विधि आयोग सदस्य ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रेड्डी का बचाव करने पर पूर्व न्यायाधीशों की निंदा की
नेत्रपाल मनीषा
- 29 Aug 2025, 04:06 PM
- Updated: 04:06 PM
नयी दिल्ली, 29 अगस्त (भाषा) विधि आयोग के एक सदस्य ने शुक्रवार को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की आलोचना करते हुए कहा कि वे ‘‘राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं’’ और उनके द्वारा उपराष्ट्रपति पद के विपक्ष के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी का बचाव किया जाना सवाल खड़े करता है।
रेड्डी पर गृह मंत्री अमित शाह ने निशाना साधा था।
इस संबंध में 23वें विधि आयोग के सदस्य अधिवक्ता हितेश जैन की यह टिप्पणी 56 पूर्व न्यायाधीशों द्वारा उन 18 पूर्व न्यायाधीशों के बयान की आलोचना किए जाने के कुछ दिन बाद आई है, जिन्होंने गृह मंत्री शाह की टिप्पणी के बाद रेड्डी का बचाव किया था।
जैन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘मुझे चिंता इस व्यापक प्रवृत्ति की है: अधिकाधिक सेवानिवृत्त न्यायाधीश खुलेआम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं। न्यायमूर्ति मदन लोकुर से लेकर न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर, न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी और अब न्यायमूर्ति अभय ओका तक, उनका हस्तक्षेप न्यायिक स्वतंत्रता पर सैद्धांतिक रुख के बजाय पक्षपातपूर्ण रुख का प्रतीत होता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायिक स्वतंत्रता संवाददाता सम्मेलनों, साक्षात्कारों या पक्षपातपूर्ण पत्रों से सुरक्षित नहीं बनती। यह हमारी ज़िला अदालतों और मजिस्ट्रेट अदालतों में हर दिन महसूस की जाती है, जहाँ लाखों आम नागरिकों के भाग्य का फैसला होता है।’’
जैन ने कहा, ‘‘ये वही न्यायाधीश हैं, जो अब लोकतंत्र के संरक्षक होने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तविक मुद्दों पर स्पष्ट रूप से चुप रहे: निचली न्यायपालिका की स्थिति, नियुक्तियों में देरी, तथा वे स्थितियाँ जिनके तहत आम नागरिकों को न्याय प्रदान किया जाता है।’’
संबंधित प्रकरण में 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने शाह द्वारा रेड्डी पर किए गए हमले को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया था।
रेड्डी 2011 में उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली उस पीठ का हिस्सा थे जिसने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के साथ मिलकर लड़ने वाले आदिवासी युवकों के सशस्त्र संगठन ‘सलवा जुडूम’ को खत्म करने का फैसला सुनाया था।
शाह ने रेड्डी पर नक्सलवाद का ‘‘समर्थन’’ करने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि अगर ‘सलवा जुडूम’ पर फैसला नहीं आता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक खत्म हो गया होता।
इसके बाद 18 पूर्व न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया था, ‘‘सलवा जुडूम मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने वाला, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है।’’
भाषा नेत्रपाल