जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर 24 नवंबर को होगी सुनवाई
जितेंद्र नेत्रपाल
- 23 Nov 2025, 03:51 PM
- Updated: 03:51 PM
नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय सोमवार को जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी की अर्जी पर सुनवाई करेगा।
वांगचुक की पत्नी ने शीर्ष अदालत में दायर अर्जी में बताया कि उनके पति को कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में रखना गैर-कानूनी है और यह उनके बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करने वाला एक मनमाना कदम है।
शीर्ष अदालत ने 29 अक्टूबर को वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे अंगमो की अर्जी पर केंद्र और लद्दाख प्रशासन से जवाब मांगा था।
न्यायालय की 24 नवंबर की वाद सूची के मुताबिक, अर्जी पर न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ सुनवाई करेगी।
वांगचुक को 26 सितंबर को रासुका के तहत उस समय हिरासत में लिया गया था, जब लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए थे।
केंद्र शासित प्रदेश में हुए हिसंक प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई थी और 90 लोग घायल हो गए थे।
सरकार ने वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया था।
याचिका में कहा गया, “हिरासत का आदेश पुरानी प्राथमिकी, अस्पष्ट आरोपों और अंदाज पर आधारित है, इसका हिरासत के कथित आधार से कोई सीधा या करीबी संबंध नहीं है और इसलिए इसका कोई कानूनी या तथ्यात्मक औचित्य नहीं है।”
याचिकाकर्ता के मुताबिक, “एहतियाती शक्तियों का इस तरह मनमाना इस्तेमाल अधिकार का घोर दुरुपयोग है, जो संवैधानिक स्वतंत्रता और सही प्रक्रिया के आधार पर हमला करता है। इस वजह से न्यायालय के पास इस हिरासत के आदेश को रद्द करने का अधिकार है।”
याचिका में कहा गया कि यह पूरी तरह से बेतुका है कि लद्दाख और पूरे भारत में जमीनी स्तर पर शिक्षा, नवाचार और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने के लिए राज्य, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर तीन दशकों से ज्यादा समय तक पहचाने जाने के बावजूद वांगचुक को अचानक निशाना बनाया गया।
याचिकाकर्ता के मुताबिक, “चुनावों से सिर्फ दो महीने पहले और एपेक्स बॉडी ऑफ लेह (एबीएल), कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) और गृह मंत्रालय के बीच बातचीत के आखिरी दौर में उन्हें (वांगचुक को) जमीन का पट्टा रद्द करने, एफसीआरए रद्द करने, सीबीआई द्वारा जांच शुरू किए जाने तथा आयकर विभाग की ओर से समन भेजे गए।”
याचिका में दावा किया गया कि एक साथ शुरू की गई इन सभी कार्रवाइयों से पहली नजर में यह साफ होता है कि हिरासत का आदेश जनव्यवस्था या सुरक्षा की असली चिंताओं पर आधारित नहीं बल्कि असहमति जताने के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने वाले एक सम्मानित नागरिक को चुप कराने की सोची-समझी कोशिश है।
इसमें कहा गया कि 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को किसी भी तरह से वांगचुक के कार्यों या बयानों से नहीं जोड़ा जा सकता।
भाषा जितेंद्र