चंडीगढ़ में कानून बनाने का अधिकार सीधे राष्ट्रपति को देने का प्रस्ताव
धीरज सुरेश
- 23 Nov 2025, 12:20 AM
- Updated: 12:20 AM
नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में चंडीगढ़ को शामिल करने के लिए एक विधेयक संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में लाने की योजना बनाई है, जिसके तहत राष्ट्रपति को संघ शासित क्षेत्र के लिए सीधे विनियम और कानून बनाने का अधिकार प्राप्त होता है।
केंद्र की ओर से इस संबंध में पेश अगर विधेयक पारित होता है तो चंडीगढ़ में एक स्वतंत्र प्रशासक की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा, जैसा कि पहले यहां स्वतंत्र मुख्य सचिव होता था। हालांकि केंद्र के इस कदम पर कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी (आप) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
लोकसभा और राज्यसभा के बुलेटिन के अनुसार, सरकार एक दिसंबर से शुरू होने वाले संसद सत्र में इस संबंध में 131वां संविधान संशोधन विधेयक- 2025 पेश करेगी।
विधेयक का उद्देश्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को शामिल करना है। यह प्रस्ताव उन अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के अनुरूप है, जहां विधानसभा नहीं है, जैसे अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव। पुडुचेरी भी इस दायरे में तब आता है, जब वहां की विधानसभा भंग या निलंबित हो।
बुलेटिन के मुताबिक, सरकार ने आगामी सत्र में पेश किए जाने वाले 10 विधेयकों की एक अस्थायी सूची भी पेश की है।
संविधान का अनुच्छेद 240 राष्ट्रपति को कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विनियम बनाने का अधिकार देता है, ताकि अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव तथा पुडुचेरी में शांति, प्रगति और प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित किया जा सके।
हालांकि, इस अनुच्छेद में कहा गया है कि जब किसी केंद्र शासित प्रदेश में अनुच्छेद 239ए के तहत कोई निकाय (जैसे पुडुचेरी में) हो तो उस स्थिति में प्रथम सत्र की तिथि से राष्ट्रपति उस केंद्र शासित प्रदेश के लिए कोई विनियम नहीं बना सकेंगे।
इसके अलावा, इसमें यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए ऐसे किसी भी विनियम के माध्यम से संसद द्वारा पारित किसी कानून या उस केंद्र शासित प्रदेश पर लागू किसी अन्य प्रचलित कानून को निरस्त या संशोधित किया जा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा जारी किए जाने पर ऐसे विनियम को उस केंद्र शासित प्रदेश में लागू संसद अधिनियम के समान ही प्रभाव और शक्ति प्राप्त होगी।
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि यह एक बड़ा अन्याय है कि भाजपा सरकार पंजाब की राजधानी ‘छीनने की साजिश’ कर रही है।
मान ने एक बयान में कहा, ‘‘चंडीगढ़ पहले भी पंजाब का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। कोई भी व्यक्ति या संस्था इससे इनकार नहीं कर सकता कि मातृ राज्य होने के नाते पंजाब का अपनी राजधानी चंडीगढ़ पर पूरा अधिकार है।’’
कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने इस कदम को ‘पूरी तरह अनावश्यक’ बताया और पंजाब से चंडीगढ़ ‘छीनने’ के खिलाफ चेतावनी दी।
वडिंग ने एक बयान में कहा, ‘‘चंडीगढ़ पंजाब का (अंग) है और इसे छीनने की किसी भी कोशिश के गंभीर नतीजे होंगे।’’
लुधियाना से लोकसभा सदस्य वडिंग ने कहा कि केंद्र को विधेयक में आवश्यक संशोधन करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस संसद में इस विधेयक का कड़ा विरोध करेगी और इसे पारित न होने देने के लिए समान विचारधारा वाली पार्टियों से बातचीत करेगी।
वडिंग ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पंजाब इकाई के नेताओं से इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। उन्होंने मुख्यमंत्री मान से यह भी कहा कि वे इस मामले को तुरंत केंद्र सरकार के सामने उठाएं, ताकि ‘इस प्रस्ताव को शुरू में ही खत्म किया जा सके।’
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि यह विधेयक चंडीगढ़ को पंजाब को वापस देने के केंद्र के वादे के साथ ‘विश्वासघात’ होगा।
बादल ने यहां जारी एक बयान में कहा कि प्रस्तावित 131वां संविधान संशोधन विधेयक केंद्र शासित प्रदेश को हमेशा के लिए पंजाब के प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण से बाहर करने की कोशिश है।
शिअद अध्यक्ष ने प्रस्तावित विधेयक को ‘पंजाब के अधिकारों पर हमला’ करार देते हुए कहा कि यह संघवाद के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा, ‘‘यह चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के तौर पर पंजाब का दावा खत्म करना चाहता है।’’
इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) सांसद विक्रमजीत सिंह ने कहा कि सभी सांसदों को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि पंजाब के चंडीगढ़ पर दावे का ‘ऐतिहासिक महत्व’ है।
सिंह ने एक खबर का हवाला देते हुए सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर जारी एक पोस्ट में कहा कि केंद्र एक ‘राजनीतिक रूप से संवेदनशील’ संविधान संशोधन विधेयक ला रहा है, जिसका उद्देश्य चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश को अनुच्छेद 240 के दायरे में ठीक उसी तरह शामिल करना है जैसे अन्य कई केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘चंडीगढ़ वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल द्वारा प्रशासित किया जा रहा है और नये कानून के साथ यह संभवतः एक स्वतंत्र प्रशासक द्वारा प्रशासित होगा।’’
‘आप’ के राज्यसभा सदस्य ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे का ऐतिहासिक महत्व है। विभाजन के बाद जब लाहौर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया था तब चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया था।’’
सिंह ने कहा, ‘‘वर्ष 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद, चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की राजधानी बनाया गया, और इसके बाद विभिन्न समझौतों के तहत केंद्र ने चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाने का वादा किया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पंजाब के सभी सांसदों से अनुरोध करता हूं कि वे तुरंत गृहमंत्री से मिलें।’’
मौजूदा समय में पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक होते हैं। इससे पहले, एक नवंबर 1966 से जब पंजाब का पुनर्गठन हुआ था तब चंडीगढ़ का प्रशासन स्वतंत्र रूप से मुख्य सचिव द्वारा किया जाता था।
हालांकि, एक जून 1984 से चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल द्वारा किया जा रहा है और मुख्य सचिव का पद केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के सलाहकार में परिवर्तित कर दिया गया था।
अगस्त 2016 में, केंद्र ने पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश और स्वतंत्र प्रशासक के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी के. जे. अल्फोंस को नियुक्त किया।
हालांकि, तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री और तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-नीत केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) सहित अन्य दलों के कड़े विरोध के कारण इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।
चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा दोनों की संयुक्त राजधानी है।
पंजाब चंडीगढ़ पर दावा करता है और उसने तत्काल इसे पंजाब को हस्तांतरित करने की मांग की है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह मांग हाल ही में फरीदाबाद में संपन्न हुए उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में भी दोहराई।
भाषा धीरज