न्यायालय गलत तरीके से गिरफ्तारी और कैद के लिए मुआवजे संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत
सिम्मी मनीषा
- 28 Oct 2025, 02:01 PM
- Updated: 02:01 PM
नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय बलात्कार और हत्या के एक मामले में शीर्ष अदालत द्वारा बरी किए जाने से पहले, 12 साल तक जेल में रहे एक व्यक्ति की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया जिसमें उसकी ‘‘गलत तरीके से गिरफ्तारी, अभियोजन और दोषसिद्धि’’ के लिए मुआवजा दिए जाने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सोमवार को कहा, ‘‘नोटिस जारी करें जिसका जवाब 24 नवंबर को दिया जाए। हम अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से अनुरोध करेंगे कि वे इस मामले में अदालत की सहायता करें।’’
पीठ इसी तरह के मुद्दे को उठाने वाली तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
इनमें से एक मामले में, याचिकाकर्ता को मार्च 2019 में महाराष्ट्र के ठाणे की एक अधीनस्थ अदालत ने मृत्युदंड दिए जाने का फैसला सुनाया था और नवंबर 2021 में मुंबई उच्च न्यायालय ने उसे सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी।
शीर्ष अदालत ने हालांकि, इस साल मई में ‘‘त्रुटिपूर्ण और भ्रष्ट’’ जांच का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को आरोपों से बरी कर दिया।
शीर्ष अदालत ने मई में अपने फैसले में कहा था, ‘‘यह मामला घटिया और लापरवाह जांच का एक और उदाहरण है, जिसके कारण अभियोजन पक्ष तीन साल और नौ महीने की एक नन्ही बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की जघन्य घटना के मामले में अपना पक्ष साबित नहीं कर सका।’’
व्यक्ति ने शीर्ष अदालत से ‘‘गलत दोषसिद्धि, अवैध एवं भ्रष्ट जांच और मनगढ़ंत साक्ष्यों के आधार पर उस अनुचित अभियोजन के कारण’’ मुआवजा दिए जाने का अनुरोध किया है जिसके आधार पर उसे ठाणे की अधीनस्थ अदालत ने दोषी ठहराया था।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को तीन अक्टूबर, 2013 को बिना किसी आधार के गिरफ्तार किया गया था और गलत तथ्यों पर आधारित 12 साल की कैद के बाद उसे आखिरकार 19 मई, 2025 को रिहा किया गया।
याचिका में बताया गया है कि याचिकाकर्ता की आयु अब 41 साल है और वह उत्तर प्रदेश के एक गांव का रहने वाला है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन सहना पड़ा। उस पर जघन्य अपराधों का झूठा आरोप लगाया गया, उसे अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया, उसके खिलाफ अवैध और भ्रष्ट तरीके से जांच की गई, उसके खिलाफ अनुचित मुकदमा चलाया गया और उसे 12 साल तक गलत तरीके से कैद में रखा गया। इसके लिए याचिकाकर्ता को प्रतिवादी राज्य द्वारा उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए...।’’
याचिका में कहा गया है कि व्यक्ति को केवल कैद से रिहा करना उसके साथ हुई नाइंसाफी को सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं है और राज्य को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह याचिकाकर्ता को 12 वर्षों तक हुई आर्थिक और गैर-आर्थिक क्षति के लिए उचित मुआवजा दे।
भाषा सिम्मी