वस्तुएं या सेवाएं लाभ के लिए खरीदे जाने पर क्रेता उपभोक्ता नहीं: न्यायालय
रमण अजय
- 13 Nov 2025, 08:07 PM
- Updated: 08:07 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि किसी वस्तु या सेवा की खरीद लाभ कमाने के लिए की जाती है, तो खरीदार को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता और इसलिए वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मामला आगे नहीं बढ़ा सकता।
न्यायाधीश जे बी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ ने मेसर्स पॉली मेडिक्योर लि. की एक अपील पर फैसला सुनाते हुए राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोगों के निष्कर्षों को सही ठहराते हुए कहा कि कंपनी की शिकायत अधिनियम के तहत विचारणीय नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि अपनी व्यावसायिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने के लिए सॉफ्टवेयर खरीदने वाली कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ‘उपभोक्ता’ नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसा लेनदेन ‘वाणिज्यिक उद्देश्य’ के लिए होता है।
न्यायाधीश मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और कहा, ‘‘वस्तुओं/सेवाओं (अर्थात् सॉफ्टवेयर) की खरीद के लेन-देन का संबंध लाभ सृजन से था और इसलिए, उस लेन-देन के आधार पर अपीलकर्ता को 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(डी) में परिभाषित उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।’’
कंपनी की अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यदि लेन-देन का संबंध लाभ सृजन से है, तो इसे वाणिज्यिक उद्देश्य से किया गया लेन-देन माना जाएगा।
यह अपील चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माता और निर्यातक पॉली मेडिक्योर लि. की 2019 में दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग के समक्ष दायर शिकायत से जुड़ी हुई थी।
कंपनी ने मेसर्स ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लि. पर सेवा में कमी का आरोप लगाया था। कंपनी ने उससे अपने निर्यात-आयात से जुड़े दस्तावेज प्रणाली को व्यवस्थित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर उत्पाद लाइसेंस खरीदा था।
पॉली मेडिक्योर ने दावा किया कि पूरा भुगतान करने के बावजूद, सॉफ्टवेयर ठीक से काम नहीं कर रहा था और उसने 18 प्रतिशत ब्याज सहित लाइसेंस और विकास लागत की वापसी की मांग की।
हालांकि, राज्य उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने 19 अगस्त, 2019 के अपने आदेश में इस आधार पर शिकायत को खारिज कर दिया कि कंपनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ‘उपभोक्ता’ के रूप में पात्र नहीं है, क्योंकि खरीद वाणिज्यिक उद्देश्य से की गई थी।
बाद में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने जून, 2020 में एससीडीआरसी के फैसले को बरकरार रखा। उसके बाद अपीलकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
भाषा रमण