जलवायु संकट: न्यायालय ने पर्यावरण नीति पर हिमाचल का रुख पूछा
वैभव अविनाश
- 23 Sep 2025, 10:25 PM
- Updated: 10:25 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास कोई ‘जलवायु परिवर्तन नीति’ है, साथ ही उसे राज्य में नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के मुद्दे से निपटने के लिए अपनी आपदा प्रबंधन योजनाओं और जलविद्युत परियोजनाओं के बारे में भी बताने को कहा।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि मौजूदा मानसून मौसम में अभूतपूर्व बारिश ने राज्य के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में ‘तबाही’ मचाई है और जान-माल का व्यापक नुकसान हुआ है।
पीठ ने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से, हिमाचल प्रदेश और इसी तरह, हिमालयी क्षेत्र के सभी राज्य अस्तित्व के एक गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।’’
पीठ राज्य में पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय परिस्थितियों से संबंधित एक स्वतः संज्ञान वाले मामले में सुनवाई कर रही थी।
न्यायमित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कई मुद्दों का जिक्र किया जिन पर राज्य की प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि ये मुद्दे वृक्ष या वन क्षेत्र से लेकर प्रतिपूरक वनीकरण, जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन योजना, सड़कें, जलविद्युत परियोजनाएं, खनन और भारी मशीनरी के उपयोग से लेकर पर्यटन और बहुमंजिला इमारतों तक फैले हुए हैं।
आदेश में कहा गया है कि न्यायमित्र द्वारा प्रस्तुत प्रश्नावली विस्तृत है और मामले को आगे बढ़ाने के लिए उसके उत्तर आवश्यक होंगे।
आदेश में कहा गया है, ‘‘ये उत्तर न्यायालय को हिमाचल प्रदेश राज्य के नागरिकों और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए दिशानिर्देश/उपाय तैयार करने हेतु एक सुविचारित निर्णय पर पहुंचने में सहायता करेंगे।’’
राज्य को 28 अक्टूबर तक राज्य के वन विभाग के प्रधान सचिव के हलफनामे के साथ अपना उत्तर प्रस्तुत करने को कहा गया।
एक प्रश्न था, ‘‘क्या हिमाचल प्रदेश राज्य की कोई जलवायु परिवर्तन नीति है? यदि हां, तो उसका विवरण/प्रतिलिपि अभिलेख में रखी जाए।’’
यह भी पूछा गया कि क्या राज्य ने हिमाचल प्रदेश के पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के वर्तमान और भविष्य के अनुमानों का कोई अध्ययन किया है।
भाषा वैभव