प्रदूषण से दिल्ली के लाल किले को तेजी से नुकसान हो रहा है: अध्ययन
संतोष नरेश
- 15 Sep 2025, 07:55 PM
- Updated: 07:55 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) दिल्ली की बदतर होती जा रही वायु गुणवत्ता के कारण प्रतिष्ठित लाल किला लगातार और तीव्र गति से क्षतिग्रस्त हो रहा है। एक हालिया अध्ययन में यह दावा किया गया है।
एक नए भारतीय-इतालवी अध्ययन के अनुसार, 17वीं सदी के इस स्मारक की लाल बलुआ पत्थर की दीवारों पर प्रदूषकों की काली परतें लगातार जम रही हैं, जिससे इसकी संरचना और सौंदर्य को खतरा उत्पन्न हो गया है।
अध्ययन का शीर्षक है-‘‘एक सांस्कृतिक विरासत भवन पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए लाल बलुआ पत्थर और काली परत के लक्षण का वर्णन: लाल किला, दिल्ली, भारत।’’
यह अध्यन इस बात की पहली व्यापक वैज्ञानिक जांच है कि शहरी वायु प्रदूषण 1639 और 1648 के बीच सम्राट शाहजहां द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक स्मारक को कैसे प्रभावित कर रहा है।
भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इटली के विदेश मंत्रालय के बीच सहयोग के तहत यह शोध इस वर्ष भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-रुड़की, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-कानपुर, वेनिस के का’ फोस्कारी विश्वविद्यालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था।
टीम ने जफर महल सहित लाल किला परिसर के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्रित बलुआ पत्थर और काली परत के नमूनों का विश्लेषण किया।
निष्कर्षों से पता चला कि काली परतों की मोटाई आवासीय क्षेत्रों में लगभग 0.05 मिलीमीटर के पतले जमाव से लेकर उच्च-यातायात क्षेत्रों की दीवारों पर 0.5 मिलीमीटर की मोटी परतों तक भिन्न-भिन्न थी।
ये मोटी परतें पत्थर की सतह से मजबूती से जुड़ी होती हैं, जिससे सतह के उखड़ने और जटिल नक्काशी के नष्ट होने का खतरा रहता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, काली परतों में मुख्य रूप से जिप्सम, बेसानाइट, वेडेलाइट और सीसा, जस्ता, क्रोमियम और तांबा जैसी भारी धातुओं की थोड़ी मात्रा होती है। ये प्रदूषक बलुआ पत्थर में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते, बल्कि बाहरी स्रोतों से जमा होते हैं, जिसके लिए वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, सीमेंट कारखाने और शहर की निर्माण गतिविधियां जिम्मेदार हैं।
अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के बीच रासायनिक अभिक्रिया से जिप्सम की परतें बनती हैं, जो अंततः वर्षा के दौरान नुकसान पहुंचाती हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वर्ष 2021 से 2023 तक का वायु गुणवत्ता से संबंधित डेटा प्राप्त करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पुष्टि की कि सूक्ष्म कणों की सांद्रता राष्ट्रीय सीमा से ढाई गुना अधिक रही, जबकि मोटे कण सीमा से तीन गुना अधिक थे।
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी सुरक्षित सीमा को पार कर गया, जिससे पत्थर धीरे-धीरे सड़ने लगा, जबकि अमोनिया और सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर सीमा के भीतर था।
लाल किले का निर्माण 1639 में शुरू हुआ और 1648 में पूरा हुआ। 2007 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने बताया कि लाल किले का नाम इसकी विशाल दीवारों और महलों में इस्तेमाल किए गए विंध्य क्षेत्र के लाल बलुआ पत्थर के कारण पड़ा है।
किला परिसर लगभग एक वर्ग किलोमीटर में फैला है और 2.4 किलोमीटर लंबी किलेबंदी की दीवारों से घिरा है, जिनकी ऊंचाई 20 से 23 मीटर के बीच है और आधार पर इनकी मोटाई 14 मीटर तक है।
प्रारंभ में नौ मीटर चौड़ी खाई और यमुना नदी द्वारा संरक्षित यह स्मारक आज भारी यातायात वाले ‘इनर रिंग रोड’ के किनारे स्थित है, जिससे यह अत्यधिक प्रदूषण के संपर्क में है।
भाषा संतोष