भोपाल गैस त्रासदी: यूनियन कार्बाइड कारखाने के विषैले कचरे की राख अब निपटारे की बाट जोह रही
पवनेश
- 02 Dec 2025, 07:56 PM
- Updated: 07:56 PM
(दूसरे पैरा में सुधार के साथ)
(हर्षवर्धन प्रकाश)
इंदौर (मध्यप्रदेश), दो दिसंबर (भाषा) भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े विषैले अपशिष्ट, मिट्टी और पैकेजिंग सामग्री को मध्य प्रदेश के पीथमपुर स्थित संयंत्र में जलाए जाने के बाद इस प्रक्रिया से उत्पन्न लगभग 900 टन राख पांच महीने बाद भी निस्तारण की बाट जोह रही है।
भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने से 337 टन विषैले अपशिष्ट, 19 टन संदूषित मिट्टी और 2.2 टन पैकेजिंग सामग्री समेत कुल 358 टन सामग्री को भस्म करने की प्रक्रिया पीथमपुर स्थित संयंत्र में इस साल जुलाई की शुरुआत में संपन्न हुई थी। भोपाल से पीथमपुर में इस सामग्री को लाए जाने के करीब छह माह बाद इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।
अधिकारियों ने बताया कि अपशिष्ट को वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत एक दहन संयंत्र में भस्म किया गया जिसमें चूना और अन्य सामग्रियों को मिलाया गया और इससे लगभग 900 टन राख उत्पन्न हुई।
अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश सरकार ने इस राख को पीथमपुर के ही संयंत्र में निर्माणाधीन विशेष बहु परतीय विशाल गड्ढे (लैंडफिल सेल) में सुरक्षित करने की योजना बनाई थी। उन्होंने बताया कि यह संयंत्र धार जिले के तारपुरा गांव के पास स्थित है जिसकी आबादी लगभग 20,000 है ।
हालांकि, लगभग दो महीने पहले, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को राख निस्तारण के लिए वैकल्पिक स्थल खोजने का निर्देश दिया था और कहा था कि मानव आबादी के पास इसका निस्तारण "अस्वीकार्य" है।
अधिकारियों के अनुसार फिलहाल यह राख इस संयंत्र के ‘लीक-प्रूफ स्टोरेज शेड’ में सुरक्षित तौर पर रखी गई है।
भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इससे कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपंग हो गए थे। इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में गिना जाता है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर स्थित मुख्य पीठ ने आठ अक्टूबर को पीथमपुर स्थित संयंत्र के परिसर में बनाए जा रहे ‘लैंडफिल सेल’ में इस राख को सुरक्षित करने का प्रस्ताव यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह (संयंत्र) इंसानी आबादी के बेहद नजदीक है।
उच्च न्यायालय ने कहा, '' इंसानी आबादी के निकट विषैली राख का वर्तमान निस्तारण स्थल इस न्यायालय को स्वीकार्य नहीं है।”
अदालत ने अपने आदेश में एक हस्तक्षेपकर्ता के अंतरिम आवेदन का जिक्र किया था जिसमें कहा गया था कि जांच के दौरान राख में मौजूद मर्करी (पारा) का स्तर स्वीकृत सीमा से अधिक पाया गया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि हस्तक्षेपकर्ता द्वारा दायर आवेदन में खुलासा किया गया है कि विषैली राख पर किए गए परीक्षणों में अभी भी 'मर्करी' की उपस्थिति पाई गई है, जो मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 12 अगस्त 2025 की रिपोर्ट में उल्लेखित अनुमत सीमाओं से अधिक है।
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश भी दिया था कि वह एक रिपोर्ट दाखिल करे जिसमें इस राख के निपटान के लिए वैकल्पिक स्थलों का उल्लेख हो।
प्रदेश सरकार के अधिकारी मामले के अदालत में विचाराधीन होने का हवाला देते हुए राख के निपटारे की योजना पर खुलकर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
हालांकि, एक अधिकारी ने नाम जाहिर न किए जाने की शर्त पर मंगलवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यूनियन कार्बाइड के कचरे के निपटारे के लिए एक निजी कंपनी को दिए गए ठेके में इस राख को पीथमपुर के संयंत्र के परिसर में विशेष तौर पर बहु परतीय ‘लैंडफिल सेल’ बनाकर उसके भीतर इस राख को सुरक्षित रूप से दबाने के बाद उसे ऊपर से बंद करने का काम भी शामिल है और इस निर्माण में तमाम सुरक्षा मानकों का ध्यान रखा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इस ‘लैंडफिल सेल’ का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है।
इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर पीथमपुर, राज्य का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। इस औद्योगिक क्षेत्र में करीब 1,250 इकाइयां हैं जहां हजारों मजदूर काम करते हैं। इनमें देश के कई राज्यों से आने वाले प्रवासी श्रमिक भी शामिल हैं।
पीथमपुर के सामाजिक कार्यकर्ता इस राख को मानवीय आबादी से सटी कचरा निपटान इकाई के ‘लैंडफिल सेल’ में दबाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।
स्थानीय संगठन 'पीथमपुर बचाओ समिति' के प्रमुख हेमंत कुमार हिरोले ने कहा कि इस जहरीली राख का निपटारा किसी निर्जन स्थान पर किया जाना चाहिए क्योंकि किसी दुर्घटना की स्थिति में ‘लैंडफिल सेल’ में कोई गड़बड़ होने से मानवीय आबादी और आबो-हवा को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।
यूनियन कार्बाइड के कचरे के मामले में उच्च न्यायालय जिन पांच याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है, उनमें हिरोले की याचिका भी शामिल है।
उन्होंने कहा,‘‘फिलहाल हमें इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है कि प्रदेश सरकार ने इस जहरीली राख के निपटारे के लिए वैकल्पिक स्थल के रूप में किसी जगह का चयन किया है या नहीं। राज्य सरकार को इस सिलसिले में जल्द ही स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।’’
गुजरे चार दशक के दौरान देश-विदेश के संयंत्रों में यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को नष्ट किए जाने के लिए कई योजनाएं बनीं और विरोध प्रदर्शनों के बीच रद्द हुईं।
आखिरकार, इस कचरे को पीथमपुर में एक निजी कंपनी के संचालित अपशिष्ट निपटान संयंत्र में इस साल भस्म करके राख में बदल दिया गया।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने दावा किया था कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को जलाए जाने के दौरान इस संयंत्र से पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ ही मर्करी, कैडमियम और अन्य भारी धातुओं के उत्सर्जन मानक सीमा के भीतर पाए गए।
उन्होंने यह भी कहा था कि पीथमपुर के संयंत्र में यूनियन कार्बाइड कारखाने का कचरा जलाए जाने के दौरान संयंत्र के कर्मचारियों और आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत असर नहीं हुआ।
गैस त्रासदी के बाद से भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को सूबे की राजधानी से करीब 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के संयंत्र में दो जनवरी को पहुंचाया गया था। इसके बाद पीथमपुर में कई विरोध प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शनकारियों ने इस कचरे के निपटान से इंसानी आबादी और आबो-हवा को नुकसान की आशंका जताई थी जिसे प्रदेश सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया था।
भाषा हर्ष पवनेश नरेश
नरेश