महमूद मदनी असम पहुंचे, बेदखली अभियान से प्रभावित लोगों से मुलाकात की
नोमान माधव
- 01 Sep 2025, 10:04 PM
- Updated: 10:04 PM
नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने असम में सरकार के बेदखली अभियान से प्रभावित हुए लोगों से सोमवार को मुलाकात के बाद आरोप लगाया कि डर, धमकी और ताकत के बल पर लोगों को बेघर करना “इंसाफ़ और इंसानियत” दोनों के खिलाफ है।
संगठन ने राष्ट्रीय राजधानी में जारी एक बयान में बताया कि मौलाना महमदू मदनी की अध्यक्षता वाले प्रतिनिधिमंडल ने असम में उन राहत शिविरों का दौरा किया, जहां बुलडोज़र कार्रवाइयों के कारण बेघर हुए सैकड़ों परिवार शरण लिये हुए हैं।
बयान में संगठन ने आरोप लगाया है कि “असम में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और नफ़रत व कट्टरता की बढ़ती लहर के बीच” जमीयत का प्रतिनिधिमंडल सोमवार को पूर्वोत्तर राज्य पहुंचा।
इसमें कहा गया है कि प्रतिनिधिमंडल ने कई प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया और पीड़ित परिवारों से मुलाक़ात की।
बयान के अनुसार, मौलाना महमदू मदनी ने कहा कि वह अतिक्रमण हटाने के खिलाफ नहीं है।
राज्यसभा के पूर्व सदस्य ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका के आदेशों को नजरअंदाज़ करके लोगों को बेघर करना और कानून की जगह डर, धमकी और ताक़त का इस्तेमाल करना इंसाफ़ और इंसानियत दोनों के खिलाफ़ है।
उन्होंने कहा कि जयीमत उलेमा-ए-हिंद हमेशा से मज़लूमों (उत्पीड़ितों) के साथ खड़ी रही है और आगे भी खड़ी रहेगी।
जमीयत (एमएम) की कार्यसमिति की पिछले महीने हुई बैठक में असम में जारी बेदखली अभियानों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी, जिसके कारण 50,000 से अधिक परिवार बेघर हो गए हैं, जिनमें ज्यादातर बांग्ला भाषी मुसलमान हैं।
संगठन की कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर संवैधानिक प्राधिकरणों से असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा को पद से हटाने और उनके खिलाफ घृणा फैलाने से जुड़े कानूनों के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी।
वहीं, जमयीत उलेमा-ए-हिंद (एएम) के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने सोमवार को आरोप लगाया कि असम में बेदखली अभियान के तहत मुस्लिम परिवारों को निशाना बनाया जा रहा है और उन्होंने भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई से इस "गैरकानूनी अभियान" में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया।
एक बयान के मुताबिक, जमीयत (एएम) की कार्यसमिति की बैठक मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में संगठन के मुख्यालय में हुई जिसमें देश की वर्तमान स्थिति पर विचार-विमर्श किया तथा सांप्रदायिकता, उग्रवाद, बिगड़ती कानून-व्यवस्था तथा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के विरुद्ध धार्मिक रूप से प्रेरित भेदभाव में कथित वृद्धि पर गहरी चिंता व्यक्त की गई।
बैठक को संबोधित करते हुए अरशद मदनी ने असम की स्थिति पर प्रकाश डाला और कहा कि पिछले कुछ समय से मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को निशाना बनाने और वहां के निवासियों को जबरन विस्थापित करने के लिए एक सुनियोजित अभियान चल रहा है।
उन्होंने कहा, "ऐसा करने से सिर्फ मुस्लिम बस्तियों को ही नहीं ध्वस्त किया जा रहा है, बल्कि असम में संविधान और कानून के शासन को भी कुचला जा रहा है।"
बुजुर्ग मुस्लिम नेता ने आरोप लगाया, "फिर भी, ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के मुख्यमंत्री (शर्मा) को संविधान या कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है, न ही न्यायपालिका का कोई डर है।"
वहीं, शर्मा ने हाल में कहा था कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में बेदखली अभियान को लेकर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर उन्हें जमीयत (एमएम) के अध्यक्ष महमूद मदनी मिल गए, तो वह इस्लामी विद्वान को बांग्लादेश भेज देंगे।
शर्मा ने हाल में दावा किया था कि मई 2021 में उनकी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराई गई है, जिससे 50,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
वर्ष 1919 में स्थापित जमीयत-उलेमा-ए-हिंद को भारतीय मुसलमानों का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली संगठन माना जाता है। यह संगठन दो गुटों में बंटा हुआ है, एक का नेतृत्व अरशद मदनी करते हैं जबकि दूसरे समूह की अगुवाई उनके भतीजे महमूद मदनी करते हैं।
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