मध्यस्थता निर्णय की घोषणा में अत्यधिक देरी के हानिकारक प्रभाव होते हैं: उच्चतम न्यायालय
नेत्रपाल अविनाश
- 31 Oct 2025, 10:04 PM
- Updated: 10:04 PM
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मध्यस्थता निर्णय सुनाने में अत्यधिक देरी के कई ‘‘हानिकारक प्रभाव’’ होते हैं और यदि इसका कारण स्पष्ट नहीं किया गया तो ऐसी देरी से पक्षकारों के बीच अटकलें पैदा होंगी।
इसने कहा कि व्यवस्था में पूर्ण विश्वास और भरोसा होना आवश्यक है ताकि वह अपने इच्छित तरीके से काम कर सके और एक बार यह विश्वास डगमगा गया तो व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाएगी, तथा ऐसी स्थिति से हर कीमत पर बचना होगा।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक मामले में अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मध्यस्थ ने 28 जुलाई, 2012 को अपना मध्यस्थता निर्णय सुरक्षित रख लिया था और 16 मार्च, 2016 को अपना निर्णय सुनाया था।
इसने यह भी उल्लेख किया कि महत्वपूर्ण बात यह है कि मध्यस्थ द्वारा देरी के लिए कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
पीठ ने इस मामले में विचार के लिए दो प्रश्न तैयार किए, जिनमें यह भी शामिल था कि मध्यस्थता निर्णय की घोषणा में अनुचित और अस्पष्टीकृत देरी का उसकी वैधता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए पीठ ने कहा कि मध्यस्थता निर्णय देने में देरी, अपने आप में, उसे रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, ऐसे प्रत्येक मामले की तथ्यों के आधार पर जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उस देरी का मध्यस्थ न्यायाधिकरण के अंतिम निर्णय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।’’
पीठ ने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया में अंतर्निहित सार्वजनिक नीति का मूल आधार यह है कि इसमें समय कम लगता है और विवादों का समाधान शीघ्र होता है।
इसने मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधन का भी उल्लेख किया।
पीठ ने कहा कि इस मामले में पक्षों के बीच मुख्य विवाद यह था कि चेन्नई में एक भवन का निर्माण सहमत शर्तों के अनुसार पूरा हुआ या नहीं।
इसने कहा कि प्रतिवादियों ने दावा किया था कि भवन का निर्माण सहमति के अनुसार पूरा नहीं हुआ था। वहीं, याचिकाकर्ता कंपनी ने कहा था कि संरचना जुलाई 2008 में पूरी हो चुकी थी, जब उसने पूर्णता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया था।
पीठ ने कहा कि कंपनी तीन महीने के भीतर प्रतिवादियों को 10 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी।
इसने कहा, ‘‘इस राशि का पूरा भुगतान करने पर, कंपनी भूमि में हिस्सेदारी के अलावा, निर्मित क्षेत्रों और सामान्य क्षेत्रों के बंटवारे और बंटवारे के संबंध में जेडीए (संयुक्त विकास समझौते) की शर्तों के अनुसार, भवन में अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी का कब्जा लेने की हकदार होगी।’’
भाषा नेत्रपाल