मुलाकात के अधिकार की दादा की अर्जी खारिज; अदालत ने कहा: बच्चे की मानसिक शांति सबसे महत्वपूर्ण
सं दीप्ति सिम्मी सुरेश
- 02 Nov 2025, 12:18 PM
- Updated: 12:18 PM
नैनीताल, दो नवंबर (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक पारिवारिक विवाद में कहा है कि नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा (कस्टडी) और उससे मुलाकात के अधिकार पर निर्णय करते समय उसकी इच्छाओं और मानसिक भलाई को सर्वोपरि माना जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति रविंद्र मैंठाणी और न्यायमूर्ति आलोक माहरा की खंडपीठ ने पोते की अभिरक्षा सौंपने को लेकर गजेंद्र सिंह (दादा) की अपील खारिज करते हुए व्यवस्था दी कि नाबालिग अक्षत अपनी मां शिवानी की देखभाल में ही रहेगा।
गजेंद्र सिंह ने अपने पोते अक्षत की अभिरक्षा उन्हें दिए जाने के लिए एक याचिका दायर की थी।
वर्ष 2023 में देहरादून के विकासनगर की परिवार अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की, जिसमें उन्होंने दलील दी कि परिवार अदालत ने पूरी तरह से केवल उस बच्चे के बयान पर भरोसा किया, जिसकी उम्र उस समय महज पांच साल थी।
सिंह ने यह भी दलील दी कि बच्चा ‘‘पेरेंटल एलिएनेशन सिंड्रोम’’ से पीड़ित है। उन्होंने कहा कि मां ने बच्चे पर मानसिक रूप से प्रभाव डाला है और परिणामस्वरूप वह अपने दादा-दादी से भावनात्मक रूप से दूर हो गया।
‘पेरेंटल एलिएनेशन सिंड्रोम’ (पीएएस) वह स्थिति है जब एक अभिभावक बच्चे के मन में दूसरे अभिभावक के प्रति नफरत या विरोध की भावना भर देता है। यह प्रायः झूठ, बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें या नकारात्मक व्यवहार के माध्यम से किया जाता है, जिससे बच्चा दूसरे अभिभावक को अस्वीकार करने लगता है।
बच्चे की मां ने, हालांकि दलील दी थी कि अदालत के सामने दो परामर्श सत्र हुए थे और इस दौरान बच्चे ने स्पष्ट रूप से उसके साथ रहने की इच्छा व्यक्त की थी।
परामर्श रिपोर्ट में बच्चे ने कहा था, ‘‘मेरी मां अच्छी तरह से देखभाल करती हैं, मैं उनके साथ खुश हूं और मैं अपने दादा से नहीं मिलना चाहता।’’
न्यायालय ने कहा कि बच्चा अपने दादा से मिलने में भी हिचकिचा रहा था और इसलिए उससे मिलने के लिए जबरदस्ती करना बच्चे के सर्वोत्तम हित में नहीं होगा।
परिवार अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘बच्चे की भलाई और मानसिक शांति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। बच्चे की इच्छा के विरुद्ध उसकी अभिरक्षा या उससे मुलाकात करना नैतिक और व्यावहारिक दोनों तरह से अनुचित है।’’
तदनुसार, उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अक्षत अपनी मां के संरक्षण में तब तक रहेगा, जब तक कि वह वयस्क नहीं हो जाता।
भाषा सं दीप्ति सिम्मी