मामलों का बोझ घटाना, मध्यस्थता को बढ़ावा देना प्राथमिकता होगा: न्यायमूर्ति सूर्यकांत
पारुल माधव
- 22 Nov 2025, 09:52 PM
- Updated: 09:52 PM
नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) नामित प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने शनिवार को कहा कि देशभर की अदालतों में लंबित पांच करोड़ से अधिक मामलों का बोझ घटाना और विवाद समाधान के वैकल्पिक तरीके के रूप में “बेहद प्रभावी” मध्यस्थता को बढ़ावा देना न्यायपालिका प्रमुख के रूप में उनकी प्राथमिकता होगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने न्यायाधीशों और अदालती फैसलों की ऑनलाइन आलोचना पर कहा कि इन बातों ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया। उन्होंने कहा कि निष्पक्ष आलोचना हमेशा स्वीकार्य होती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में न्यायमूर्ति सूर्यकांत की नियुक्ति को 30 अक्टूबर को मंजूरी दे दी थी। वह न्यायमूर्ति बीआर गवई की जगह लेंगे। उन्हें 24 नवंबर को पद की शपथ दिलाई जाएगी।
राष्ट्रीय राजधानी में अपने आवास पर संवाददाताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “लंबित मुकदमे मेरी पहली और सबसे बड़ी चुनौती हैं। आज का स्कोरबोर्ड दर्शाता है कि उच्चतम न्यायालय में लंबित मुकदमों की संख्या 90,000 को पार कर गई है। मैं इस पर नहीं जा रहा कि यह कैसे हुआ, इसके लिए कौन जिम्मेदार है...।”
उन्होंने कहा कि वह उच्च न्यायालयों से अपने यहां और देशभर की निचली अदालतों में लंबित मुकदमों के बारे में रिपोर्ट भी मांगेंगे।
विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अदालतों में 4.6 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने एक कारगर वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के रूप में मध्यस्थता के महत्व को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, “मध्यस्थता को बढ़ावा देना दूसरी प्राथमिकता होगा। मध्यस्थता किसी विवाद के समाधान का सबसे आसान तरीका है और यह वास्तव में बड़ा बदलाव ला सकता है।”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शीर्ष अदालत में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से दिए भाषण का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने मध्यस्थता की आवश्यकता पर बल दिया था।
नामित प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अब पूरा देश मध्यस्थता के बारे में बात कर रहा है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि हाल ही में भारत की निजी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बैंकों और बीमा कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए मध्यस्थता प्रशिक्षण की मांग करते हुए आधिकारिक तौर पर शीर्ष अदालत का रुख किया। उन्होंने कहा कि वे खुद के आंतरिक मध्यस्थ रखना चाहती थीं, क्योंकि उन्हें मुकदमेबाजी के फेर में नहीं उलझना था।
अदालतों पर मुकदमों के बोझ को कम करने के उपायों को लेकर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने दिल्ली में भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों का उदाहरण दिया और कहा कि उनके एक फैसले के जरिये लगभग 1,200 मामलों का निपटारा हो गया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि उच्च न्यायालयों से उन लंबित मामलों के बारे में जानकारी मांगी जाएगी, जिन पर शीर्ष अदालत की बड़ी संविधान पीठों द्वारा निर्णय लिया जाना है।
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों में कई मामले अटके हुए हैं, क्योंकि शीर्ष अदालत में बड़े कानूनी और संवैधानिक मुद्दों से संबंधित अन्य मामलों में फैसले का इंतजार है और इसके लिए बड़ी पीठों का गठन किया जाना है।
न्यायधीशों और अदालती फैसलों की ऑनलाइन आलोचना पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि एक बार जब कोई उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बन जाता है या प्रधान न्यायाधीश के पद पर पहुंच जाता है, तो सोशल मीडिया पर की जाने वाली ऐसी टिप्पणियां उन्हें परेशान नहीं करनी चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “सच कहूं तो मैं सोशल मीडिया को ‘अनसोशल मीडिया’ कहता हूं और मैं ऑनलाइन टिप्पणियों से दबाव महसूस नहीं करता...।” उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वह ऐसी टिप्पणियों से कभी परेशान नहीं हुए।”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि न्यायाधीशों और अदालती फैसलों की निष्पक्ष आलोचना हमेशा स्वीकार्य है।
दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बारे में पूछे जाने पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि वह अभी भी हर सुबह लगभग 50 मिनट टहलने के लिए निकलते हैं।
उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उसके दुष्प्रभावों के बारे में बात करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी के बारे में समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “एआई वास्तव में संस्थान के लिए एक बेहतरीन समाधान प्रदान कर सकता है, लेकिन हमें (इससे पैदा होने वाली समस्याओं का) हल ढूंढना होगा।”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा। वह नौ फरवरी 2027 को 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इस पद पर रहेंगे।
भाषा पारुल