ने कहा कि नियुक्त व्यक्तियों की सेवाएं केवल चल रही आपराधिक कार्यवाही के आधार पर समाप्त नहीं की जा सकतीं।
इन शिक्षकों की भर्ती 2016 में पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी)-2014 के माध्यम से की गई थी। इनकी नियुक्तियों को असफल उम्मीदवारों के एक समूह ने चुनौती दी थी, जिन्होंने भर्ती में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।
खंडपीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने 12 मई, 2023 के फैसले में दलीलों से आगे बढ़कर इस कथित निष्कर्ष पर की गई नियुक्तियों को रद्द कर दिया था कि कोई योग्यता परीक्षा आयोजित नहीं की गई थी।
पीठ ने टिप्पणी में कहा, ‘‘न्याय के संचालन में, अदालतों को मनमर्जी से नवाचार करने से रोका गया है…... न ही वे ऐसे वीर योद्धा की तरह व्यवहार कर सकती हैं, जो अपनी कल्पना के सौंदर्य या सद्गुण की तलाश में मनचाहे रूप से घूमता हो।’’
खंडपीठ ने कहा कि यह सच है कि अदालतों को सार्वजनिक सेवा में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देना चाहिए और यदि प्रणालीगत अनियमितताएं प्रक्रिया को कमजोर करती हैं तो वे परीक्षाओं को पूरी तरह रद्द करने का समर्थन करेंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘ हालांकि, न्यायालय से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह ऐसी अनियमितताओं को उचित ठहराने वाले सभी संभावित स्पष्टीकरणों और वैकल्पिक परिदृश्यों को खारिज करने के लिए निरर्थक जांच में शामिल हो।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, “बोर्ड परीक्षा में सामूहिक धोखाधड़ी के सिद्ध मामले और भ्रष्टाचार के अप्रमाणित आरोप के बीच अंतर होता है...जब इस आधार पर सेवाएं समाप्त कर दी जाती हैं कि पदधारी ने भ्रष्टाचार में सहायता की और उसे बढ़ावा दिया, तो न्यायालय को स्वयं संतुष्ट होना चाहिए कि इसके लिए हालात थे।’’
इस फैसले से सेवारत उन शिक्षकों को खुशी और राहत मिली है, जो इस वर्ष के शुरू में एसएलएसटी 2016 पैनल से लगभग 26,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को बड़े पैमाने पर भर्ती भ्रष्टाचार के आधार पर रद्द करने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे थे।
इस फैसले को “सत्य की विजय” बताते हुए शिक्षकों ने अदालत के प्रति आभार व्यक्त किया कि उसने पिछले ढाई वर्षों से उन पर लगे कलंक को हटा दिया है तथा उन्हें “सिर ऊंचा करके” सेवा जारी रखने की अनुमति दे दी है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश का बुधवार को स्वागत किया जिसमें कथित अनियमितताओं के कारण प्राथमिक स्कूल के 32,000 शिक्षकों की नियुक्तियों को रद्द करने के पिछले फैसले को खारिज कर दिया गया है।
बनर्जी ने न्यायालय के फैसले को हजारों परिवारों के लिए 'मानवीय' राहत करार दिया।
राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने कहा, ‘‘इस फैसले से यह साबित हो गया है कि हमारी मुख्यमंत्री हमेशा हमारे शिक्षकों के साथ खड़ी रही हैं और आगे भी खड़ी रहेंगी।’’
बसु ने कहा, ‘‘ पिछले पांच वर्षों से, शिक्षा बोर्ड पर कुछ हमले हुए हैं और उसे प्रेरित अभियानों का सामना करना पड़ा। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, हमें उम्मीद है कि यह कलंक दूर हो जाएगा और हम अगले विधानसभा चुनावों का सामना गर्व से करेंगे।’’
भर्ती में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए मूल रूप से अदालत का रुख करने वाले पीड़ित अभ्यर्थियों के एक वर्ग ने खंडपीठ के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख करने की मंशा जताई है।
उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मामले की जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने शुरुआत में 264 नियुक्तियों की पहचान की थी, जिनमें अतिरिक्त अंक देने के रूप में अनियमितताएं हुई थीं।
अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी को अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि यह चिह्न बाहरी संस्थाओं के निर्देश पर दिया गया था।
पहचाने गए उम्मीदवारों के अलावा 96 अन्य शिक्षकों के नाम भी एजेंसी की जांच के दायरे में आए, जिनकी नौकरियां बाद में उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत बहाल कर दी गईं।
अदालत ने कहा कि उपरोक्त साक्ष्य संपूर्ण चयन प्रक्रिया को रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनाते हैं।
भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं को चुनौती देते हुए पीड़ित उम्मीदवारों के एक समूह ने एकल पीठ का रुख किया था। उनके वकीलों ने खंडपीठ के फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया।
तत्कालीन न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने 12 मई, 2023 को इन 32,000 प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि प्राथमिक शिक्षा बोर्ड ने चयन प्रक्रिया में धोखाधड़ी की है और राज्य सरकार द्वारा संचालित तथा सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए नियमों का पालन नहीं किया है।
अपने आदेश में एकल पीठ ने अनिवार्य योग्यता परीक्षा आयोजित किए बिना शिक्षकों के एक वर्ग की भर्ती की संभावना की ओर इशारा किया था, जिस पर खंडपीठ ने कहा कि जांच एजेंसी के पास अभी तक ठोस सबूत नहीं हैं।
उच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता और मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक तरुणज्योति तिवारी ने कहा कि वह अदालत के आदेश का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन इस फैसले ने नौकरी के इच्छुक लोगों के बीच नयी शंकाएं पैदा कर दी हैं।
अधिवक्ता तरुणज्योति तिवारी ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के बारे में जो कुछ कहा जाना है, वह उच्चतम न्यायालय में कहा जाएगा। आज के फैसले ने बंगाल के बेरोजगार युवाओं के मन में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। भ्रष्टाचार को संस्थागत वैधता मिल गई है। हमारी लड़ाई जारी रहेगी।’’
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और भाजपा के मौजूदा सांसद अभिजीत गंगोपाध्याय ने बुधवार को कहा कि उनके पास 32,000 प्राथमिक स्कूल शिक्षकों की नियुक्तियों को रद्द करने के 2023 के आदेश को पलटने के खंडपीठ के फैसले पर “टिप्पणी करने के लिए कुछ नहीं” है।
उन्होंने कहा कि उन्होंने जो निर्णय दिया है वह उनके अनुसार सही है।
गंगोपाध्याय ने एक बंगाली समाचार चैनल को बताया कि खंडपीठ को उनके फैसले की समीक्षा करने का पूरा अधिकार है।
भाजपा सांसद ने कहा, ‘‘खंडपीठ को निर्णय देने का अधिकार है। उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा। मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है। एक न्यायाधीश के रूप में, मैंने वही आदेश पारित किया था जो मुझे सही लगा था।’’
भाषा रवि कांत