ज्वालामुखी राख की परतों से मानव विकास की समयरेखा को समझने में मिली अहम जानकारी
(द कन्वरसेशन) मनीषा माधव
- 16 Sep 2025, 04:28 PM
- Updated: 04:28 PM
सैनी सामिम एवं हेडन डाल्टन, द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न
मेलबर्न, 16 सितम्बर (एपी) मनुष्य कैसे मानव बने? यह समझना कि हमारे पूर्वज कब, कहाँ और किन पर्यावरणीय परिस्थितियों में रहते थे, मानव विकास की पहेली को सुलझाने का आधार है।
दुर्भाग्य से, प्रारंभिक मानव विकास की समयरेखा को निर्धारित करना लंबे समय से कठिन रहा है - लेकिन पूर्वी अफ्रीका में प्राचीन ज्वालामुखी विस्फोट इसकी कुंजी हो सकते हैं।
‘प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित हमारा नया अध्ययन, केन्या के तुर्काना बेसिन में ज्वालामुखी राख की परतों के बारे में हमारी जानकारी को और पुष्ट करता है। इस स्थान पर कई प्रारंभिक मानव जीवाश्म मिले हैं।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने केन्या के तुर्काना बेसिन की नारिओकोटोमे टफ्स नामक राख की तीन परतों का उच्च-परिशुद्धता से विश्लेषण किया है। यह क्षेत्र मानव विकास संबंधी अनुसंधानों के लिए विश्व के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक माना जाता है।
हमने उच्च-सटीक आयु अनुमान प्रदान किए हैं, जो मानव विकास की एक अधिक परिष्कृत समय-सीमा स्थापित करने की दिशा में एक छोटा सा कदम है।
लाखों वर्षों के ज्वालामुखी विस्फोट कई खुलासे कर सकते हैं। पूर्वी अफ्रीका में ग्रेट रिफ्ट वैली कई विश्व-प्रसिद्ध जीवाश्म स्थलों का घर है। इनमें से, तुर्काना बेसिन प्रारंभिक मानव उत्पत्ति अनुसंधान के लिए संभवतः सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
यह क्षेत्र एक सक्रिय टेक्टोनिक प्लेट सीमा - एक महाद्वीपीय दरार - के भीतर भी स्थित है, जिसने लाखों वर्षों से ज्वालामुखी विस्फोटों को जन्म दिया है।
प्रारंभिक मानव और उनके मानव पूर्वज इन रिफ्ट वैली परिदृश्यों में विचरण करते थे। ज्वालामुखी विस्फोटों ने भूमि को राख के कणों से ढक दिया, जिससे उनके अवशेष दब गए।
समय के साथ, कई जीवाश्म परतें ज्वालामुखीय राख परतों के बीच दब गई हैं। आज पुरातत्वविदों के लिए, ये परतें भूवैज्ञानिक समय-चिह्नों के रूप में अमूल्य हैं, कभी-कभी विशाल क्षेत्रों में।
वैज्ञानिकों का कहना है कि राख की ये परतें भूवैज्ञानिक समय के सटीक संकेतक हैं, क्योंकि ज्वालामुखी विस्फोट बेहद कम समय में होते हैं और इनके दौरान बनने वाले खनिज, जैसे फेल्डस्पार, को रेडियोमेट्रिक डेटिंग से समय का अनुमान लगाया जा सकता है।
राख की परतों की उम्र और रासायनिक 'फिंगरप्रिंट' के आधार पर, शोधकर्ताओं ने यह साबित किया कि ये तीनों परतें अलग-अलग विस्फोटों की थीं — भले ही उनके रासायनिक गुण पहले बहुत समान प्रतीत होते थे।
उच्च-प्रेसिजन डेटिंग और ट्रेस एलिमेंट विश्लेषण तकनीक का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने प्रत्येक राख परत की विशिष्ट पहचान तय की। इसके बाद इन परतों को केन्या के नदुंगा जैसे पुरातात्विक स्थलों से जोड़ा गया, जहाँ करीब 7,000 साल के प्राचीन औजार मिले हैं। अध्ययन में यह स्थान पहले के अनुमान से करीब 30,000 वर्ष पुराना पाया गया।
शोधकर्ताओं ने यह भी दिखाया कि इन राख परतों के नमूने केन्या से लेकर इथियोपिया तक पाए गए हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि एक ही विस्फोट की राख बहुत दूर-दूर तक फैली थी।
अध्ययन के अनुसार, यह नयी तकनीक मानव विकास से जुड़े लंबे समय से अनुत्तरित सवालों को समझने में मदद कर सकती है, जैसे : -
(1) क्या नयी प्रौद्योगिकियां और प्रजातियां धीरे-धीरे विकसित हुईं या अचानक?
(2) क्या एक ही समय में एक से अधिक होमिनिन (मानव पूर्वज) प्रजातियां थीं?
(3) क्या जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय बदलाव और लगातार ज्वालामुखीय गतिविधियां मानव विकास को प्रभावित करती थीं?
शोधकर्ताओं का मानना है कि अब जबकि हमारे पास इन प्राचीन स्थलों के लिए सटीक भूवैज्ञानिक समयरेखाएं उपलब्ध हैं, हम मानव इतिहास को समझने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ चुके हैं।
(द कन्वरसेशन) मनीषा