भूकंप प्रभावित अफगानिस्तान से अपनों की कुशलता की खबर के इंतजार में दिल्ली में रह रहे अफगान
प्रशांत अविनाश
- 01 Sep 2025, 09:27 PM
- Updated: 09:27 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) पूर्वी अफगानिस्तान में भूकंप आने की खबर के बीच दिल्ली में अपनी छोटी दुकानों और किराये के कमरों में बैठे अफगान प्रवासियों ने रविवार की रात जग कर बिताई। यहां रह रहे अधिकतर अफगान लोगों की रात फोन के साथ बीती और उन्हें इंतजार था कि उधर से कोई फोन आए और उन्हें अपनी परिचितों के सकुशल होने की जानकारी मिल जाए।
अफगानिस्तान में भूकंप के कारण 800 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
मध्य दिल्ली में सूखे मेवों के विक्रेता आसिम (20) जैसे कई लोगों के लिए, दूसरी तरफ का सन्नाटा असहनीय है, क्योंकि उनकी दादी और उनका पूरा परिवार जलालाबाद में रहता है, जो भूकंप से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में एक है।
रुआंसे स्वर में उन्होंने कहा, “मैं दो साल पहले अपने चाचा के साथ यहां आया था और तब से उनके साथ काम कर रहा हूं। आखिरी बार मैंने अपने माता-पिता से लगभग दो हफ्ते पहले बात की थी। आज सुबह, जब मुझे भूकंप के बारे में पता चला, तो मैं उन्हें फोन करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन नहीं लगा। मैं बस यही दुआ कर सकता हूं कि मेरा परिवार सुरक्षित रहे।”
जलालाबाद शहर के समीप कुनार प्रांत के कई शहरों में रविवार देर रात आए 6.0 तीव्रता के भूकंप से बड़े पैमाने पर तबाही मची है। इसमें 800 से अधिक लोगों की जान चली गयी जबकि 2500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। तालिबान सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि भूकंप से पूरे के पूरे गांव तबाह हो गए हैं और संचार लाइनें ठप हो गई हैं।
इस त्रासदी के कारण अनेक अफगान लोग अपने प्रियजनों की सुरक्षा को लेकर भयभीत हैं।
आसिम के साथ काम करने वाले 24 वर्षीय फरजान ने बताया कि उनके परिवार के सदस्य भी प्रभावित इलाके में रहते हैं। उसने कहा, “मैं तीन साल पहले अपने बड़े भाई के साथ यहां आया था। पिछले कुछ दिनों से घर पर कोई फ़ोन नहीं उठा रहा है। मैं उन्हें फोन करने की कोशिश कर रहा हूं, और अब तक मैंने कम से कम 100 कॉल कर ली हैं।”
उन्होंने कहा, “इस वजह से हम यहां ठीक से खाना नहीं खा पा रहे हैं और न ही कोई काम कर पा रहे हैं।”
कुछ लोगों के लिए, इस त्रासदी ने पुराने जख्मों को फिर से हरा कर दिया है।
दिल्ली के एक रेस्तरां में एक दशक से अधिक समय से काम कर रहे 35 वर्षीय नासिर खान ने कहा कि उनके दादा-दादी और चचेरे भाई-बहन अब भी काबुल में हैं।
उन्होंने कहा, “जब ऐसी खबरें आती हैं, तो आपको एहसास होता है कि घर से दूर रहना कितना असहाय लगता है। यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि वे सुरक्षित हैं या नहीं। कुछ साल पहले भी ऐसी ही एक घटना घटी थी, जब मैंने अपने एक चचेरे भाई को खो दिया था।”
बैरे का काम करने वाले करीम ने कहा कि घर से संपर्क हमेशा अनिश्चित रहा है, लेकिन भूकंप के बाद, यह एक दर्दनाक शून्य जैसा महसूस हो रहा है।
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