मानहानि मामला: मेधा पाटकर ने उच्चतम न्यायालय से याचिका वापस ली
सुभाष दिलीप
- 08 Sep 2025, 07:50 PM
- Updated: 07:50 PM
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से अपनी वह याचिका वापस ले ली, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना के खिलाफ दायर 25 साल पुराने मानहानि मामले में और भी गवाहों से पूछताछ से इनकार करने संबंधी आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने शुरूआत में कहा था कि इस मामले को बंद कर देना चाहिए।
पीठ उच्च न्यायालय के उस निर्देश को दी गई चुनौती के संबंध में कोई राहत देने के लिए तैयार नहीं थी, जिसमें पाटकर को सक्सेना के खिलाफ मानहानि की शिकायत के समर्थन में किसी और गवाह से पूछताछ करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
पीठ के मिजाज को भांपते हुए, पाटकर के वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।
उच्च न्यायालय ने पहले मामले में किसी भी नये गवाह को अनुमति न देने संबंधी आदेश को बरकरार रखा था।
उच्च न्यायालय ने मामले में किसी भी नये गवाह को अनुमति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह केवल विलंब करने की तरकीब है, जिसका उद्देश्य दशकों से चल रहे मामले को और लंबा खींचना है और जहां उनके किसी भी गवाह ने उनके आरोपों को साबित नहीं किया है।
सक्सेना के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह और अधिवक्ता गजिंदर कुमार एवं किरण जय ने पीठ को सूचित किया कि मामले की सुनवाई कर रही अदालत में चल रहा मामला अपने अनुसार चलता रहेगा।
सक्सेना और पाटकर ने एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे दायर किए थे।
पाटकर के खिलाफ सक्सेना द्वारा दर्ज मामले में, शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को उनकी (पाटकर की) दोषसिद्धि की पुष्टि की थी।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं है, जिसमें पाटकर को ‘‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’’ पर रिहा किया गया था, लेकिन उन्हें हर तीन साल में एक बार अदालत में पेश होना अनिवार्य किया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, लगाये गए दंड को रद्द किया जाता है और हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि परिवीक्षा आदेश लागू नहीं होगा।’’
उच्च न्यायालय ने 29 जुलाई को पाटकर (70) की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था। सक्सेना ने यह मामला 25 साल पहले दायर किया था, जब वह गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे।
पाटकर ने इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा सुनाई गई दोषसिद्धि को बरकरार रखने संबंधी 2 अप्रैल के सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
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