अमेरिका की अड़चन के बावजूद जी-20 घोषणापत्र अपनाया गया
पारुल माधव
- 22 Nov 2025, 06:41 PM
- Updated: 06:41 PM
(फाकिर हसन)
जोहानिसबर्ग, 22 नवंबर (भाषा) दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले शासनाध्यक्षों ने शनिवार को अमेरिका की अड़चन के बावजूद एक घोषणापत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया।
दक्षिण अफ्रीका के अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं सहयोग मामलों के मंत्री रोनाल्ड लामोला ने सरकारी प्रसारक ‘एसएबीसी’ के साथ बातचीत में इस घोषणापत्र को “बहुपक्षवाद की पुष्टि” करार दिया। उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए एक महान पल है, क्योंकि हमारा मानना है कि इससे (अफ्रीकी) महाद्वीप में क्रांति आएगी।”
आम तौर पर घोषणापत्र को जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के अंत में अपनाया जाता है। हालांकि, इस बार इसे सम्मेलन की शुरुआत में ही स्वीकार कर लिया गया।
लमोला ने शिखर सम्मेलन के शुरुआती चरण में ही घोषणापत्र को अपनाए जाने के असामान्य घटनाक्रम के बारे में कहा, “उन शेरपाओं ने घोषणापत्र पर विचार-विमर्श किया और सहमति जता दी, जिन्हें इसे स्वीकार करना था। घोषणापत्र में क्या है, यहां मौजूद विभिन्न नेताओं के शेरपाओं ने उन्हें इसकी जानकारी दे दी है। इसलिए ऐसी कोई वजह नहीं थी, जो हमें इस घोषणापत्र को (दो दिवसीय) शिखर सम्मेलन के पहले सत्र में मौजूद नेताओं के समक्ष पेश करने से रोके।”
उन्होंने कहा, “हमें खुशी है कि वे इसे अपनाने के लिए सहमत हो गए। इसमें अफ्रीकी महाद्वीप और दुनिया के लिए कई क्रांतिकारी पहलू शामिल हैं।”
शिखर सम्मेलन में हिस्सा न लेने और अपनी गैर-मौजूदगी में घोषणापत्र को अपनाने के प्रयासों में बाधा डालने के अमेरिका के कदम के बारे में लमोला ने दोहराया कि जी-20 अमेरिका के साथ या उसके बिना भी बरकरार रहेगा।
उन्होंने कहा, “जी-20 को केवल आमंत्रित व्यक्ति की अनुपस्थिति के आधार पर ठप नहीं किया जा सकता। बहुपक्षीय मंच को सक्रिय रहना चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इसने अच्छा काम किया है, इसलिए दक्षिण अफ्रीका सभी बैठकों में यही संदेश दे रहा था कि हमें घोषणापत्र के साथ आगे बढ़ना होगा।”
लमोला ने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि घोषणापत्र सफल हो और पूरी दुनिया इसमें शामिल हो। वे इस बात पर सहमत हुए हैं कि यही सही रास्ता है। अब यह सहयोग का ऐसा मंच है, जहां दुनिया के सभी नेता कह रहे हैं कि दुनिया को इसी राह पर जाना चाहिए। सहयोग ही एकमात्र रास्ता है। यह बहुपक्षवाद की पुष्टि है।”
जब लमोला से पूछा गया कि अमेरिका की गैरमौजूदगी का दक्षिण अफ्रीका के साथ उसके द्विपक्षीय संबंधों पर क्या असर पड़ेगा, तो उन्होंने कहा, “यह जी-20 अमेरिका के बारे में नहीं है। यह जी-20 समूह के सभी 21 सदस्यों के बारे में है। हम सभी जी-20 के समान सदस्य हैं। इसका मतलब यह है कि हमें एक निर्णय लेना होगा। हममें से जो लोग यहां हैं, उन्होंने तय किया है कि दुनिया को यहीं जाना चाहिए और यही होने वाला है।”
उन्होंने कहा, “अमेरिका के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों के बारे में व्यापार एवं उद्योग विभाग अपनी बातचीत जारी रखे हुए है और हम एक सकारात्मक समाधान की उम्मीद करते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने अमेरिका के संबंध में जिम्मेदारी से काम किया है।”
लमोला ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका “शुरू से लेकर अंत तक, किसी भी स्तर पर लापरवाही से काम नहीं करेगा”, क्योंकि वह जानता है कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और दक्षिण अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
उन्होंने कहा, “तो अमेरिका के बिना अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आगे बढ़ना संभव नहीं है। लेकिन एक ऐसा बिंदु जरूर होना चाहिए, जहां हम कूटनीतिक रूप से सही होते हुए दृढ़ भी रह सकें।”
लमोला ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस दावे पर यह टिप्पणी की कि दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों का नरसंहार हुआ था।
उन्होंने कहा, “हम इस बात पर अडिग हैं कि दक्षिण अफ्रीका में कोई नरसंहार नहीं हुआ। दक्षिण अफ्रीका की अपनी चुनौतियां हैं। अपराध सभी को प्रभावित करता है।”
लामोला ने कहा कि लगभग सभी मुद्दे जिन्हें दक्षिण अफ्रीका घोषणापत्र में शामिल करना चाहता था, इसमें शामिल किए गए हैं। उन्होंने कहा कि इनमें खासकर उन देशों के लिए ऋण स्थिरता का मुद्दा शामिल है, जो समान जोखिम स्तर पर ऋण पर अधिक ब्याज दे रहे हैं।
भाषा पारुल