राज्य के अधिकारों और वास्तविक संघीय ढांचे के लिए लड़ाई जारी रहेगी: स्टालिन
खारी नरेश रंजन
- 21 Nov 2025, 03:20 PM
- Updated: 03:20 PM
चेन्नई, 21 नवंबर (भाषा) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने राष्ट्रपति संदर्भ पर उच्चतम न्यायालय के परामर्श को लेकर शुक्रवार को कहा कि राज्य के अधिकारों और वास्तविक संघीय ढांचे के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी।
स्टालिन का यह बयान उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के एक दिन बाद आया है जिसमें कहा गया था कि अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर कोई समयसीमा नहीं थोप सकती, लेकिन राज्यपालों के पास विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर रखने की “असीम” शक्तियां भी नहीं हैं।
राष्ट्रपति द्वारा इस विषय पर परामर्श मांगे जाने पर, प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति वाली राय में कहा कि राज्यपालों द्वारा “अनिश्चितकालीन विलंब” की सीमित न्यायिक समीक्षा का विकल्प खुला रहेगा।
शीर्ष अदालत राष्ट्रपति द्वारा राय मांगे जाने पर जवाब दे रही थी, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत न्यायालय से यह जानना चाहा था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों से निपटने के दौरान राष्ट्रपति द्वारा विवेक का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समयसीमा निर्धारित की जा सकती है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा कि राज्यपालों के पास लंबित विधेयकों की मंजूरी के लिए समयसीमा तय करने के वास्ते संविधान में संशोधन होने तक उनका प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि अदालत की यह राय तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में अप्रैल 2025 में दिए गए फैसले को प्रभावित नहीं करेगी।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की राय इस बात की पुष्टि करती है कि राज्य में निर्वाचित सरकार ही मुख्य भूमिका में होनी चाहिए और सत्ता के दो केंद्र नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा कि न्यायालय की राय स्पष्ट करती है कि राज्यपाल किसी विधेयक पर फैसला लेने में अनिश्चितकाल तक देरी नहीं कर सकते और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को संविधान की मर्यादाओं में रहकर ही काम करना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अदालत ने यह भी साफ कर दिया है कि राज्यपाल के पास किसी विधेयक को रद्द करने या ‘पॉकेट वीटो’ लगाने जैसा कोई चौथा विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें अदालत का रुख कर सकती हैं और राज्यपाल की जानबूझकर की गई देरी या निर्णय न लेने के लिए उन्हें जवाबदेह ठहरा सकती हैं।
स्टालिन ने अहमदाबाद के सेंट जेवियर्स कॉलेज सोसाइटी बनाम गुजरात राज्य (1974) 1 एससीसी 717 (पैरा 109) मामले में नौ सदस्यीय पीठ के आदेश में हवाल दिया जिसमें कहा गया था कि यह परामर्श उतना ही प्रभावी है जितनी कानून अधिकारियों की राय होती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कानूनी लड़ाई के जरिए “हमने उन राज्यपालों को भी सरकार के अनुरूप काम करने पर मजबूर किया, जो निर्वााचित सरकारों से अलग कार्य कर रहे थे।”
उन्होंने कहा, “कोई भी संवैधानिक अधिकारी संविधान से ऊपर नहीं हो सकता।”
स्टालिन ने कहा, “जब कोई उच्च पद धारी संविधान का उल्लंघन करता है, तो संवैधानिक न्यायालय ही एकमात्र उपाय होते हैं। अदालतों के दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “मुझे अपने वादे पूरे करने हैं, और जब तक तमिलनाडु में हमारे लोगों की इच्छा कानून के जरिए पूरी नहीं होती हम सुनिश्चित करेंगे कि हर संवैधानिक संस्थान संविधान के अनुसार ही काम करे।”
उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर राज्यपाल के ‘पॉकेट वीटो’ के सिद्धांत और यह दावा खारिज कर दिया है कि राजभवन किसी विधेयक को रोककर रद्द कर सकता है
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) अध्यक्ष ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस देश का हर संवैधानिक संस्था संविधान के अनुसार काम करे।’”
द्रमुक सांसद एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने बृहस्पतिवार को कहा था कि उच्चतम न्यायालय का ‘‘राज्यपालों के लिए कोई समयसीमा नहीं’’ वाला फैसला केवल राय है, यह कोई निर्णयादेश नहीं है।”
सांसद ने पत्रकारों से कहा, ‘‘इसलिए, ऐसी राय बाध्यकारी नहीं है और इसका अदालतों में किसी मामले के फैसले पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।’’
कुछ दिन पहले, राजभवन ने इस बात से इनकार किया था कि तमिलनाडु के गवर्नर आर एन रवि ने राज्य विधानसभा से पास हुए विधेयकों को मंजूरी देने में देरी की और कहा, ‘‘81 प्रतिशत विधेयकों’’ को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है।
तमिलनाडु के राज्यपाल और स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार कई नीतिगत मामलों को लेकर आमने-सामने हैं। राज्य सरकार अक्सर राज्यपाल पर आरोप लगाती रही है कि वह ‘‘पक्षपाती हैं, केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के इशारे पर राजनीतिक रूप से काम कर रहे हैं’’ और विधानसभा द्वारा पास किए गए विधेयकों में जानबूझकर देरी कर रहे हैं।”
भाषा खारी नरेश